फतेहसिंह जोरावरसिंह का बलिदान
इसी प्रकार जोरावरसिंह व फतेहसिंह का बलिदान भी पंजाब की बलिदानी भूमि की एक पवित्र धरोहर है। अपने दोनों पुत्रों की शहादत के समय गुरु गोविन्द सिंह ने एक पौधे को उखाड़ते हुए कहा था कि जैसे यह पौधा जड़ से उखड़ आया है वैसे ही एक दिन हिन्दुस्तान से तुर्की शासन को जड़ से उखाड़ दिया जाएगा । मेरे सिक्ख एक दिन सरहिन्द की ईंट से ईंट बजा देंगे। 27 दिसम्बर 1704 की इस घटना के 10 वर्ष पश्चात वीर बन्दा बैरागी ने 1714 ई0 में सरहिन्द की ईंट से ईंट बजा कर गुरु वचनों को साकार कर दिया था।
प्रचलित इतिहास में इन सारे बलिदानों को इस प्रकार दिखाया गया है जैसे यह किसी व्यक्ति विशेष के लिए दिए गए बलिदान थे और उनका देश, धर्म से कोई संबंध नहीं था। जबकि हम यह भूल जाते हैं कि गुरु तेग बहादुर जिस उद्देश्य को लेकर गए थे वह केवल और केवल देश , धर्म व संस्कृति से जुड़ा हुआ विषय था। इसलिए इन सबका बलिदान देश ,धर्म व संस्कृति की रक्षा के लिए दिया गया बलिदान माना जाना चाहिए। इतिहास के इस रोमांचकारी पक्ष से ही हमारा वास्तविक इतिहास लोगों के सामने आ सकता है।
प्रतिशोध का नाम बना बन्दा वीर बैरागी
गोविन्दसिंह ने उस समय अनेकों हिन्दू वीर योद्धाओं को देशभक्ति का पाठ पढ़ाते हुए तत्कालीन क्रूर मुगल सत्ता का प्रतिरोध करने के लिए प्रेरित किया था ।ऐसे ही योद्धाओं में से एक योद्धा बन्दा वीर बैरागी था। गुरु की दृष्टि जब इस योद्धा पर पड़ी तो पहले प्रभाव में ही भाँप गए कि यह नवयुवक देश के लिए बहुत ही अधिक उपयोगी सिद्ध होगा । और ऐसा ही हुआ भी। बन्दा बैरागी उस वीर योद्धा का नाम है जिसके नाम से भी मुगलों को उस समय डर लगने लगा था। उस समय हिन्दू और सिख दोनों ही यह समझ गए थे कि गुरुजी ने बन्दा वीर बैरागी को किस उद्देश्य से आगे किया है ? यही कारण था कि अनेकों लोग बन्दा बैरागी के साथ आकर मिलने लगे। भाई परमानन्द जी लिखते हैं :– “घृणा और अपमान से भी यह बात सिक्ख सहन नहीं कर सके और नौकरी छोड़ बैरागी से आ मिले । सरहिन्द के नवाब ने बैरागी को बिल्कुल गलत समझा था। इसके भीतर विद्युत शक्ति थी । वहीं थोड़ी सी फौज तैयार हुई । इसने सामान के नगर पर चढ़ाई कर दी और साथ ही यह घोषणा कर दी कि जो लूट का माल जिसके हाथ आएगा उसका मालिक लूटने वाला ही होगा । नगर में खूब लूटमार हुई । 3 दिन तक सामान की ईंट से ईंट बजती रही । लोग जंगलों में भाग गए । जो कबाब खाते थे अब झाड़ियों के बेर खाते । जो मखमल के बिस्तरों पर सोते थे अब पत्थरों का सिरहाना लगाते । इस नगर पर प्रकोपों का विशेष कारण यह था कि स्थानीय अली हुसैन जिसने गुरु को धोखा करके आनन्दपुर छुड़वाया था , इसने गुरु के बच्चे के बारे में सरहिन्द के सूबे से कहा था – सांपों के बच्चे सांप ही होते हैं।”
वीर बैरागी हिन्दू राज्य की स्थापना के लिए जीवन भर संघर्ष करता रहा और अन्त में अपना बलिदान देकर संसार से विदा हो गया । परन्तु बलिदान देने से पहले मुगल सत्ता को उखाड़ने में जितना महत्वपूर्ण योगदान उसने दिया इतना उस समय के किसी अन्य योद्धा का नहीं था । इस वीर योद्धा ने मुगल सत्ता को उखाड़ कर गुरु गोविन्द सिंह जी की उस भविष्यवाणी को सत्य सिद्ध किया जो उन्होंने अपने दो पुत्रों के जिन्दा दीवार में चुनवाए जाने के समय एक पौधे को उखाड़कर यह कहते हुए की थी कि जैसे यह पौधा उखाड़ लिया गया वैसे ही एक दिन मुगल सत्ता भी उखाड़ दी जाएगी । इन घटनाओं से और इतिहास के इन तथ्यों से स्पष्ट होता है कि हमने संकल्पों को व्यवहारिक स्वरूप देकर उन्हें क्रियान्वित भी किया है और समय आने पर अत्याचारी शासकों को उखाड़ने में सफलता भी प्राप्त की है।
साक्षात यम बन गया था बंदा बैरागी
वीर बैरागी के बारे में मोहम्मद लतीफ ने अपनी पुस्तक ‘पंजाब का इतिहास : पूर्व काल से वर्तमान काल तक’ में लिखा है :- “इसने सहस्रों मुसलमानों का वध किया । मस्जिद और खानकाहें मिट्टी में मिला दीं। घरों में आग लगा दी और स्त्रियों व बच्चों की हत्या की । लुधियाना से लेकर सरहिन्द तक समस्त प्रदेश साफ कर दिया। पहले यह सरहिन्द आया गुरु गोविन्द सिंह के बच्चों के प्रतिकार ( कृपया पाठक ध्यान दें, मुस्लिम इतिहासकार कह रहा है कि सरहिन्द में बैरागी गुरु के बच्चों का प्रतिकार लेने आया था ) में नगर को आग लगा दी । बालक या स्त्री का कोई विचार नहीं रखते हुए सब निवासियों को मार डाला। मृतकों को कब्रों से निकालकर चील और कौवों को खिलाया । सारांश यह है कि जहाँ कहीं गया , तलवार से काम लिया ।इसी कारण मुस्लिम इसे यम कहने लगे।”
इस हिन्दू वीर योद्धा को मुगलों ने बड़ी निर्दयता के साथ मारा था । वध स्थल पर मुगल बादशाह फर्रूखसियर स्वयं भी उपस्थित था । बादशाह ने स्वयं बैरागी से पूछा था कि अब तुम्हारी अन्तिम घड़ी आ चुकी है , बताओ तुम्हें किस प्रकार मारा जाए ?
तब बैरागी ने बड़ी वीरता के साथ कहा था :- “आप जैसे चाहें ,वैसे मेरा वध कर सकते हैं ।”
बादशाह ने बैरागी को अपने हाथ से एक छुरा पकड़ाया और उस छुरा को बैरागी से उसके पुत्र की छाती में भोंकने के लिए कहा । वैरागी ने कहा – नहीं मैं यह नहीं कर सकता । तब जल्लादों द्वारा बैरागी के पुत्र का कलेजा निकाल कर उसे बैरागी के मुँह में डालने का प्रयास किया गया । जिसे उन्होंने लेने से इनकार कर दिया । तब बड़ी यातनाओं के साथ बैरागी का वध किया गया।
जल्लादों ने उन्हें लोहे की गर्म सलाखों और तपे हुए लाल चिमटों से मारना आरम्भ किया । उसके मांस के टुकड़े खींचना आरम्भ कर दिया । बहुत ही मार्मिक दृश्य उत्पन्न हो गया । जिन लोगों के हृदय सचमुच धड़कते थे उनके हृदय की धड़कनें रुक गईं और बैरागी के स्थान पर वे भीतर ही भीतर चीत्कार करने लगे । बैरागी के शरीर की हड्डियां दिखने लगीं , पर उसने न तो कोई चीत्कार निकाली और ना ही अपने देश प्रेम पर किसी प्रकार का पश्चाताप किया । अत्यंत करुणाजनक स्थिति में मां भारती का यह शेर पुत्र बलिदानी परम्परा पर हुतासन में बैठ गया।
भाई परमानन्द जी ने उनके बलिदान पर लिखा है :–” इस देश के अन्दर एक वीर उत्पन्न हुआ । जिसके जीवन के कारनामे अनुपम हैं। जिसकी शहादत अद्वितीय है , परन्तु आश्चर्य तो केवल इस बात का है कि इस जाति ने (अर्थात हिंदुओं ने ) ऐसे वीर शिरोमणि को भुला दिया । यदि इसके आत्मावसान पर कोई इस समाधि न हो तो कोई हर्ज नहीं , यदि इसका और किसी प्रकार का कोई स्मारक ना हो तो कोई परवाह नहीं , परन्तु यदि हिन्दू बच्चों के हृदय मन्दिरों में राम और कृष्ण की तरह बैरागी का नाम नहीं बसता तो जाति के लिए इससे बढ़कर और कोई अक्षम्य पाप ना होगा।”
इस वीर योद्धा पर हमारी पुस्तक ‘हिन्दू राष्ट्र स्वप्नद्रष्टा : बंदा वीर बैरागी’ – पठनीय है । जिसमें बंदा वीर बैरागी और उसके जीवन पर विस्तृत प्रकाश डाला गया है । साथ ही उस समय के अनेकों वीर योद्धा और उन देशभक्तों का विस्तार से उल्लेख किया गया है , जिन्होंने उस समय भारत के स्वाधीनता संग्राम की ज्योति को बुझने नहीं दिया और निर्दयी मुगल सत्ता को उखाड़ने में उल्लेखनीय योगदान दिया।
गुरुओं के द्वारा भारत की बलिदानी परम्परा सजी रही। सर्वत्र बलिदानों की ऐसी झड़ी लगी कि मुस्लिम सत्ता को बलिदानी फसल काटना तक कठिन हो गया।
डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत एवं
राष्ट्रीय अध्यक्ष : भारतीय इतिहास पुनरलेखन समिति
मुख्य संपादक, उगता भारत