गांधीजी और खिलाफत
गांधीजीने ‘खिलाफत आन्दोलन’ का समर्थन कर अपनी मुस्लिम भक्ति को भी प्रकट किया था । जबकि यह सच है कि ‘खिलाफत आन्दोलन’ का भारत की स्वाधीनता से कोई लेना-देना नहीं था , परन्तु गांधी जी ने इन सब बातों को एक ओर रखकर ‘खिलाफत आन्दोलन’ में रुचि दिखाई । कुछ लोगों ने गांधीजी कीरुचि के पीछे एक कारण यह भी बताया है कि उस समय ‘खिलाफत आन्दोलन’ वाले लोगों की सोच यह बन गई थी कि खलीफा भारत पर आक्रमण करेंगे और भारत को अपने अधीन कर लेंगे । जिसका गांधी जी के द्वारा स्वागत किया जाना था ।
उस समय गांधीजी ने देशवासियों को कहा था कि :-“खिलाफत का मामला मुसलमानों के लिए जीवन मरण की समस्या के समान है । खिलाफत बचती है तो इस्लाम बचता है। खिलाफत मरती है तो इस्लाम मरता है । अब इस अन्याय का विरोध करने के दो ही उपाय हैं -हिंसात्मक विद्रोह हो या सरकार से असहयोग । हिंसा स्वयं महापाप है , उससे कोई समस्या स्थाई रूप से हल नहीं हो सकती। ऐसी दशा में असहयोग ही एकमात्र उपाय रह जाता है।” ( सन्दर्भ : भारतीय स्वाधीनता संग्राम का इतिहास , पृष्ठ – 254 )
गांधीजी के खिलाफत आंदोलन से लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक असहमत थे। इसी प्रकार देश के अनेकों क्रांतिकारी भी गांधीजी के इस निर्णय से पूर्णतया असहमत थे। गांधीजी ने अपनी मनमानी चलाने के लिए 1921 में अहमदाबाद में आहूत किए गए कांग्रेस के अधिवेशन में अपने लिए असीम शक्तियां प्राप्त करने का उपाय खोज लिया। इस अधिवेशन में सरोजिनी नायडू ने एक प्रस्ताव पढ़ा। जिसके अनुसार प्रत्येक कार्यकर्ता को एक प्रतिज्ञा पत्र भरना आवश्यक माना गया। नायडू का प्रस्ताव था :—-” यह देखते हुए कि थोड़े समय में बहुत से कांग्रेस कार्यकर्ताओं के गिरफ्तार होने का भय है और क्योंकि यह कांग्रेस चाहती है कि कांग्रेस का प्रबन्ध उसी प्रकार चलता रहे और वह यथासम्भव पहले की भांति कार्य करती रहे, जब तक दूसरा कोई निश्चय ना हो तब तक के लिए यह कांग्रेस महात्मा गांधी को अपना सर्वाधिकारी (अर्थात अधिनायक ) नियत करती है और उन्हें महासमिति के सब अधिकार देती है । इसमें कांग्रेस का विशेष अधिवेशन और महासमिति के अधिवेशन को बुलाने का अधिकार भी सम्मिलित है। इन अधिकारों का प्रयोग महासमिति की किन्ही दो बैठकों के बीच किया जा सकेगा। गांधी जी को मौका पड़ने पर अपना उत्तराधिकारी नियत करने का भी अधिकार है ।
यह कांग्रेस उपयुक्त उत्तराधिकारी और उसके पश्चात नियत किए जाने वाले अन्य अधिकारियों को ऊपर कहते हुए सब अधिकार देती है। इस प्रस्ताव का सूक्ष्मता से अवलोकन किया जाना अपेक्षित है।”
इस प्रकार गांधीजी लोकतन्त्र के नाम पर वैसा ही नाटक कर रहे थे जैसा अंग्रेज करते रहे थे । उन्होंने अधिनायक की शक्तियां प्राप्त कीं और उनके अन्तिम और सबसे बड़े शिकार सरदार पटेल उस समय बने जब उस समय के 15 प्रान्तों में से 12 प्रान्तों के द्वारा उनको देश का पहला प्रधानमंत्री बनाए जाने का प्रस्ताव पारित होने के उपरान्त भी गांधी जी ने अपनी इच्छा के अनुसार अपना उत्तराधिकारी नियुक्त करते हुए जवाहरलाल नेहरू को यह पद दे दिया।
इतिहास की घटनाओं पर विचार करें तो पता चलता है कि गांधी जी की अहिंसा और देश की परम्परागत क्रान्ति की भावना में परस्पर संघर्ष होता रहा। जिसमें देश की क्रान्ति की परम्परागत भावना ही सर्वोच्च स्तर पर बनी रही अर्थात उसे ही देश के जनमानस की सर्वमान्यता प्राप्त रही।
डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत एवं
राष्ट्रीय अध्यक्ष : भारतीय इतिहास पुनरलेखन समिति
मुख्य संपादक, उगता भारत