हिंदुओं को अपने पूर्वजों की व्यूह रचनाएं भी पढ़नी चाहिए
महाभारत के युद्ध में तीसरे दिन कौरवों की सेना गरुड़ व्यूह में सजती है। भीष्म इसके सबसे आगे के हिस्से में होते हैं और सबसे पीछे होता है दुर्योधन। इस तरह सेनानायक को सबसे पहले और बिलकुल खुलकर हमला करने का मौका मिलता है, लेकिन राजा सबसे पीछे होने के कारण सबसे सुरक्षित होता। इसका जवाब देने के लिए पांडवों की सेना अर्धचन्द्र व्यूह में सजती है। अर्धचन्द्र के दाहिने कोने पर अर्जुन थे और वाम कोण पर भीम, राजा युधिष्ठिर बीच में कहीं थे। अगर इस अर्धचन्द्र में युधिष्ठिर पर हमला करने के लिए कौरव सीधा आगे बढ़ते तो उनकी सेना का सबसे पीछे का (दुर्योधन वाला) हिस्सा अर्जुन और भीम के लिए खुला छूट जाता।
अर्धचन्द्र व्यूह बड़ी सेना के सीधा आक्रमण कर पाने की क्षमता को ख़त्म कर देता है। बड़ी सेना से छोटी सेना का मुकाबला हो तो छोटी सेना वालों के लिए अर्धचन्द्र अक्सर फायदेमंद होगा। महाभारत के तीसरे दिन भी यही हुआ था। सीधा आगे बढ़कर अर्धचन्द्र में फंसने के बदले कौरव सेना ने अर्जुन की ओर आक्रमण किया। अर्जुन स्वयं कुशल तो था ही, उसके साथ अभिमन्यु और सत्यकी जैसे योद्धा भी थे। वो तो भीष्म को रोकने में कामयाब हुआ, लेकिन उसकी तरफ सेना के मुड़ते ही सेना का पिछला हिस्सा अर्धचन्द्र के दूसरे सिरे की जद में आ गया। वहां मौजूद भीम और घटोत्कच ने दुर्योधन पर हमला कर दिया।
बेहोश होने पर जैसे ही दुर्योधन को युद्धक्षेत्र से हटाया गया, कौरव सेना में अफरातफरी मच गयी और भीष्म जैसे तैसे सेना को संभाल पाए थे। मासूम अहिंसक हिन्दू तो बेचारे ऐसी व्यूह रचना जैसी मार-काट भरी चीज़ें पढ़ते नहीं, लेकिन युद्धों के बारे में पढ़ने-सीखने वाले इस अर्धचन्द्र व्यूह का काफी ध्यान से अध्ययन करते हैं। ईसा से करीब 216 साल पहले हन्निबाल ने जब रोम पर आक्रमण किया तो इसी अर्धचन्द्र व्यूह का इस्तेमाल किया था। हन्निबाल के पास भी सेना रोम के मुकाबले कम थी। उसने खुद पैदल सेना के ठीक बीचो बीच खड़े होकर लड़ने का फैसला किया और अपने घुड़सवारों को सेना के दाहिने और बायीं और सजाया।
रोमन सेना को लगा कि संख्या में कम हन्निबाल कि सेना को पीछे धकेलते हुए वो धीरे धीरे आगे बढ़ रहे हैं। असल में वो हन्निबाल के किराये के अप्रशिक्षित सैनिकों के घेरे में आते जा रहे थे। थोड़ी देर बाद जब हन्निबाल के घुड़सवार भी टूट पड़े तो रोमन सेना के पास कहीं निकल भागने की जगह नहीं थी। वो गोल घेरे में चारों ओर से हन्निबाल का हमला झेलते कैन्नी के मैदान में हारकर ख़त्म हुए (Battle of Cannae 216BC)। आधुनिक युद्धों या कहिये थर्ड जनरेशन वॉर तक इस अर्धचन्द्र व्यूह को पिंसर मूवमेंट (Pincer movement) के नाम से जाना जाने लगा था और इसके सफलतापूर्वक इस्तेमाल के करीब दो दर्जन उदाहरण हर सैन्य कमांडर पढ़ता ही है।
आम नागरिकों का शांतिपूर्ण जीवन जीने वाले भोले-भाले बेचारे हिन्दुओं को भला इस अर्धचन्द्र व्यूह की जानकारी क्यों होनी चाहिए? वो महाभारत को आँख बंद करके धार्मिक ग्रन्थ की तरह आह-वाह करते झूम झूम के क्यों ना पढ़े? वो इसलिए कि अर्धचन्द्र व्यूह को आसान भाषा में “आगे कुआं, पीछे खाई” भी तो कह सकते हैं ना! फोर्थ जनरेशन वारफेयर यानि चौथी पीढ़ी की युद्धनीति में सैन्य हमला बाद में आता है। पहले सूचना तंत्र के हथियारों का इस्तेमाल होता है। इसमें बड़ी शत्रु सेना को आगे खीचकर बुलाने और अर्धचन्द्र के दोनों सिरे कैसे होंगे? ये हथियारों से लैस सीधा युद्द नहीं इसलिए इसमें स्वरुप थोड़ा बदलता है।
पहले पीड़ित पक्ष का जोरदार प्रदर्शन करके सहानुभूति जगाई जायेगी। जैसे ही सहानुभूति लहर में सेवा भाव से विपक्षी कूदा वैसे ही पिंसर/ अर्धचन्द्र के दोनों सिरे अपना काम शुरू करेंगे। एक सिरा ये कहने में लगा होगा कि हाय हमारे लिए तो कुछ किया ही नहीं जा रहा! हमारे साथ सौतेला व्यवहार हमेशा से होता आया है! या फिर ये तो तुम्हारा फ़र्ज़ था, कोई एहसान नहीं कर रहे हमपर! दूसरा सिरा विदेशों से मिले फण्ड का इस्तेमाल धर्म-परिवर्तन करवाने, अपनी पैठ और मजबूत करने में, अपने मजहबी-रिलीजियस संस्थाओं का महत्व बढ़ाने में करना शुरू करेगा। केरल में आई बाढ़ फोर्थ जनरेशन वारफेयर का पिंसर मैनोवर (Fourth generation pincer manoeuvre) है।
पहले तो गाडगिल समिति जैसे पर्यावरण सम्बन्धी चेतावनियों को अनदेखा करके एक आपदा का इंतजाम किया गया। फिर किसी विधायक के नाम से अंग्रेजी-हिंदी अपील तेजी से वायरल कर के सहायता की गुहार लगानी शुरू की गयी। हर साल बिहार में बाढ़ आती है, असम में आती है, तब भी क्या इतनी तेजी से सहानुभूति लहर पैदा करने की कोशिश की जाती है? सहानुभूति में जैसे ही चंदा देकर आप मन का बोझ हल्का करते हैं, वैसे ही पिंसर का एक सिरा काम शुरू करता है। कुछ आपके और कुछ विदेशों से आये फण्ड का इस्तेमाल फिर धर्म-परिवर्तन और सामाजिक पैठ बढ़ाने के लिए होगा। पिंसर का दूसरा सिरा इतने में केंद्र सरकार को कोसता कहता रहेगा कि हिंदी भाषी हमारे साथ सौतेला व्यवहार कर रहे हैं। हमारी मुसीबत में हमें बचाने नहीं आये!
ऐसी स्थितियों में सीधा अर्धचन्द्र में कूदकर, पिंसर मूवमेंट में फंसने के बदले थोड़ा ठंडा पानी पीजिये। याद रखिये कि लोगों का सहायता के लिए भेजा गया चंदा ओक्सफेम जैसी संस्थाएं इसी साल फ़रवरी में वेश्याओं पर खर्च करती पायी गयी थी ना? ऐसे संगठनो के बदले प्रधानमंत्री राहत कोष कहीं बेहतर होगा। ज्यादातर समय खुद को राष्ट्रीय कहने वाले और पता नहीं क्यों हिन्दुत्ववादी माने जाने वाले एक संगठन की खाकी वर्दी भी वहां नजर आती है। उनकी मदद पर भी विचार किया जा सकता है। आप आपदा में मदद की मंशा रखते हैं, धर्म-परिवर्तन को बढ़ावा देने की, या गिद्धों के सामने लाशें परोसने जैसा कोई इरादा आपका कभी नहीं था।
बाकी महाभारत टीवी देखकर सीखने के बदले पढ़ना क्यों चाहिए, ये भी समझ में आ ही गया होगा। उम्मीद है अट्ठारह में से दो-चार पर्व पढ़ लेने की कोशिश तो कुछ लोग करेंगे ही।
✍🏻आनन्द कुमार