मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के आदर्श चरित्र , व्यक्तित्व और कार्यशैली पर एक महत्वपूर्ण लेख माला
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आदि कवि महर्षि वाल्मीकि ने रामायण के अरण्य कांड मैं श्री राम के वनवास के दौरान घटित घटनाओं को बहुत ही सुंदरता से वृक्षों ऋतु चक्र के माध्यम से चित्रित किया है| मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने 14 वर्ष के वनवास में 10 वर्ष वनों में स्थित ऋषि यों , मुनियों के आश्रमों में व्यतीत किए| वाल्मीकि रामायण में उन सभी ऋषि व आश्रमों का उल्लेख है… जिनमें महर्षि अत्रि ,अगसत्य, सुतीक्ष्ण सरभंग आदि कुछ नाम है… जहां 10 वर्ष का वनवास व्यतीत हुआ|
तत्पश्चात वनवास के 11 वर्ष में महर्षि अगस्त्य के परामर्श पर श्री राम ने पंचवटी में अपने आश्रम का निर्माण कराया श्रीराम महर्षि अगसत्य से पूछ रहे हैं|
प्रभो व्यादिश मे देशं सोदकं बहुकाननम्|
यत्राश्रमपदं कृत्वा वसेयं निरतः सुखम्||
( अरण्य कांड सर्ग 10)
हे प्रभु !अब आप मुझे कोई ऐसा स्थान बताएं जहां जल का कष्ट ना हो, जो हरे-भरे वृक्षों से युक्त हो जहां आश्रम बनाकर में सुख पूर्वक रह सकूं| महर्षि अगसत्य अपने आश्रम से दो योजन की दूरी पर स्थित अनेक वृक्षों वनस्पतियों औषधियों सरोवर से युक्त पंचवटी नामक प्रसिद्ध स्थान को राम को बताते हैं| उस स्थल पर पहुंचकर श्रीराम के निर्देश पर लक्ष्मण बहुत सुंदर आश्रम पर्णशाला मिट्टी की दीवारों को खड़ी करके लंबे बांस के खंभों से बनाते हैं | श्री राम का यह आश्रम बहुत रमणीय था | जिसका वर्णन सीता हरण से पूर्व की एक घटना में मिलता है जब रावण मारीच को श्री राम का आश्रम वायु मार्ग से दिखाता है , वहां आदि कवि वाल्मीकि लिखते हैं|
समेत्य दण्डकारण्यं राघवस्याश्रमं ततः|
ददर्श सहमारीचो रावणो राछ्साधिपः||
एतद्रामाश्रमपदं दृश्यते कदलीवृतम्|
क्रियता तत्सखे शीघ्रं यदर्थ वयमागता:||
(अरण्य कांड सर्ग, 26)
” दंडक वन में पहुंचकर राक्षस राज रावण और मारीच ने श्री राम के आश्रम को देखा |केले के वृक्षों से घिरा हुआ यही श्री राम का आश्रम है| मित्र जिस कार्य के लिए हम यहां आए हैं उसे तुम शीघ्र कर डालो|”
केले का संस्कृत में नाम कदली फल है| रामायण दुनिया का आदि महाकाव्य है इससे पूर्व कोई काव्य नहीं था | किसी ऐतिहासिक महाकाव्य में केले के वृक्ष का यह प्राचीनतम उल्लेख है….. पर्यावरण बोध की दृष्टि से दूसरा निष्कर्ष यह निकलता है श्री राम के आश्रम के चारों ओर केले के वृक्ष थे | वनस्पतियां फल आदि का वर्णन ऐतिहासिक तथ्यों को सजीवता प्रमाणिकता प्रदान कर देती है…. यह हम जाने ना जाने आदि कवि इतिहासकार ऋषि वाल्मीकि जरूर जानते थे| आज पंचवटी नामक स्थान महाराष्ट्र राज्य के नासिक जिले में स्थित है यह परी क्षेत्र केले की खेती के लिए पूरे भारत में मशहूर है|
रामायण के इसी अरण्यकांड में जब रावण माता सीता को हर कर ले जाता है| श्री राम व्याकुल होते हैं महान दुख सागर में डूब जाते हैं, श्री राम की मानसिक व्यथा का बड़ा मर्मस्पर्शी चित्रण आदि कवि वाल्मीकि ने किया है| श्री राम नदियों पर्वतों वृक्षों से सीता का वृतांत पूछते हैं| आदि कवि वाल्मीकि की यही विशेषता है यहां भी उन्होंने घटनाओं को प्रकृति वृक्षों के साथ सहचार्य प्रदान कर दिया है….|
वृक्षाद् वृक्ष प्रधानवन् स गिरेश्चाद्रि नदान्नीम्|
बभूव विलपन् रामः शोकपकःर्णवाप्लुत||
अपि कच्चित्वया दृष्टा सा कदम्बप्रिया प्रिया|
कदम्ब यदि जानीषे शसं सीता शुभानाम्||
स्निग्धपल्लववसडृशा पीतकौशेवासीनी|
शंसस्व यदि वा दृष्टा बिल्व बिल्वोपमस्तनी||
अथवाअर्जुन शंस त्व प्रिया तामुर्जुनप्रियाम्|
जनकस्य सुता भीरुर्यदि जीवति वा न वा||
श्री राम शोक रूपी कीचड़ के समुंद्र में डूबकर एक वृक्ष से दूसरे वृक्ष तक एक पर्वत से दूसरे पर्वत और एक नदी से दूसरी नदी तक दौड़ते फिरते|
वह विलाप करते हुए कहते थे….. हे कदंब! तुम्हारे फूलों से प्रेम करने वाली सुंदर मुखी मेरी प्राणप्रिया सीता को क्या तुमने देखा है? यदि तुम जानते हो तो बताओ सीता कहां है?
हे बेल! वृक्ष चिकने पल्लव के समान कांति वाली पीली रेशमी साड़ी धारण करने वाली तुम्हारे फल के जैसी वक्ष स्थल वाली सीता को यदि तुमने देखा हो तो बताओ वह कहां है?
हे अर्जुन! वृक्ष तू ही बता दे कि मेरी प्राण प्रिय सीता जो तुझे बहुत चाहती थी वह जनक नंदिनी जानकी जीवित है या नहीं|
हे अशोक वृक्ष! तुम शोक का नाश करने वाले हो| शोक चित वाले मुझे , मेरी प्राणप्रिय सीता से मिलाकर अपने अशोक नाम को चरितार्थ करो|
वृक्षों से सीता के संबंध में पूछ कर फिर श्रीराम जीव जंतुओं से पूछते हैं| यह वर्णन वाल्मीकि रामायण के अरण्यकांड के 35 सर्ग में है| माता सीता के प्रकृति के प्रति प्रेम अनुराग का अनूठा दर्शन हमें इस प्रसंग में मिलता है…. माता सीता को कदंब वृक्ष के फूल प्रिय थे थे| राम अर्जुन के वृक्ष से कह रहे हैं कि मेरी पत्नी सीता तुझे बहुत चाहती थी| यह निश्चल सच्चे वृक्ष प्रेम का कितना आदर्श उदाहरण है| श्री राम अशोक के वृक्ष को शोक के हरने वाला वाला कह रहे हैं यह आयुर्वेद की दृष्टि से एकदम पुष्ट है देसी अशोक के वृक्ष फूल फूल छाल से असंख्य औषधीय बनती है | आदि कवि वाल्मीकि ने बेल पत्थर के वृक्ष के माध्यम से माता सीता के शारीरिक सौंदर्य व उनके वस्त्र प्रधान के रंग का वर्णन कर दिया है यह वाल्मिकी जैसा ऋषि ही कर सकता है|
शेष अगले अंक में |
आर्य सागर खारी ✍✍✍