चिदंबरम इससे दबने वाले नही थे। उन्होंने यह आंदोलन तो चला ही रखा था इसके अलावा यह भी आंदोलन चला दिया कि स्थानीय अंग्रेजों की मिल कोरल मिल में मजदूरों का पक्ष लिया जाए बात यह है कि कंपनी साठ प्रतिशत मुनाफा कमा रही है, तो उसे चाहिए कि वह अपने मजदूरों को ठीक से वेतन दे। जनता की सहानुभूति भी मजदूरों के साथ थी। चिदंबरम पिल्ले तथा उनके साथी सुब्रमण्डयम शिव और पदमनाभ आयंगर ने भी जनता का साहस कायम रखने में उनकी मदद की। उन तीनों में से सुब्रह्मण्यम शिव एक साधू थे और बहुत अच्छे वक्ता थे। इन तीनों नेताओं ने मिलकर ऐसा वातावरण पैदा कर दिया कि मिलवालों को झुकना पड़ा और मजदूरों के साथ समझौता करना पड़ा। मिलवालों ने समझौता तो कर लिया पर वे चिदंबरम पिल्ले को मार्ग हटाना चाहते थे।
इन्हीं दिनों ट्यूटीकोरिन में एक अंग्रेज अफसर आया जिसका नाम मि. ऐश था। इस अफसर को समझाया गया कि चिदंबरम पिल्ले को यदि नही दबाया गया तो थोड़े दिनों में यहां सरकार ही समाप्त हो जाएगी। चिदंबरम पिल्ले यह जान गये थे कि अब उन पर प्रहार होने वाला है। पर उन्हीं दिनों विपिनचंद पाल रिहा हुए और सारे भारत में इस पर खुशियां मनाई गयीं। इस उपलक्ष्य में विपिनचंद पाल के सम्मान में एक निशुल्क पाठगार और चिकित्सालय खोले गये। उत्सव होने ही वाला था कि चिदंबरम को ऐश की तरफ से एक पत्र मिला कि आप यह उत्सव न करें और किसी भी राजनीतिक कार्य में भाग न लें। उनसे कहा गया कि आप फौरन ट्यूटीकोरिन छोड़कर चले जाएं। यदि आप ऐसा नही करेंगे तो आप गिरफ्तार कर लिये जाएंगे।
इस पर चिदंबरम पिल्ले ने कहला भेजा कि मैं किसी भी हालत में उत्सव रोकना नही चाहता। और मैं यहां से जाऊंगा भी नही। इस पर तीनों क्रांतिकारियों पर जमानत की कार्यवाही की गयी। चिदंबरम पिल्ले ने फिर भी अपना काम जारी रखा। तब जिला मजिस्टे्रट ने उनको गिरफ्तार कर लिया। तीनों क्रांतिकारियों से यह पूछा गया कि आप अपने ऊपर लगाये गये अभियोग को मानते हैं या नहीं। इस पर उन्होंने कहा कि हम नही मानते। तब उन्हें फिर जेल भेज दिया गया। उन्हें गाड़ी में बैठाकर जयजयकार के साथ जेल पहुंचाया गया। बहुत जोरों से चिदंबरम की जय और वंदेमातरम के नारे लगे।
जब नेता जेल के अंदर बंद हो गये तो जनता ने दूसरा रूख ग्रहण किया। 13 मार्च को तिरूनेलिवेल्ली में दंगे शुरू हो गये। दुकानें बंद रहीं। हड़ताल रही और मजदूर सड़कों पर निकल आये। कुछ लोगों ने नगरपालिका के एक सरकारी दफ्तार में एक पुलिस के थाने में आग लगा दी। नगरपालिका के पेट्रोल में आग लगा दी गयी। पुलिस वालों ने गोली चलाई और चार आदमी वहीं पर शहीद हो गये। जनता बराबर ईंट पत्थर चलाती रही और इसके फलस्वरूप एक पुलिस का कर्मचारी घायल हो गया। जब चार आंदोलन कारियों के शहीद होने की बात चारों तरफ फेल गयी, तो दंगे शुरू हो गये। पुलिस ने लाठी चार्ज किया और जुलूस पर गोली चलाई गयी। अंग्रेजों में इतना भय छा गया कि वे शहर छोड़कर समुद्र में जहाज पर रात बिताते रहे। यह बिल्कुल स्पष्ट था कि सरकार सब तरह से लोगों को दबाने के लिए तैयार थी। भयंकर आतंक फेल गया और अफसरों को दोष देने की बजाए सरकार ने अफसरों का साथ दिया और सारा दोष चिदंबरम पिल्ले पर डाल दिया। सौभाग्य से हिंदू नाम पत्र ने जनता का पक्ष लिया और सच तो यह है कि इन्हीं कारणों से हिंदू दक्षिण भारत का एक बहुत प्रसिद्घ पत्र हो गया।
चिदंबरम पिल्ले तथा उनके साथियों पर मुकदमा चला और चिदंबरम पिल्ले को दो मदों में 40 साल की सजा दी गयी और सुब्रमण्डयम शिव को 10 वर्ष के काले पानी की सजा दी गयी और सुब्रमण्डयम शिव को दस वर्ष के काले पानी की सजा दी गयी। कहना न होगा कि इन सजाओं का बहुत विरोध हुआ और अंत तक उच्च अदालत में सुब्रमण्डयम शिव और चिदंबरम पिल्ले की सजा 6-6 वर्ष कर दी गयी। उन दिनों ऐसे मामले छह वर्ष की सजा सबसे ऊंची मानी जाती थी और यही उन दोनेां क्रांतिकारियों को दी गयी। इस समय दक्षिण भारत में जो दंगे हुए थे वे स्पष्ट रूप से क्रांतिकारी दंगे थे और उसके नेता चिदंबरम पिल्ले और उनके साथी क्रांतिकारी थे।
चिदंबरम भारत भर में मशहूर हुए, यहां तक कि हिंदी में उनपर गीत बने। काकोरी षडयंत्र के लोग उस गीत को गाया करते थे। पर अब मुझे वह गीत याद नही सिर्फ कानों में गूंज रहा है-ऐ चिदंबरम!
मन्मथनाथ गुप्त की पुस्तक हमारे जुझारू क्रांतिकारी से साभार