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आइए जाने ब्लैक होलके बारे में:- एक झटके में निकली आठ सूरजों की ऊर्जा

जोनाथन एमोस

सोचिए कि अगर आठ सूर्य की ऊर्जा एकसाथ अचानक निकले तो क्या होगा?
यह दो ब्लैक होल्स के बीच अब तक के देखे गए सबसे बड़े मर्जर से निकलने वाली यह गुरुत्वाकर्षण “शॉकवेव” है।
पिछले साल मई में इस इवेंट के सिग्नल करीब सात अरब साल चलकर पृथ्वी तक पहुंचे और ये इतने मजबूत थे कि इनसे यूएस और इटली में लेजर डिटेक्टरों में खलबली पैदा कर दी थी।
शोधार्थियों का कहना है कि ब्लैक होल्स की आपसी टक्कर से एक इकाई पैदा हुई जिसका मास हमारे सूरज के मुकाबले 142 गुना ज्यादा था।
यह चीज बेहद अहम है। विज्ञान ने काफी वक्त से ब्लैक होल्स का पता लगा लिया था, इनमें से कुछ बेहद छोटे और कुछ बहुत बड़े थे। लेकिन, इस नई पड़ताल ने एक कथित इंटरमीडिएट साइज के ब्लैक होल्स का पता लगाया है जिनकी रेंज 100 से 1,000 सन (या सोलर) मास के बराबर है।

यह एनालिसिस इंटरनेशनल लीगो-वर्गो गठजोड़ का हालिया नतीजा है. यह गठजोड़ अमरीका और यूरोप में तीन सुपर-सेंसिटिव ग्रैवीटेशनल वेव-डिटेक्शन सिस्टम्स चलाता है।

ब्लैक होल क्या होता है?

ब्लैक होल की पहली तस्वीर सामने आई
– ब्लैक होल स्पेस का एक ऐसा इलाका होता है जहां पदार्थ अपने आप खत्म हो जाते हैं।
– इनकी गुरुत्वाकर्षण शक्ति इतनी तगड़ी होती है कि इसमें से प्रकाश तक बाहर नहीं निकल सकता है।
– कुछ बड़े तारों के विस्फोट के साथ टूटने से ब्लैक होल पैदा होते हैं.
– इनमें से कुछ तो हमारे सूरज के मास के मुकाबले अरबों गुना बड़े होते हैं.
– ये विशालकाय ब्लैक होल्स कैसे बने हैं इसका पता अभी तक नहीं चला है।
– ब्लैक होल्स का पता उनके अपने इर्दगिर्द की चीजों पर डाले जाने वाले प्रभाव से चलता है।
– ये जब एक दूसरे से टकराते हैं तो ग्रैवीटेशऩल वेव्स पैदा करते हैंI

अमरीका में बड़ी दूरबीन करेगी ब्लैकहोल पर शोध
इस गठजोड़ के लेजर इंटरफेरोमीटर इंस्ट्रूमेंट्स स्पेस-टाइम में होने वाले वाइब्रेशंस को सुनते हैं.
21 मई 2019 को इन्हें एक तेज़ सिग्नल महसूस हुआ जो कि एक सेकेंड के दसवें हिस्से तक ही टिका था।
कंप्यूटर एल्गोरिद्म से आपस में टकराए दो ब्लैक होल्स के आखिरी-स्टेज के क्षणों का पता चला।इसमें से एक का मास सूर्य के मुकाबले 66 गुना था और दूसरा सूर्य से 85 गुना बड़ा था।
इस टक्कर की दूरी 150 अरब लाख करोड़ किमी के बराबर आंकी गई।
फ्रांस की कोटे डी अजूर ऑर्जर्वेटरी के प्रोफेसर नेल्सन क्रिस्टेनसन ने कहा, “यह वाकई में चकित करने वाली घटना थी।”
उन्होंने बताया, “यह सिग्नल सात अरब साल दूर से आया था और इसने धरती पर हमारे डिटेक्टरों को हिला दिया है।”
ग्रैवीटेशनल वेव्स- स्पेस-टाइम में तरंगें

– ग्रैवीटेशनल वेव्स जनरल रिलेटिविटी की थ्योरी का एक अनुमान हैं।
– इन्हें पकड़ने के लिए टेक्नोलॉजी विकसित करने में दशकों का वक्त लगा है।
– टक्कर जैसी घटनाओं के जरिए स्पेस-टाइम के तानेबाने में ये तरंगें पैदा करती हैं।
– मास के तेजी से आगे बढ़ने से वेव्स पैदा होती हैं जो कि प्रकाश की रफ्तार से फैलती हैं।
– पता लगाए जाने योग्य स्रोतों में ब्लैक होल्स और न्यूट्रॉन स्टार्स का मर्ज होना शामिल है।
– लीगो-वर्गो लंबी, एल-शेप वाली टनल्स में लेजर्स छोड़ती हैं।ये वेव्स प्रकाश में अवरोध पैदा करती हैं।
– वेव्स के पता लगने से ब्रह्मांड में पूरी तरह से नई खोजबीन का रास्ता खुल रहा है।

अमरीका में बड़ी दूरबीन करेगी ब्लैकहोल पर शोध
एक 85 सोलर मास के ऑब्जेक्ट के टकराने ने वैज्ञानिकों को सोचने पर मजबूर कर दिया है क्योंकि तारों की मौत से ब्लैक होल बनने की उनकी समझ में वाकई में इतने बड़े पैमाने का अनुमान नहीं लगाया गया था।
तारों का जब न्यूक्लियर फ्यूल खत्म हो जाता है तो उनके अंदर विस्फोट होता है और इससे ब्लैक होल बन जाते हैं।ऐसा तभी होता है जबकि वे पर्याप्त बड़े हों।
लेकिन, तारों के अंदर काम करने वाली फिजिक्स से यह अंदाजा मिलता था कि 65 से 120 सोलर मास के ऑब्जेक्ट्स से ब्लैक होल्स का बनना नामुमकिन है। तारों की मौत से ऐसी जो इकाइयां बन सकती हैं वे दरअसल खुद को तोड़ देते हैं और उनमें कुछ भी नहीं बचता है।
अगर विज्ञान इस बिंदु पर सही है तो 85 सोलर मास ऑब्जेक्ट की मौजूदगी का स्पष्टीकरण यही हो सकता है कि यह खुद एक पहले के ब्लैक होल यूनियन का नतीजा था।
यूके की ग्लास्गो यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर मार्टिन हेंड्री मानते हैं कि इसकी यूनिवर्स बनने पर गहरी छाप है।
वे कहते हैं, “यहां हम मर्जर्स के पदानुक्रम, बड़े ब्लैक होल्स के बनने के संभावित तरीकों की बात कर रहे हैं।”
“ऐसे में किसे पता है कि यह 142 सोलर मास वाला ब्लैक होल किसी दूसरे बेहद भारी ब्लैक होल्स से मिल गया हो।”
लीगो-वर्गो गठजोड़ 21 मई 2019 की घटना को दो पेपर्स के जरिए पेश कर रहा है।
इसमें से एक जर्नल फिजिक्स रिव्यू लेटर्स है और इसमें इस खोज का जिक्र किया गया है। दूसरा एस्ट्रोफिजिकल जर्नल लेटर्स में है।इसमें सिग्नल की फिजिकल प्रॉपर्टीज और इसके वैज्ञानिक परिणामों का जिक्र है।
2015 में इस गठजोड़ के अपने पहले ग्रैवीटेशनल वेव्स का पता लगाने की खोज के बाद से इस क्षेत्र में रिसर्च में तेजी आई है।इस खोज को नोबल पुरस्कार मिला था।

पोट्सडैम में मैक्स प्लैंक इंस्टीट्यूट फॉर ग्रैवीटेशनल फिजिक्स के डायरेक्टर प्रोफेसर एलेसैंड्रा बोनानो कहते हैं, “हम डिटेक्टरों की सेंसिटिविटी बढ़ा रहे हैं और हम दिन में एक से ज्यादा डिटेक्शन हासिल कर सकते हैं। यह ब्लैक होल्स की एक बारिश होगी. लेकिन, यह सुंदर है क्योंकि हमें इनके बारे में जानने का मौका मिलेगा।”
– एक लेजर मशीन में भरी जाती है और इसकी बीम को दो रास्तों में बांट दिया जाता है।
– अलग-अलग रास्तों की आवाजाही अवमंदित शीशों पर होती है।
– बाद में प्रकाश के दो हिस्से फिर से इकट्ठे होते हैं और इन्हें डिटेक्टर में भेजा जाता है।
– लैब से गुजरने वाली ग्रैवीटेशनल वेव्स से सेटअप डिस्टर्ब होना चाहिए।
– थ्योरी यह है कि इन्हें बेहद सूक्ष्म तरीके से अपना स्पेस फैलाना और सिकोड़ना चाहिए।
– दोबारा इकट्ठे हुए बीम में फोटोडिटेक्टर इस सिग्नल को पकड़ता है।
(साभार – बीबीसी)

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