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भारतीय संस्कृति

खगोलीय पिंड और हमारा जीवन-2

सुरेन्द्र प्रसाद राय

गतांक से आगे….

इस तरह प्रात: होते ही यह वातावरण में विद्यमान रात्रि के प्रदूषण एवं विषाणुओं को नष्ट कर  वातावरण को शुद्घ करता है। यही कारण है कि मकान का मुख्य द्वार पूरब की ओर रखना अच्छा माना जाता है ताकि प्रात: होते ही पर्याप्त मात्रा में पराबैंगनी विकिरण घर में प्रवेश कर वातावरण शुद्घ कर दे। अन्य उपयोगों में शामिल है सौर कुकर द्वारा भोजन पकाना, सौर ऊर्जा से पानी गर्म करना, कपड़े, अन्न, ईंधन आदि सुखाना, सिलिकन सौर सेलों द्वारा इसे विद्युत में परिवर्तन के बाद सौर लालटेन से रात में प्रकाश की प्राप्ति सौर सेलों का उपग्रहों तथा अन्य प्रयोजनों हेतु प्रयोग, सोलर अर्थात पावर स्टेशन से बिजली की प्राप्ति आदि।

प्रात:काल की सूर्य रश्मियों के परोक्ष एवं नियंत्रित रूप से नेत्रों पर पड़ने से रेटिना नेत्र के भीतर वह पर्दा, परत जिस पर वस्तुओं का प्रतिबिम्ब इमेज बनता है की सेंकाई होती है। सूर्य को अर्घ्य देने के पीछे यही रहस्य छिपा है। अर्घ्य के समय लोटे में जल भर कर छाती के बीच में रखते हुए सूर्य की ओर धीरे धीरे गिराया जाता है तथा लोटे के जल की ऊपरी सतह से परावर्तन के बाद बना सूर्य का प्रतिबिम्ब बिंदु लोटे के उभरे भीतरी किनारे पर देखा जाता है। अनेक व्यक्ति स्नान के बाद अर्घ्य देते हैं किंतु यहां वर्णित विधि का पालन नही करते। कार्तिक शुक्ल षष्ठी को होने वाले छठ (सूर्य षष्ठी) व्रत में भी प्रात: एवं सांध्य वेला में सूर्य को अर्घ्य देने की परंपरा है। ज्ञातव्य है कि अर्घ्य वाले सूर्य को ही विधिवत देना चाहिए, क्योंकि उस समय ऊर्जा सीमित एवं नियंत्रित होती है। अनेक व्यक्ति जब कभी भी स्नान करते हैं, चाहे वह दोपहर ही क्यों न हो, परंपरा का निर्वाहन करते हुए अर्घ्य दे देते हैं। चूंकि उस समय सौर ऊर्जा की मात्रा अधिक होती है, अत: परोक्ष ऊर्जा से भी रेटिना का जलना संभव है। आंख पूरी तरह खुल नही पाने के कारण इच्छित उद्देश्य की प्राप्ति भी नही होपाती। कुछ लोग सीधे सूर्य की ओर देखने का प्रयास करते हैं जो अत्यंत हानिकर है।

प्राकृतिक चिकित्सा में सौर विकिरण का उपयोग सौर स्नान सोलर बाथ हेतु किया जाता है। इस उपचार में मरीज को बाहर खुले धूप में सुलाकर शरीर के संबंधित भाग पर सौर विकिरण पड़ने दिया जाता है जो भीतरी शारीरिक क्रियाओं को प्रभावित कर विभिन्न रोगों में अपेक्षित लाभ पहुंचाता है। अब क्वान्टेरा नामक चिकित्सा उपकरण से भी विभिन्न रोगों के इलाज हो रहे हैं। यह सौर विकिरणों आदि पर आधारित है। इससे पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र के समान स्थिर कमजोर चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न होता है। साथ ही सौर विकिरण में शामिल अवरक्त किरणों, लाल प्रकाश तथा हरे प्रकाश के गुणों से संपन्न ऐसे ही विकिरण लेसर क्रिया द्वारा निकलते हैं। इनके सम्मिलित प्रभाव के फलस्वरूप शरीर की भीतरी क्रियाएं जैसे रक्त संचार, चयापचय आदि सक्रिय रूप से कार्य करने लगती हैं तथा उनमें तालमेल बैठता है। इससे रोग निरोधक तत्व सक्रिय हो जाते हैं तथा जीवनी शक्ति में वृद्घि होती है। इस उपकरण का उपयोग मरीज के साथ कुछ मिनटों तक किया जाता है तथा कुछ बैठकों के बाद अनेक बीमारियां जैसे आन्त्रशोध हृदय रोग, स्त्री रोग, ओस्टियों आर्थराइटिस, मनोविक्षेप आदि ठीक होने का दावा किया जाता है। क्वांटेरा अर्थात क्वांटम थिरैपी डिवाइस उपकरण का आविष्कार रूस में 1980 में किया गया जिसका उद्देश्य था अंतरिक्ष में यात्रियों की चिकित्सा। इसका सर्वप्रथम उपयोग रूसी अंतरिक्ष यात्री जार्जी मिखेलोविच ग्रेच्को ने किया। आईएसओ 9002 से सम्मानित  इस उपकरण का उपयोग अमेरिका, कनाडा, जर्मनी, इग्लैंड, फ्रांस आदि देशों के अतिरिक्त भारत में भी संभव हुआ है सौर विकिरण से मानव को प्राप्त ये लाभ सूर्य को पूजनीय बनाते हैं।

मानव हेतु सौर विकिरण के उपर्युक्त उपयोगों की कड़ी में अब सौर शल्य चिकित्सा भी जुड़ गयी है। रक्त विहीन शल्य चिकित्सा हेतु आजकल लेसर का उपयोग जारी है किंतु यह महंगा है जिससे आम व्यक्ति की पहुंच से दूर बना हुआ है। किंतु इजराइल के बैनगुरियन विश्वविद्यालय के जैफरी एम गोर्डन ने सौर विकिरण की मदद से अब शल्य चिकित्सा की विधि विकसित की है। इसमें सूर्य की बिखरी हुई किरणों को एक परावर्तक द्वारा एकत्र कर केन्द्रित कर लिया जाता है तथा प्राप्त सौर ऊर्जा की ऊष्मा से रोगी के ऊतकों का उपचार लेसर शल्य चिकित्सा की ही तरह किया जाता है। इसके लिए बने प्रकाशीय व्यवस्था में केन्द्रित किरणों को प्रकाशीय तंतु तार द्वारा बीस मीटर दूर तक रोगी के पास पहुंचा कर शल्य चिकित्सा हेतु उपयोग में लाया जा सकता है। इस विधि को पूर्णरूपेण विकसित करने का प्रयास जारी है।

केवल सूर्य की रोशनी से ऊर्जा लेकर तथा कई महीने बिना भोजन एवं पानी लिए जिंदा रहने का दावा मिदनापुर के सनयोगी कहलाने वाले श्री  उमाशंकर ने किया है। उनके अनुसार वे सीधे सूर्य की ओर देखकर शरीर की कोशिकाओं को रिचार्ज कर लेते हैं। यह आश्चर्य जनक ही है क्योंकि सीधे सूर्य को देखने से आंख के पर्दा के ही जल जाने की संभावना प्रबल होती है जिससे ऐसा करना वर्जित किया गया है।

अब नेनो एंटीना से सौर ऊर्जा को वैसे ही सीधे विद्युत में बदला जा सकता है जैसे रेडियो तरंगें धातु के एंटीना पर पड़ने से विद्युत पैदा करती है। आम तौर पर एंटीना की लंबाई तरंग धैर्य  के बराबर होती है। सौर विकिरण की तरंगों की  लंबाई चूंकि नैनोमीटर (10-9 मीटर अर्थात एक मीटर का अरबवां भाग) के स्तर की होती है, अत: अब तक इतने छोटे एंटीना बनाना संभव नही था।

किंतु नैनो प्रौद्योगिकी में विकास से अब यह संभव हो गया है। मैसाचुसेट्स स्थित बोस्टन कालेज के भौतिकविद यांगवांग ने 50 नैनोमीटर चौड़ी सुचालक कार्बन ट्यूब के एरियल पर प्रकाश डालने से विद्युत धारा उत्पन्न की। अलग अलग आकारों के नैनो ट्यूबों को समायोजित कर उन पर सौर विकिरण डालने पर विद्युत धारा उत्पन्न की जा सकती है। यह फोटो इलेक्ट्रिक सिद्घांत का उपयोग कर अभी सेलों द्वारा सौर ऊर्जा को विद्युत में बदला जाता है। नैनो एंटीना द्वारा सौर बैटरियां भी बनाई जा सकेंगी।

यूनिवर्सिटी ऑफ टोरंटो के वैज्ञानिकों ने फ्लेक्सिबल प्लास्टिक सौर सेल बनाया है जो परमपरागत सौर सेल से पांच गुना अधिक दक्ष है। यह एक पतली झिल्ली के रूप में होता है तथा कपड़े, कागज आदि पर लगाया जा सकता है।

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