नई दिल्ली: हालांकि तुर्की(Turkey) की 98 फीसदी जनता मुसलमान(Muslim) है. इसके बावजूद यह देश आधुनिक और प्रगतिशील माना जाता था. लेकिन अब तुर्की पर इस्लामी दुनिया का प्रमुख बनने की धुन सवार हो गई है. वह सऊदी अरब को उसके स्थान से बेदखल करना चाहता है. इसकी वजह से दुनिया में रक्तपात के एक नए अध्याय की शुरुआत हो सकती है.
बढ़ रहा है तुर्की का कट्टरपंथ
तुर्की के राष्ट्रपिता मुस्तफा कमाल पाशा, जिन्हें अतातुर्क(तुर्की का पिता) के नाम से जाना जाता है. उन्होंने साल 1923 में बड़े संघर्ष के बाद तुर्की को एक आधुनिक स्वरुप प्रदान किया. लेकिन अब वर्तमान राष्ट्रपति एर्दोगन तुर्की को उल्टी दिशा में ले जा रहे हैं.
इस्तांबुल में कारी संग्रहालय के नाम से मशहूर लोकप्रिय चोरा चर्च को मस्जिद में बना दिया गया. इसके पहले तुर्की की प्रसिद्ध हगिया सोफिया चर्च को मस्जिद बना दिया गया. इन कारणों से दुनिया भर में तुर्की का विरोध हो रहा है.
खजाना मिलने से तुर्की का आत्मविश्वास बढ़ा
पिछले लगभग 100 सालों से तुर्की एक आधुनिक देश के रुप में विकसित हो रहा था. तुर्की की राजधानी इस्तांबुल में पर्यटकों का जमावड़ा होता था. पर्यटन तुर्की की आय का मुख्य स्रोत था. पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए तुर्की को मॉडर्न दिखना जरुरी था. लेकिन हाल ही में तुर्की को काले सागर में समुद्री गैस का एक बड़ा भंडार मिला है. जो कि 320 अरब क्यूबिक मीटर का है. दो हफ्ते पहले 21 अगस्त को तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोगन ने इसकी घोषणा की थी कि ‘काले सागर तट से एक बड़े प्राकृतिक गैस का भंडार मिला है. इसके बाद प्राकृतिक गैस के आयात पर तुर्की की निर्भरता को कम करने में मदद करेगा. प्राकृतिक गैस रूपी इस नई समृद्धि के बाद तुर्की खुद को सऊदी अरब के बराबर समझने लगा है. इसके बाद से उसकी कट्टरता दिन पर दिन बढ़ती जा रही है.
उस्मानी साम्राज्य के पुराने दिनों की वापसी चाहता है तुर्की
तुर्की में में कट्टर इस्लामी राष्ट्रवाद बढ़ रहा है. तुर्की के वर्तमान शासक और जनता उसे 16वीं शताब्दी में ले जाना चाहती हैं. जब उस्मानी साम्राज्य इतना ताकतवर हो गया था कि कई भाषाओं वाले भू-भाग पर राज करता था. साल 2014 में उस्मानी साम्राज्य पर तुर्की में इसपर एक टीवी सीरियल बनाया गया. Dirilis Ertugrul नाम का यह सीरियल तुर्की में इतना फेमस रहा कि इसके पांच सीजन बनाए गए.
इसे मुसलमानों का Games of Thrones बताया गया. यहां तक कि पाकिस्तानी पीएम इमरान खान ने दुनिया भर के मुसलमानों से इसे देखने की अपील कर डाली. इस सीरियल में उस्मानी साम्राज्य के 600 साल(1299 से 1922) का गौरवपूर्ण इतिहास है.
इस सीरियल का पॉपुलर होना यह बताता है कि किस तरह तुर्की जनता भी इतिहास के बहाने कट्टरता की तरफ बढ़ रही है.
तुर्की के राष्ट्रपति के बयानों से साफ झलकती है उनकी मंशा
तुर्की का आधुनिक स्वरुप 1924 में तैयार किया गया. जब मुस्तफा कमाल पाशा के नेतृत्व में वहां का आधुनिक संविधान बना और 1928 में इस्लाम से स्टेट रिलीजन का दर्जा छीन लिया गया. संविधान के तहत ही अतातुर्क ने तुर्की की सेना को देश में सेक्युलरिज्म कायम रखने की जिम्मेदारी दी. तुर्की में धार्मिक प्रतीक चिन्हों के इस्तेमाल पर भी पाबंदी लगा दी गई.
लेकिन एर्दोगन के नेतृत्व में तुर्की कट्टरपंथी की तरफ वापसी की यात्रा कर रहा है. वे तुर्की को ऑटोमन साम्राज्य का आधुनिक स्वरुप देना चाहते हैं. इसका जिक्र कई बार एर्दोगन के भाषणों में मिलता है. एर्दोगन कई बार बोल चुके हैं कि तुर्की एकमात्र देश है, जो इस्लामिक दुनिया का नेतृत्व कर सकता है. वो पुराने ऑटोमन साम्राज्य का सपना देख रहे हैं, जो पुराने सोवियत संघ से भी ज्यादा 2.2 करोड़ वर्ग किलोमीटर में फैला था. जिसका विस्तार मिस्र, ग्रीस, बुल्गारिया, रोमानिया, मेसिडोनिया, हंगरी, फ़लस्तीन, जॉर्डन, लेबनान, सीरिया, अरब के ज़्यादातर हिस्सों और उत्तरी अफ़्रीका के अधिकतर तटीय इलाक़ों तक था. अपनी ताकत के बल पर ऑटोमन साम्राज्य दुनिया भर के मुस्लिम शासकों को मान्यता देता था. एर्दोगन को लगता है कि इस्लामिक दुनिया का नेतृत्व करना तुर्की का अधिकार है.
तुर्की को भड़का रहा है पाकिस्तान
पिछले दिनों पाकिस्तान ने तुर्की और सऊदी अरब के बीच पहले से जारी तनाव को भड़काने की कोशिश की. वह तुर्की के साथ मिलकर इस्लामी देशों का अलग खेमा बनाना चाहता है. सऊदी अरब इससे नाराज है. क्योंकि तुर्की से उसकी पुरानी प्रतिद्वंदिता है.
संयुक्त अरब अमीरात द्वारा इजरायल से संबंध स्थापित करने पर भी पाकिस्तान और तुर्की इस्लामी देशों को भड़का रहे हैं. पाकिस्तान कश्मीर के मामले में कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म होने के बाद से तुर्की ने कश्मीर को लेकर ऐसे कई बयान दिए हैं जो भारत के हितों के खिलाफ हैं.
तुर्की जिस इस्लामिक दुनिया की स्थापना का सपना देखता है. उसका एक हिस्सा कश्मीर भी है. तुर्की की भाषा कश्मीर पर पाकिस्तान को समर्थन देने वाली है.
विध्वंसक देशों के साथ पींगे बढ़ा रहा है तुर्की
तुर्की का नजरिया विस्तारवादी रहा है. तुर्की पहले विश्वयुद्ध में जर्मनी के साथ मिलकर लड़ा था. लेकिन हार गया. अब 100 सालों के बाद तुर्की फिर से पंख फैलाने की कोशिश में है. पाकिस्तान जैसे देश उसकी महत्वाकांक्षा को शह दे रहे हैं.
उधर दुनिया के दबाव से परेशान चीन जैसे देशों को तुर्की जैसे मूर्ख सहयोगी की सख्त आवश्यकता है. क्योंकि पहले कोरोना वायरस और फिर विस्तारवादी नीतियों के कारण चीन पर दुनिया का दबाव बढ़ता जा रहा है. इसलिए चीन को भी तुर्की जैसे सहयोगी की तलाश है. जो उसके भड़काने पर आंख मूंदकर दुनिया के खिलाफ मोर्चा खोल दे. जिससे चीन पर दबाव कम हो सके. यही वजह है कि चीन में मुसलमानों के मानवाधिकार हनन पर तुर्की कभी भी खुलकर कुछ नहीं कहता.
चीन की नजर तुर्की की आधुनिक सेना पर है. जिसे उसके लिए भविष्य की सहयोगी साबित हो सकती हैं. तुर्की के पास एक बड़ी और आधुनिक सेना है. जिसमें लगभग 4 लाख सक्रिय फौजी, 1000 से ज्यादा अत्याधुनिक लड़ाकू विमान हैं. तुर्की की नौसेना में 194 आधुनिक जहाज भी हैं. तुर्की का कुल रक्षा बजट 8.2 अरब डॉलर का है.
तुर्की की धर्मनिरपेक्ष नीतियों के कारण पश्चिमी देशों ने तुर्की की सेना को आधुनिक बनाने में बेहद मदद की थी. लेकिन अब तुर्की कट्टरपंथ के रास्ते पर चल पड़ा है. ऐसे में उसकी यही आधुनिक सेना संसार के लिए मुश्किल का कारण बन सकती है.