इन क्रान्तिकारियों में चापेकर बन्धु , खुदीराम बोस , रासबिहारी बोस , महर्षि अरविन्द , मदनलाल धींगरा, चन्द्रशेखर आजाद , सुभाष चन्द्र बोस, लाला हरदयाल, वीर सावरकर, राम प्रसाद बिस्मिल, देवता स्वरूप भाई परमानन्द जी, श्यामजी कृष्ण वर्मा , महादेव गोविन्द रानाडे , विजय सिंह पथिक , देशबन्धु चितरंजन दास आदि हजारों नहीं लाखों क्रान्तिकारी सम्मिलित थे। उन्होंने अंग्रेजों के सामने ‘बैलट’ को नहीं ‘बुलेट’ को चुना और हर काल व हर परिस्थिति में अंग्रेजों को यह आभास करने के लिए विवश कर दिया कि भारत अब उनके लिए किसी भी प्रकार से सुरक्षित नहीं है। विजय सिंह पथिक और उनके साथियों ने 21 फरवरी 1915 का दिन भारत की पूर्ण स्वाधीनता के लिए निश्चित कर लिया था । यदि समय से पूर्व उनकी इस योजना की भनक अंग्रेजों को नहीं लगती तो भारत वास्तव में ही 21 फरवरी 1915 को आजाद हो गया होता।
स्वातंत्र्य वीर सावरकर जी के शब्दों में कहें तो जब अत्याचार और अन्याय की पराकाष्ठा पर पहुँच जाने के परिणामस्वरूप मानव मन प्रतिशोध की भावनाओं के प्रचंड आवेग से अनियंत्रित होकर भड़क उठता है, तो उन स्थितियों में राष्ट्रहित के लिए अक्षम्य ठहराई जाने वाली हत्याएं तथा अत्याचार होना क्षम्य और अनिवार्य हो जाता है।
उन्होंने यह भी लिखा है कि अन्याय का समूल उन्मूलन कर सत्य धर्म की स्थापना हेतु क्रान्ति , रक्तपात तथा प्रतिशोध प्रकृति प्रदत्त साधन हीं हैं। अन्याय के फलस्वरूप होने वाला उत्पीड़न तथा उद्दण्डता ही तो इन साधनों के उपयोग के लिए निमन्त्रण देती हैं । न्याय के सिंहासन द्वारा अपराधी को दण्ड दिया जाता है , उसे कोई दोषी नहीं ठहराता। इसके विपरीत जिस अन्यायी के कर्त्ता के रूप में किसी को प्राणदण्ड दिया जाता है , वह अन्यायी ही उस पाप का दोषी समझा जाता है । इसलिए ब्रूटस की तलवार पावन है, तो शिवाजी का व्याघ्र नख भी परम वन्दनीय है।”
अपनी देश भक्ति की इसी पवित्र भावना के चलते हमारे क्रान्तिकारियों ने कितने ही जनरल डायर मार दिये थे और कितने ही पुलिस कप्तान सांडर्स जैसे अंग्रेजों का समूल नाश कर दिया था। यही कारण है कि पूरे स्वाधीनता आन्दोलन में हमारे क्रान्तिकारियों की राष्ट्रभक्ति ही ऊंची ध्वजा फहराती हुई दिखाई देती है, गांधी जी की कांग्रेस और उनकी राजभक्ति हमारे इन वीर योद्धाओं की राष्ट्रभक्ति के सामने कहीं टिकती ही नहीं है। जिस समय हमारे वीर क्रान्तिकारी योद्धा अंग्रेजों की निर्दयता और अत्याचारों का प्रतिशोध उन्हीं की भाषा में उन्हें जवाब देकर ले रहे थे , उस समय गांधीजी हमारे उन क्रान्तिकारियों को ‘उग्रवादी’ कहकर सम्बोधित कर रहे थे। यहाँ तक कि जलियांवाला बाग में पहुँचे हमारे क्रांतिकारियों को भी गांधी जी ने ‘पागलपन की मानसिकता’ वाला कह दिया था।
डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत एवं
राष्ट्रीय अध्यक्ष : भारतीय इतिहास पुनर्लेखन समिति