इसलाम और जीव दया-3
उसके बाद वह असली स्थिति में आ जाता है। नमक का पानी उस बकरे को बेहद परेशान करता है, वे बेचैन हो जाता है, जिससे उछलने लगता है। खरीददार समझता है कि बकरा उसे फुरतीला और तगड़ा मिला है। लेकिन एक रात में ही असलियत मालूम पड़ जाती है। आज तक किसी पशु प्रेमी ने यह स्वर बुलंद नही किया कि सरकार इन बकरों की जांच करे और उसके मालिक, जो उसे तरह तरह के कष्ट देते हैं, उससे उनको छुटकरा दिलाया जाए। बकरा ईद के नाम पर इन बकरों और अन्य जानवरों को किस तरह से परेशान किया जाता है, इसके किस्से सुनकर रोंगटे खड़े हो जाते हैं।
बकरा ईद के बाजार में ऐसे बकरे भी देखने को मिलते हैं, जिन पर अल्लाह, मोहम्मद और 786 का अंक लिखा होता है। बकरे का मालिक लोगों को धार्मिक भावना से खेलता है और उसे पवित्र बकरा मानकर मोटी रकम ऐंठ लेता है। मुंबई के देवनार बूचड़खाने में हर साल ऐसे मुबारक बकरे देखने को मिलेंगे। मुरादाबाद की संभल तहसील के एक बकरा व्यापारी दादू मियां ने इसका रहस्य बताया। जब बकरी गर्भवती होत है तो उसके गर्भ के निकट के बाल साफ करके एक विशेष रसायन से अपना मनचाहा नाम उर्दू या हिंदी में, जिस भाषा से वे परिचित हैं, लिख देते हैं। किसी नुकीले तार अथवा कील से नाम को लिख देने के बाद उस पर हर दिन मेहंदी लगाते हैं। मेंहदी का रस गर्भ में उस खुदे हुए न ाम पर जाकर जम जाता है। धीरे धीरे उसका परत जम जाती है। शुरू में नाम स्पष्ट दिखाई दे, इसके लिए एसिड का भी उपयोग करते हैं। अब रात दिन उस उकेरे गये नाम पर रसायन लगाया जाता है, यहां तक कि जब तक बकरी बच्चा न दे दे। बच्चा देने के पश्चात वह उकेरा शब्द बच्चे की चमड़ी पर उभरा हुआ दिखाई पड़ता है। अब तो इंजेक्शन दिये जाने वाली पिचकारी में उक्त द्रव को भरकर बकरी के गर्भ पर लिखे गये नाम तक उसे पहुंचाए जाने की खबरें मिलती हैं। उसका बच्चा यदि नर यानी बकरा है तो फिर बकरे के मालिक की पहले ही ईन मन जाती है। वह किसी बड़े नगर के कत्लखाने में बकरा ईद के अवसर पर पहुंचता है और मुंह मांगे दाम वसूल लेता है। छोटे बच्चे की नरम चमड़ी पर मेंहंदी अथवा कोई तेज रसायन जल्दी काम करता है और फिर वह धीरे धीरे स्पष्ट दिखाई पड़ता है। बकरे के बाल साफ करके एक विशेष झाड़ के दूध से मनचाहा शब्द लिखकर उसके आसपास धुआं छोड़ा जाता है तो वह उस पर जम जाता है और ऐसा लगता है मानो मां के पेट से यह शब्द लिखा हुआ बाहर आया हैं। इस प्रकार के बकरों के पास लोबान का धुआं करते हुए फकीर देखने को मिल जाएंगे। इस संबंध में अनेक रसायनों के नाम लिये जाते हैं, जिनसे यह कारस्तानी सरलता पूर्वक की जा सकती है।
दिल्ली के निकट गाजियाबाद के एक कसाई का कहना है कि यदि बचपन से इसकी चिंता न करो तब भी ऐसे रयासन मौजूद हैं जो बकरे के बाल काटकर वहां मनचाहे अक्षर लिख देन ेसे काम बन जाता है। आज भी हाथ और पांव पर नाम गुदवाने की प्रथा है। जब इनसानों के शरीर को गोदा जा सकता है तो बकरे के शरीर को क्यों नही? लेकिन धन के लालच में उनके मालिक उनको जो पीड़ा देते हैं, उसे जानवर किस तरह से बरदाश्त करता होगा, यह शब्दों में कहना कठिन है। हमारे यहां इन मूक प्राणियों की सेवा करने वाले अनेक संगठन हैं, लेकिन धार्मिक त्यौहार के लिए उन्हें जिस प्रकार से सताया जाता है, उस पर विचार करने वाला कोई नहीं? कुरबानी के लिए इस प्रकार पशुओं को पीड़ित और आतंकित करना धर्म के नाम पर सबसे बड़ा अधर्म है।
बकरा ईद के अवसर पर सारी दुनिया में कुल कितने जानवरों की कुरबानी होती है, यह कह पाना अत्यंत कठिन है, क्योंकि न तो अपने राष्ट्र का और न ही कोई अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ऐसा कोई विभाग है जो इसके सही आंकड़े दे सके। लेकिन पाकिस्तान सरकार इस मामले में कुछ हद तक जागरूक है। वहां की राज्य सरकारें और केन्द्र कुल मिलकार कुरबानी के मामले में कितने पशुओं का वध हुआ।
क्रमश: