अजय कुमार
जिन आठ सीटों पर उप-चुनाव होने हैं, उसमें से छह भाजपा और दो सपा के कब्जे में थीं। इन आठ सीटों के नतीजों से बहुमत पर तो कोई विशेष असर नहीं पड़ेगा, लेकिन चुनाव नजीतों की आड़ में पक्ष-विपक्ष को एक-दूसरे पर हमला करने का मौका जरूर मिल जाएगा।
चुनाव आयोग ने उत्तर प्रदेश विधानसभा की रिक्त हो गईं 8 सीटों पर उप-चुनाव कराने की घोषणा करके राजनीतिक सरगर्मी तेज कर दी है। कोरोना महामारी के समय विधान सभा चुनाव कराना आयोग के लिए तो परीक्षा की घड़ी है ही, चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशियों और उनके लिए प्रचार करने वाले नेताओं के सामने भी कोरोना मुंह फैलाए खड़ा रहेगा। इससे बचने के लिए सभी को कोरोना प्रोटोकॉल का कड़ाई से पालन करना होगा। कोरोना काल के बाद बने सियासी हालात और विपक्षी दलों द्वारा जातिवाद को गर्माने का नफा-नुकसान भी उप-चुनाव में देखा जाएगा। बीते वर्ष 11 सीटों पर हुए उप-चुनाव में भाजपा की तरफ से स्टार प्रचारक के रूप में सिर्फ योगी आदित्यनाथ ने ही प्रचार किया था, जबकि समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी की तरफ से प्रचार करने के लिए अखिलेश-मायावती आदि कोई दिग्गज नेता मैदान में नहीं उतरा था। इस बार देखते हैं क्या नजारा रहता है।
राज्य की आठ सीटों पर होने जा रहे चुनाव का समय भी करीब-करीब वही रहेगा जो पिछले वर्ष हुए उप-चुनाव का था। पिछले वर्ष भी अक्टूबर में 11 सीटों पर उप-चुनाव हुआ था, लेकिन साल भर में परिस्थितियां काफी बदल गई हैं। बीते दिसंबर माह में मुस्लिमों को अपने पक्ष में लामबंद करने के लिए सपा-कांग्रेस ने नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) को लेकर भाजपा के खिलाफ खूब जहर उगला था। कोरोना महामारी न फैलती तो सीएए का विरोध खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा था। मगर विपक्ष तो कोई न कोई मुद्दा तलाश ही लेता है। इसीलिए कोरोना काल में भी प्रदेश को महामारी से बचाने के लिए जूझ रही योगी सरकार को विपक्ष ने जरा भी राहत नहीं दी। सपा-बसपा और कांग्रेस काफी जोरदार तरीके से लगातार योगी सरकार को प्रदेश की बिगड़ी कानून व्यवस्था, दलित-ब्राह्मणों के उत्पीड़न के मुद्दे पर घेरे हुए हैं।
वहीं भाजपा के भीतर विधायकों में पनप रही नाराजगी भी एक बड़ा मसला है। बीते कुछ माह में बीजेपी के नाराज विधायकों और नेताओं की संख्या में जबर्दस्त बढ़ोत्तरी हुई है। नाराज विधायकों ने मीडिया के माध्यम से योगी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है। इस नाराजगी को भी विपक्ष भाजपा के खिलाफ भुनाने की भरपूर कोशिश करेगा। इसके अलावा भाजपा के सामने सबसे बड़ी चुनौती अपने वोटरों को घर से बाहर निकालने की होगी। यूपी ही क्या जहां-जहां भी विधानसभा या एक लोकसभा सीट के लिए चुनाव होंगे, वहां भाजपा के लिए कोरोना के चलते अपने वोटरों को मतदान स्थल तक ले जाना आसान नहीं होगा। बिहार विधानसभा चुनाव सहित तमाम राज्यों में हो रहे उप-चुनाव में भाजपा के वोटर काफी कम संख्या में मतदान स्थल तक पहुंचे तो इसका सीधा फायदा विपक्ष को मिलेगा। राजजैतिक पंडितों को लगता है कि ऐसी स्थिति में भाजपा को बड़ा नुकसान भी उठाना पड़ सकता है।
खैर, अक्टूबर-नवंबर में राज्य की जिन आठ सीटों पर उप-चुनाव होने हैं, उसमें से छह भारतीय जनता पार्टी और दो समाजवादी पार्टी के कब्जे में थीं। इन आठ सीटों के नतीजों से विधानसभा में बहुमत पर तो कोई विशेष असर नहीं पड़ेगा, लेकिन चुनाव नजीतों की आड़ में पक्ष-विपक्ष को एक-दूसरे पर हमला करने का मौका जरूर मिल जाएगा। भाजपा के लिए खुशी की बात यह है कि भले ही उप-चुनाव उसके लिए कभी खुशियों की सौगात लेकर नहीं आए हों, परंतु बीते वर्ष अक्टूबर में 11 विधान सभा चुनाव सीटों के नजीतों ने यह मिथक जरूर तोड़ दिया था। इसीलिए भाजपा उत्साहित लग रही है।
पिछले वर्ष हुए उप-चुनावों की बात की जाए तो अक्टूबर 2019 में 11 सीटों पर हुए उप-चुनाव के नतीजों में भाजपा का परचम लहराया था। भाजपा-अपना दल गठबंधन को 08 सीटों पर जीत मिली थी, जबकि समाजवादी पार्टी ने 03 सीटें जीतकर भाजपा को जबर्दस्त चुनौती दी थी। उक्त चुनावों में समाजवादी पार्टी के पक्ष में जमकर मुस्लिम वोट पड़े थे। तब भले ही भाजपा गठबंधन के हिस्से में 08 सीटें आई थीं, लेकिन सबसे बड़ा लाभ सपा को हुआ था, जिसने एक-एक सीट भाजपा और बसपा से छीनी थी, जबकि रामपुर सीट पर कब्जा बरकरार रखा था। सपा ने जैदपुर सीट भाजपा से छीनी तो, जलालपुर सीट बसपा से छीनकर अपने खाते में डाली थी। रामपुर सीट पर पार्टी का कब्जा बरकरार रखा था। उक्त उप-चुनाव में बहुजन समाज पार्टी का खाता भी नहीं खुल पाया था, जिससे नाराज बसपा सुप्रीमो और पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने चुनाव नतीजों को भाजपा की बड़ी साजिश करार दिया था। मायावती ने राज्य में विधानसभा की 11 सीटों पर हुये उप-चुनाव में बसपा का खाता भी नहीं खुल पाने का दोष भाजपा पर मढ़ते हुये कहा था कि भाजपा ने बसपा को एक भी सीट नहीं जीतने देने के लिये समाजवादी पार्टी को साजिश करके कुछ सीटों पर जिता दिया। मायावती ने इसे भाजपा का षड्यंत्र करार देते हुए कहा था कि पार्टी कार्यकर्ताओं का मनोबल तोड़ने के लिये भाजपा द्वारा षड्यंत्र रचा गया।
उल्लेखनीय है कि बीते वर्ष यूपी में 11 सीटों पर हुये उप-चुनाव में समाजवादी पार्टी ने बसपा के कब्जे वाली जलालपुर सीट भी जीत ली थी। उस उप-चुनाव में हमेशा की तरह कांग्रेस की बहुत बुरी हालत रही थी। कांग्रेस महासचिव प्रियंका वाड्रा ने तब योगी सरकार पर आरोप लगाया था कि उत्तर प्रदेश की गंगोह विधानसभा सीट के उपचुनाव में कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार नोमान मसूद के पक्ष में जा रहे निर्णय को बदलवाने के लिए गंगोह में हमारे जीतते हुए प्रत्याशी को काउंटिंग सेंटर से निकाल कर बाहर कर दिया गया। जिला अधिकारी को पांच-पांच बार फोन पर लीड कम करवाने के आदेश आ रहे थे। यह लोकतंत्र का सरासर अपमान था।
बहरहाल, अगले दो महीनों में उत्तर प्रदेश की जिन आठ विधानसभा सीटों पर उपचुनाव प्रस्तावित हैं, उसमें फिरोजाबाद की टूंडला सीट भारतीय जनता पार्टी के डॉ. एसपी सिंह बघेल के सांसद निर्वाचित होने पर त्यागपत्र देने से रिक्त है, लेकिन न्यायालय में विवाद लंबित होने के कारण यहां अब तक उप-चुनाव नहीं हुआ था। रामपुर की स्वार सीट से समाजवादी पार्टी के सांसद आजम खां के पुत्र अब्दुल्ला आजम जीते थे। उनकी सदस्यता जन्मतिथि विवाद में निरस्त हुई। वहीं उन्नाव की बांगरमऊ से भारतीय जनता पार्टी के कुलदीप सिंह सेंगर जीते थे। उनकी सदस्यता बलात्कार के एक मामले में उम्र कैद की सजा मिलने के कारण रद्द हुई थी। इसके अलावा जौनपुर के मल्हनी क्षेत्र से समाजवादी पार्टी के पारसनाथ यादव जीते थे, लेकिन लंबी बीमारी में निधन होने के कारण यह सीट रिक्त हुई। देवरिया सदर से भारतीय जनता पार्टी के जन्मेजय सिंह और बुलंदशहर से भारतीय जनता पार्टी के वीरेंद्र सिरोही की सीटें भी विधायकों के निधन के कारण रिक्त हुई हैं, जबकि कानपुर की घाटमपुर सीट भारतीय जनता पार्टी की कमल रानी वरुण और अमरोहा की नौगावां सादात भारतीय जनता पार्टी के चेतन चौहान की कोरोना वायरस के संक्रमण से मृत्यु होने से रिक्त है। दोनों योगी सरकार में कैबिनेट मंत्री भी थे। यूपी विधानसभा की आठ सीटों सहित देश के तमाम राज्यों की कुल 64 विधान सभा सीटों, एक लोकसभा सीट और बिहार विधानसभा के आम चुनाव एक साथ ही कराये जाएंगे।