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भारतीय संस्कृति

चाणक्य से पाकिस्तान ने सीखा और हमने पृथ्वीराज से

मुकेश चंद्र मिश्र

हजारों साल पहले भारत माता को एक करने के लिये आचार्य चाणक्य ने साम दाम दंड भेद के जो तरीके अपनाये थे वही तरीका आज हमारा पडोसी देश पाकिस्तान हमारे देश को बर्बाद करने के लिये अपनाये हुये है जिसमे उसका साथ दुनिया के ज्यादातर मुस्लिम और लगभग सारे इस्लामी मुल्क दे रहे हैं, यहां तक की उसने हमारे देश के कुछ मुस्लिमो को भी इस्लाम के नाम पर अपने साथ जोड लिया है, हालांकि आचार्य चाणक्य और पाकिस्तान के उद्देश्य मे कोई समानता नही है क्योंकि आचार्य का उद्देश्य पवित्र था जो एक निरंकुश और दुष्ट शासक से मुक्ति दिलाकर प्रजा की भलाई करना था किंतु पाकिस्तान तो निर्दोष और मासूम लोगो को मौत के घाट उतार रहा है वो भी धर्म के नाम पर, इन्हे कश्मीर चाहिये क्योंकी यहाँ मुस्लिम ज्यादा हैं किंतु अपने ही मुस्लिम इलाके (बांग्लादेश) इनसे सम्भाले नही गये और उनपर अत्याचार के सारे रिकार्ड तोड दिये थे, बलूचिस्तान मे यही अत्याचार आज भी जारी हैं, इसके बावजूद भी अगर वो मुस्लिमो को इस्लाम के नाम पर एक कर लेता है तो उसके नीति निर्माता प्रशंसनीय हैं, दूसरी ओर हम बार बार चोट खाकर भी माफ करने के पृथ्वीराज चौहान वाले आदर्श रास्ते पर चल रहे हैं जो अपने हाथों अपनी कब्र खोदने जैसा है क्योंकि इकतरफा आदर्शवाद बहुत ही घातक होता है।

पाकिस्तान एक तरफ हमसे बात करता रहता है तो दूसरी तरफ उसकी अन्य नीतियां भी जारी रहती हैं जैसे आतंकवाद, सीजफायर का उलंघन, घुसपैठ, नकली नोट आदि, और दूसरी तरफ हमारा देश सब कुछ बातचीत से ही हल करने के सपने देखता है और अगर सेना कुछ अलग करना भी चाहती है तो उसे अनुमति नही दी जाती है जबकी जैसे को तैसा बने बिना कोई भी समस्या हल नही की जा सकती। भगवान राम जैसे मर्यादा पुरुषोत्तम को भी सागर सुखाने के लिये धनुष उठाना पडा था, बालि का वध छल से करना पडा, यहां तक की विजय प्राप्त करने और धर्म की रक्षा के लिये सुग्रीव वा विभीषण को अपने ही भाई से द्रोह करने के लिये प्रेरित करना पडा था, किंतु आज राम का नाम ही साम्प्रदायिक हो गया है जिसे लेने मे अब वो भी घबराते हैं जिनकी राजनीति ही राम जी ने चमकायी, वर्ना जब उनकी सरकार थी तो आतंकियो को कंधार ले जाकर ना छोडा जाता बल्कि अपने यात्रियों को छुडाने के बाद एक मिसाइल हमले से सारे के सारे आतंकियों और उनके समर्थकों को एक साथ उसी कंधार के हवाई अड्डे पर ही निपटा दिया जाता आखिर अग्नी, पृथ्वी जैसी मिसाइलें बस 26 जनवरी को प्रदर्शन करने के लिये ही हैं क्या?

पाकिस्तान खुलेआम कश्मीर मे और अब तो पूरे देश मे आतंक फैला रहा है किंतु हम उसके अशांत बलूचिस्तान मे ऐसा करने का साहस नही कर पाये जबकी आजादी के समय बलूचिस्तान के तत्कालीन शासक ने बलूचिस्तान के हिंदुस्तान मे विलय का आग्रह किया था मगर नेहरू जी ने ये प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया था, नेहरू ने नेपाल के साथ भी ऐसा ही किया जो स्वयम भारत का हिस्सा बनना चाह रहा था पर नेहरू चीन और भारत के बीच मे बफर बनाने के चक्कर मे नेपाल को भारत मे नही मिलने दिया जो आज भारत विरोधियों के लिये सुगम मार्ग बन गया है.

आज की जरुरत है कि हमारे देश को ना सिर्फ बलूचिस्तान बल्कि उसके अन्य अशांत क्षेत्र के लोगों को भड्काकर तथा आर्थिक और शस्त्रों की मदद देकर पाकिस्तान को अस्थिर करने की लगातार कोशिश करनी चाहिये जिससे वो खुद को सम्भालने मे ही व्यस्त हो जायेगा और हमारा पीछा कुछ हद तक छोड देगा। मेरा मानना है अगर 1971 मे इंदिरा गांधी ने बंग्लादेश को अलग ना किया होता बस अपनी सीमा मे बंग्लादेशियों के घुसने पर ही पाबंदी लगायी होती तो आज हमारे पास पाकिस्तान के खिलाफ उपयोग होने के लिये तैयार मानव बमों की कमी ना रहती, किंतु बंग्लादेश को आजाद करके हमने दो दुश्मन बना लिये एक तो पाकिस्तान और दूसरा बंग्लादेश क्योंकि वहां का पाकिस्तान समर्थक गुट जेहादियों का उपयोग हमारे खिलाफ कर रहा है यदि ये अलग राष्ट्र ना होता तो अन्य इस्लामी मुल्कों की तरह यहां भी खूनी संघर्ष चल रहा होता और हम उसका इस्तेमाल पाकिस्तान के खिलाफ आसानी से कर सकते थे, हमने बांग्ला समर्थको को अलग देश बना के दिया जो शांति से रह रहे हैं वर्ना ये खुद ही पाकिस्तान को तबाह करने मे व्यस्त रहते।

इसके अतिरिक्त भी अगर हमारे देश की सरकारें अपनी रणनीति बदलें और जैसे को तैसा बनने के लिये तैयार हो जायें तो भारत मे भी देश पर मर मिटने वालों की कोई कमी नही, पाकिस्तान की आबादी के बराबर तो हमारे यहां आत्मघाती हमलावर तैयार हो सकते हैं आखिर हम क्यों भूल जाते हैं की हम सवा अरब हैं जिसमे 65त्न युवा हैं।

किंतु हमारे देश की कायर सरकारें कहती हैं की वो एक जिम्मेदार देश की सरकार हैं और ऐसा नही कर सकती हद तो तब हो जाती है जब पाकिस्तान के खिलाफ कोई कदम उठाने मे ये सोच के घबराती हैं की कहीं देश का मुस्लिम वर्ग नाराज हो जाए।

किसी भी सरकार के लिये अपने देश और उसके नागरिकों की रक्षा से बडी कोई जिम्मेदारी नही होती और उसकी रक्षा के लिये उठाया गया हर कदम जायज होता है।

अगर आज सरदार पटेल, इंदिरा गांधी या लालबहादुर शास्त्री जैसा दृढ इच्छाशक्ति वाला कोई नेता हमारे बीच होता तो पाकिस्तान धरती के नक्शे से मिट चुका होता, हम नरेंद्र मोदी से यह उम्मीद लगाके बैठे है की सायद वो कुछ अलग करेंगे किंतु उनके हालिया बयान से लगता है की वो भी अब सेकुलर और उदार बनने की तीव्र चाह मे अपनी दृढता खो चुके हैं अब यदि हमे कमजोर न्रेतृत्व ही मिलना है तो मनमोहन सिंह ही क्या बुरे है।

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