मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के चरित्र और कार्यशैली पर एक महत्वपूर्ण लेख माला
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अपने मित्र निषाद राज गुह से श्री राम कह रहे हैं|
जटा कृत्वा गमिष्यामि न्यग्रोधक्षीर मानय|
तत्क्षीर राजपुत्राय गुह: छिप्रमुपाहरत्|| (अयोध्या कांड)
मैं जटा धारण कर वन में प्रवेश करूंगा इसलिए हे गुह! तुम बरगद का दूध ले आओ| यह सुन गुह बरगद का दूध ले आया| श्रीराम ने बरगद के दूध से अपनी और लक्ष्मण की जटा बनाई | महाबाहु श्री राम और लक्ष्मण जटा रखकर तपस्वी बन गए|
वाल्मीकि रामायण के इस 41 सर्ग में बरगद, बरगद के दूध का उल्लेख मिलता है| प्रश्न यह उठता है श्रीराम ने बरगद के दूध का ही चयन क्यों किया? श्री राम बरगद के दूध के औषधीय महत्व से भलीभांति भांति परिचित थे राजकुमारों को आयुर्वेद भी पढ़ाया जाता था | देशकाल प्रकृति परिस्थिति के साथ बेहतर तारतम्यता स्थापित करने की कला में माहिर थे श्री राम| बालों के लिए उत्तम रसायन है बरगद का दूध| जंगल में बाल कटाना संभव नहीं है जटा रखी जाती है| यही कारण है ऋषि मुनि बरगद के दूध का बालों पर इस्तेमाल करते थे इससे बालों में गंदगी जु परजीवी ना पनप सकें बरगद का दूध कृमि नाशक भी होता है| बरगद का दूध प्रकृति में शीतल होता है यह मस्तिष्क को शीतलता भी देता है बालों के अधिक रखने से मस्तिष्क में उष्णता आ जाती है यह उसको बैलेंस करता है| बरगद एकमात्र ऐसा वृक्ष है जो संपूर्ण भारतवर्ष में पाया जाता है| कोई भी इस वृक्ष के लाभ से वंचित नहीं रह सकता| यही कारण है यह हमारा राष्ट्रीय वृक्ष भी है| आयुर्वेद में बरगद के दूध के प्रयोग का विस्तृत वर्णन मिलता है| प्रातः खाली पेट यदि बरगद के दूध की एक से लेकर चार पांच बूंदों का 1 बतासे में रखकर सेवन कर लिया जाए तो इससे उत्तम शारीरिक मानसिक शक्ति के लिए कोई टॉनिक नहीं है…. यह नस नाड़ियों मांसपेशियों को मजबूती प्रदान करता है………….|
बरगद के वृक्ष की समिधा से हवन करना बहुत उत्तम परिणाम दायक होता है|
वाल्मीकि रामायण में बरगद के वृक्ष का अनेक कांडों में उल्लेख मिलता है जहां वर्णन मिलता है मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम, माता सीता ने लक्ष्मण सहित वनवास की अनेक रात्रिया बरगद के वृक्ष के नीचे व्यतीत की| निष्कर्ष यही निकलता है बरगद वृक्ष का प्राचीन भारत की संस्कृति से अनूठा संबंध रहा है| दुधारू चौपाई पशुओं में जो स्थान गौ माता का है वृक्षों में वही स्थान बरगद का रहा है|
शेष अगले अंक में
आर्य सागर खारी✍✍✍