जीवात्मा क्या है ?जो मनुष्य वेद शास्त्र पढने पर भी आत्मा को नहीं जानता है उन मनुष्यों की स्थिति स्वादिष्ट भोजन की पतीली में कड़छी की भॉति होती है जो स्वादिष्ट भोजन को रखती है परंतु उसे उसके स्वाद का पता नहीं होता | आत्मग्यान से रहित मनुष्य की भी यही अवस्थाएं होती हैं | जो जीवात्मा ईश्वर को प्राप्त करना चाहता है |वह अपने आप को जाने बिना ईश्वर को नहीं जान सकता आत्मा सदा गतिशील रहती है |इसमें कभी बिकार नहीं आता | यह अपने कर्मों के अनुरूप एक के बाद एक शरीर को धारण करती रहती है पंच भौतिक शरीर के स्वामी को जीव कहते हैं | पंचबहुतिक शरीर का स्वामी जो निज कर्मानुसार एक के बाद एक शरीर में गतिशील रहता है |या शरीर धारण करता है |इसलिए उसे जीवात्मा कहते हैं | जीवात्मा अतीव सूछ्म होने से शरीर संबंध के बिना साधारण जनों को इसकी प्रतीति नहीं हो सकती | क्योंकि जीव को प्रकाश में मूल स्थान कहा है |जिस प्रकार मरीचि माली सूर्य आकाश में एक स्थान पर रहते हुए समस्त ब्रह्मांड में प्रकाश करता है |उसी प्रकार जीवात्मा शरीर में हृदया आकाश में रहता हुआ | समस्त शरीर में चेतन शक्ति का संचार करता है |