भारत के राजनीतिक सुधार अभियान में प्रमुख हैं संविधान संशोधन आंदोलन
भारत का संविधान धर्मनिरपेक्षता के आधार पर बनाया गया है। परंतु संविधान की विभिन्न धाराएं हैं, जिनमें हिंदुओं के अधिकार घटाकर, मुस्लिम, ईसाई व ऐंग्लो-इंडियन्स के अधिकार सुरक्षित किये गये हैं। अत: आवश्यक है कि भारत के संविधान में निहित हिंदू विरोधी प्रावधानों को बदलकर सब नागरिकों को समान अधिकार दिये जाएं।
भारत एक राष्टर है उप महाद्वीप नहीं
भारत के संविधान में राष्टर एवं राष्टरीयता तथा देश एवं देशभक्त को कोई महत्व नही दिया गया है। केवल नागरिकता का उल्लेख है। केन्द्र व प्रदेश सरकारों द्वारा संपादित पाठ्यक्रमों में विश्व विद्यालय स्तर तक भारत को एक उपमहाद्वीप के रूप में पढ़ाया जाता है। भारत सरकार व भारत के अंग्रेजी मानसिकता वाले बुद्घिजीवियों की दुष्टि में भारत एक राष्टर नही अपितु उपमहाद्वीप है। संविधान के अनुच्छेद 1 से 50 तक जहां अधिकारों का वर्णन है, वहां राष्टर कहीं नही है। अनु. 51 में जहां नागरिकों के कर्त्तव्यों का उल्लेख है, वहां राष्टर एवं राष्टरीयता की आवश्यकता दिखाई गयी है। सब प्रकार के ऐतिहासिक सांस्कृतिक एवं पुरातात्विक प्रमाणों से यह सब सिद्घ किया जा चुका है कि भारत मानव सृष्टि का प्रथम राष्टर है। वेदों में भी 34 स्थानों पर राष्टर शब्द का उल्लेख आता है। जब राष्टर ही न ही रहेगा तो राष्टरीयता, राष्टर प्रेम और राष्टर भक्ति की भावना देश की भावी पीढ़ियों में जागृत करना कैसे संभव होगा। इस प्रकार से भारत राष्टर की शाश्वत कल्पना को विकृत व विस्मृत करने वाले तथाकथित बुद्घिजीवियों से प्रश्न है कि भारत एक राष्टर नही है जो राष्टरगान व राष्टरगीत, राष्टरध्वज, राष्टरपति, उपराष्टरपति, राष्टरीय संग्रहालय, राष्टरीय अभिलेखागार, राष्टरीय पक्षी, अशोक की लाट का राष्टरीय प्रतीक, राष्टरकवि, राष्टरीयकरण आदि शब्दों का प्रयोग किस बात का परिचायक है? अत: सब राष्टरवादी चिंतकों द्वारा यह मांग की जानी चाहिए कि संविधान में भारत राष्टर शब्द का स्पष्ट उल्लेख किया जाए तथा राष्टरीयता की विधि व संविधान सम्मत परिभाषा निश्चित की जानी चाहिए, अन्यथा सरकार को यदि राष्टर शब्द से इतन वितृष्णा है तो राष्टरपति व राष्टरगान के स्थान पर उपमहाद्वीप पति व उपहाद्वीपगान का प्रयोग चलने पर विचार करे।
2. देश बनाम राज्यों का संघ (यूनियन ऑफ स्टेट्स)
भारतीय संविधान में भारत अर्थात इंडिया को सर्वप्रभुता संपन्न देश लिखने के स्थान पर राज्यों का संघ दर्शाया गया है। ब्रिटिश राज के समय में यहां यूनियन जब लहराया करताा था। इस आधार पर तो आज भी यूनियन जैक के स्थान पर यूनियन फ्लैग फहरा रहा है। क्या भारत के देशभक्त नागरिक इसे यूनियन फ्लैग फहरा रहा है। क्या भारत के देशभक्त नागरिक इसे यूनियन फ्लैग कहना चाहेंगे? यदि नही तो संविधान में से यूनियन ऑफ स्टेट्स शब्द हटाकर सर्वप्रभुता संपन्न देश लिखे जाने का प्रबल समर्थन करें और वास्तव में सम्मानपूर्वक अपने ध्वज को राष्टर ध्वज की संज्ञा से विभूषित करें।
3. शिक्षा संस्थाओं में हिंदू धर्म शिक्षा पर प्रतिबंध लगाया किंतु अहिंदुओं को यह सुविधा दी गयी।
संविधान की धारा 14 के अनुसार राज्य किसी व्यक्ति को विधि के समक्ष समता से या विधियों के समान संरक्षण से वंचित नही करेगा तथा धारा 15 द्वारा राज्य किसी नागरिक के विरूद्घ केवल धर्म, मूलवंश, जाति लिंग, जन्मस्थान या इनमें से किसी के आधार पर कोई विभेद नही करेगा।
किंतु धारा 14 व 15 में दिये गये अधिकार को धारा 28 (1) में हिंदुओं से छीन लि या गया जिसमें कहा गया है कि राज्य विधि से पूर्णत: पोषित किसी शिक्षा संस्था में कोई धार्मिक शिक्षा नही दी जाएगी जबकि यही अधिकार अल्पसंख्यक वर्गों के हितों का संरक्षण के नाम पर धरा 29 में ईसाई व मुस्लिम आदि अल्पसंख्यक संस्थाओं के लिए सुरक्षित कर दिया गया है तथा धारा 30 में इससे भी आगे बढ़कर सुविधा देते हुए कहा है कि धर्म या भाषा पर आधारित सभी अल्पसंख्यक वर्गों को अपनी रूचि की शिक्षा संस्थाओं की स्थापना और प्रशासन का अधिकार होगा।
अहिंदुओं को कुरान और बाइबिल की शिक्षा देने के लिए सरकार आर्थिक अनुदान देती है जबकि हिंदुओं की शिक्षा संस्थाओं में गीता रामायण की शिक्षा अवैध है। इसका परिणाम हो रहा है कि मुस्लिम व ईसाई नयी, पीढ़ियां कट्टर धार्मिक बनकर निकल रही हैं और हिंदू छात्र छात्राएं नास्तिक बनकर स्वयं अपने ही धर्म का उपहास करने की योग्यता लेकर निकलने लगे हैं। अत: सब राष्टरीवादी चिंतकों द्वारा मांग की जानी चाहिए कि धारा 30 जैसे भेदभाव समाप्त किये जाएं तथा धारा 28 में हिंदुओं पर लगा प्रतिबंध हटाया जाए तथा शिक्षा के साथा धार्मिक शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार प्रदत्त किया जाए।
शिक्षक नियुक्ति का अधिकार हिंदू प्रबंध मण्डल को भी दिया जाए।
कितनी विडंबना है कि अल्पसंख्यक शिक्षा संस्था चलाने वाले प्रबंधकगण को सरकारी सहायता लेकर भी शिक्षा संस्थाओं में अध्यापकों व कर्मचारियों की नियुक्ति व विनियुक्ति के सभी अधिकार प्राप्त हैं, इसमें सरकार कोई हस्तक्षेप नही कर सकती किंतु हिंदू प्रबंध समितियों को इन अधिकारों से वंचित किया गया है जो हिंदुओं द्वारा संचालित कॉलेजों में नियुक्ति का पूरा अधिकार सरकार को प्राप्त है।
रमश: