खुदगर्ज होते हैं

रास्ते में रोकने वाले

– डॉ. दीपक आचार्य

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प्रायः यह देखा जाता है कि जब भी हम मार्गों पर आवागमन करते हुए जाते हैं, खासकर दुपहिया वाहनों में या पैदल होते हैं तब काफी सारे ऎसे लोग रास्ते में ऎसे मिल जाते हैं जो हमें किसी न किसी प्रकार का अभिवादनसूचक शब्द बोलकर रोकने की कोशिश करते हैं और इस गांभीर्य के साथ रोकने का प्रयास करते हैं जैसे कि ये अपन से मिलने के लिए ही अपने घर से निकले हों, और संयोग से हम मिल जाएं।

दुनिया एक अजायबघर है और उसमें दूसरी प्रजातियों के साथ ही आदमियों की भी एक प्रजाति होती है जिसे बिना किसी काम के उन लोगों को रोकने की आदत होती है जो अपने काम पर जा रहे होते हैं। या फिर सामने वाले को देखते ही उन्हें इनसे संबंधित किसी काम की अचानक याद आ जाती है।

आमतौर पर जब भी हम जल्दबाजी में कहीं जा रहे होते हैं तब ऎसे मिलने वाले लोगों का जाने कहाँ से सिलसिला बंध जाता है और तब  इन लोगों को उपेक्षित करते हुए फिर कभी मिलने का भरोसा दिलाते हुए आगे बढ़ जाने की विवशता अक्सर बनी रहती है।

कई सारे आदमियों की फितरत में होता है कि जो कोई अपने काम का व्यक्ति सामने दिख जाता है उससे ये अपने स्वार्थ की बातें करने लग जाते हैं या यह चाहते हैं कि थोड़ी देर उनसे गपिया लें तो मन हलका हो जाए। संबंधों के मामले में ऎसे लोग सबसे निचले दर्जे के हुआ करते हैं जो रास्ते में रोक कर अपनी बात या काम बताते हैं।

ऎसे लोगों के लिए संबंधों से कहीं ज्यादा काम जरूरी होता है और इसलिए वे लोगों को बीच राह में रोकने का प्रयास करते हैं। इस प्रकार की बातचीत करने के आदी लोगों के बारे में स्पष्ट कहा जा सकता है कि ये लोग संबंधों के प्रति गंभीर नहीं होते, सिर्फ बहती गंगा में हाथ धो डालने में माहिर हुआ करते हैं, काम के प्रति भी गंभीर नहीं होते।

ऎसे इंसानों को खुदगर्ज कहा जा सकता है जिन्हें इतनी फुरसत तक नहीं होती कि कार्यस्थल या घर पहुंच कर अपने काम बताएं अथवा फोन/मोबाइल से ही चर्चा कर लें। किसी गंभीर आकस्मिक काम के लिए किसी को भी, किसी भी वक्त रोक कर अपनी बात कहना जायज है लेकिन यों याद न आए, सामने दिख जाने पर याद आ जाए और समय भी चुराते रहें, इसे ठीक नहीं माना जा सकता।

राह चलते हुए लोगों को अपने गंतव्य की ओर जानें दें, इसी में उनकी और अपनी भलाई है। रास्ते में रोक कर अपनी बात कहने के आदी खुदगर्ज लोगों के मनोविज्ञान को समझें तथा यह प्रयास करें कि जिस लक्ष्य को लेकर घर या दुकान-दफ्तर से निकले हैं उस काम को तरजीह दें।

कई बार बीच में आने वाली बाधाओं या रोककर बातचीत करने वाले लोगों की वजह से लक्ष्य प्राप्ति में अटकाव आ जाता है और वह काम पूरा नहीं हो पाता, कोई न कोई अड़ंगे आते ही रहते हैं। बीच में आने या बेवजह रोकने वाले लोग लक्ष्य प्राप्ति में आने वाले अवरोध हैं जिनमें लिप्त हो जाने पर लक्ष्य हमसे दूर हो जाता है जबकि इनकी आदर सहित उपेक्षा करते हुए आगे बढ़ जाने पर लक्ष्य की प्राप्ति का मार्ग सहज हो उठता है। राह की ये बाधाएं अपने लिए चुनौतियां हैं जिन्हें बिना समय गंवाये पार कर लिये जाने पर हमारे जीवन में काम कभी रुकते नहीं, लगातार पूर्ण होते चले जाते हैं। रुको नहीं…बढ़े चलो….। इस मामले में भगवान हनुमान को आदर्श स्वीकारें जिन्होंने लंका पहुंचने के समय आयी सारी बाधाओं को पार कर लिया, न कहीं विश्राम किया, न किसी के झाँसे में आए। लक्ष्य को जल्द से जल्द पाने का उनका जज्बा ही था जिसे उन्होंने सीधे और सपाट शब्दों में यह कह कर प्रकट किया है – राम काजु कीन्ह बिना मोहि कहां विश्राम।

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