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प्रमुख समाचार/संपादकीय

आज का चिंतन-30/10/2013

सुकून की बुनियाद है

सृजन सामग्री की शुद्धता

– डॉ. दीपक आचार्य

9413306077

dr.deepakaacharya@gmail.com

 

हर सृजन का शाश्वत सुख और चरम आनंद तभी प्राप्त किया जा सकता है कि जब इनकी बुनियाद शुचितापूर्ण हो तथा इसमें प्रयुक्त सभी तत्व पवित्र भावना से युक्त हों। बात किसी विचार, कल्पना और लक्ष्य की हो अथवा किसी भी प्रकार के पांचभौतिक निर्माण की। यह सूत्र सभी पर समान रूप से लागू होता है।

सूक्ष्म से स्थूलता तक की पूरी यात्रा में मिलावट कहीं भी नहीं होनी चाहिए। आजकल वैचारिक प्रदूषण और बौद्धिक प्रवाह को अपने हिसाब से नियंत्रित कर देने का जो चलन चल पड़ा है उसमें विचार बिन्दुओं के सृजन के बाद पूर्णता तक आते-आते खूब सारी मिलावट होने लगती है और इससे विचार का मूल मर्म ही कहीं खो जाता है।

फिर जिस विचार को मूत्र्त रूप दिया होता है वह सिर्फ और सिर्फ स्थूलता प्राप्त कर निष्प्रभावी होकर रह जाता है, इसका न स्वयं के लिए कोई अर्थ है, न समाज, और न ही अपनी सरजमीं के लिए। हर प्रकार के सृजन को आशातीत सफलता देने और चरम स्तर की प्रभावोत्पादकता बढ़ाने के लिए बीज तत्वों और बुनियाद का मजबूत होना ही काफी नहीं है बल्कि यह भी जरूरी है कि इसमें प्रयुक्त सामग्री भी पवित्र, शुद्ध और ऊर्जायुक्त हो। ऎसा होने पर ही सृजन धर्म का अपेक्षित लक्ष्य प्राप्त हो सकता है।

मूल तत्वों और नींव तथा सामग्री की पावनता ही इसे दिला सकती है। यहाँ बात स्थूल तत्वों की करें तो हम देखते हैं कि जिन निर्माण कार्यों की नींव से लेकर सामग्री में शुद्धता होती है वे निर्माण उसमें रहने और काम करने वालों को यश -प्रतिष्ठा भी देते हैं, समृद्धि का सुख और आरोग्य भी प्रदान करते हैं।

निर्माण की शुरूआत में मुहूर्त से लेकर वास्तु तक की सारी यात्रा में हर मामले में शुचिता का ध्यान रखना जरूरी होता है। अच्छे समय में भूमि पूजन एवं खनन से कार्य आरंभ करने पर उस भूमि की बुनियाद मजबूत और सुकून का घनत्व दोनों अपने मनमाफिक होते हैं।

इसी प्रकार जिस भूमि पर निर्माण हो, उसमें किसी भी प्रकार का भूमिगत दोष अथवा अन्य प्रदूषण नहीं होना चाहिए। यह भूमि अतिक्रमित या हथियायी हुई नहीं होनी चाहिए। अपनी हो तथा धर्मसंगत तरीके से स्व पुरुषार्थ से अर्जित होनी चाहिए।

ये सारी बातें भूमि पूजन से पूर्व ही देख ली जानी चाहिएं अन्यथा अतिक्रमण की हुई, दूसरों को दुःख देकर अन्यायपूर्वक अर्जित, हड़पी हुई जमीन पर भले ही कितने ही मंजिला आलीशान भवन बना दिया जाए, उसमें रहने वालों को किसी भी प्रकार का कोई सुकून प्राप्त नहीं हो पाता है। ऎसे में मकान बन जाने के बाद वास्तु को दोष देना ठीक नहीं।

ऎसे भवनों में रहने वाले लोग ताजिन्दगी बीमारियों, कलह, अशांति और उद्वेग के साथ जीते हैं और आसानी से मौत भी नहीं आती। भवन निर्माण के लिए जितनी बुनियादी शुद्धता जरूरी होती है उतना ही जरूरी है निर्माण सामग्री का शुद्ध होना। इस सामग्री में हड्डियों के टुकड़े, लौह-लक्कड़, विष्ठा, प्लास्टिक, कचरा आदि गंदी वस्तुओं का थोड़ा सा अंश भी आ जाता है तब भवन निर्माण दूषित हो जाता है।

आजकल भवन निर्माण की सामग्री की शुद्धता पर कहीं कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है। श्वान और दूसरे जानवरों द्वारा गंदगी फैलायी जाती है, लोग इस सामग्री पर मूत्रोत्सर्ग करते हैं और गंदगी फेंकते रहते हैं। कई बार मरे हुए जानवरों को डाल दिया जाता है।

ये सारी स्थितियां भवन निर्माण के लिए नकारात्मक हैं। अपना भूखण्ड भी इन सभी प्रकार की गंदगी से मुक्त होना चाहिए, और निर्माण सामग्री भी, जिसमें लोहा, काष्ठ, ईंट, गारा, रेत आदि सब कुछ आ जाता है।

फिर भवन का उद्घाटन भी अच्छे मुहूर्त में होना चाहिए। भवन का सुकून पाने के लिए बुनियाद से लेकर गृहप्रवेश तक की सारी क्रियाएं शुचितापूर्ण होनी चाहिएं अन्यथा कोई सा कितना ही आलीशान और बेशकीमती भवन क्यों न हो, सिर्फ दिखावा बन कर रह जाता है, इससे सुकून कभी नहीं मिल सकता।

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