सीमा समझौता में चीन की चाल
जब नरेन्द्र मोदी देश में भाजपा की लहर को और भी प्रभावी बनाते घूम रहे हैं तो उस समय देश के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह विश्व की दो बड़ी शक्तियों रूस और चीन के दौर पर रहे हैं। यह बड़े ही आश्चर्य का विषय है कि जब देश का वर्तमान पी.एम. विदेशी दौरे पर रहा और भाजपा का भावी पी.एम. देशी दौरे पर रहा तो देश के लोगों को वर्तमान पी.एम. के दौरों के प्रति कोई आकर्षण नही रहा बल्कि, देश का ध्यान (विशेषत: युवा वर्ग का) भाजपा के भावी पी.एम. की ओर रहा कि वह आज कहां होंगे और कल कहां होंगे?
ऐसी परिस्थितियों के बीच मोदी की खबरों की कवरेज अधिक रही और पी.एम. मनमोहन सिंह की महत्वपूर्ण यात्राओं को भी अधिक प्रमुखता नही दी गयी, जो कि वास्तव में दी जानी चाहिए थी, क्योंकि मोदी भाजपा के पी.एम. इन वेटिंग हैं तो मनमोहन सिंह देश के वर्तमान प्रधानमंत्री हैं। फिर भी प्रधानमंत्री चीन की यात्रा करके लौटे हैं, उन्होंने चीन के अपने समकक्ष के साथ सीमा संबंधी समझौता भी किया है। जिसकी जांच पड़ताल की जानी अपेक्षित है। भारत और चीन ने वास्तविक नियंत्रण रेखा पर सेना के बीच टकराव और सीमा पर तनाव टालने के लिए 23 अक्टूबर को एक व्यापक समझौते पर हस्ताक्षर किये हैं। जिसके तहत दोनों देशों ने फेेसला किया है कि कोई भी पक्ष दूसरे पक्ष पर हमला करने के लिए सैन्य क्षमताओं का प्रयोग नही करेगा और ना ही सीमा पर गश्ती दलों का पीछा करेगा। यह समझौता दोनों देशों के प्रमुखों प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह तथा प्रधानमंत्री ली क्विंग के बीच ग्रेट बीजिंग के ग्रेट हॉल ऑफ दी पीपुल में आयोजित एक वार्ता में संपन्न हुआ।
लंबे समय से दोनों देश सीमा संबंधी विवाद से जूझते रहे हैं। चीन के विषय में एक निर्विवाद सत्य है कि वह एक साम्राज्यवादी देश है जो आज भी मध्यकालीन इतिहास की उन परंपराओं में विश्वास रखता है, जब एक राजा की सेनाएं दूसरे राजा की सीमाओं का अतिक्रमण केवल इसलिए किया करती थीं कि इस प्रकार उसके साम्राज्य का विस्तार संभव हो जाएगा। इस प्रवृत्ति को आज के सभ्य संसार ने शांति के लिए घातक माना और इसलिए इन जालिम परंपराओं को इतिहास के कूड़ेदान में फेंक दिया गया। लेकिन चीन ने इस घातक प्रवृत्ति को अपनाए रखा। चीन की यह सोच संयुक्त राष्ट्र की सत्ता और अस्तित्व के लिए एक चुनौती है। लेकिन विश्व ने चीन जैसे प्रमुख राष्ट्र की शांति विरोधी नीति को अधिक गंभीरता से नही लिया। फलस्वरूप चीन ने अपने हर पड़ोसी से सीमा संबंधी विवाद पाल लिए। आज चीन का कोई भी पड़ोसी ऐसा नही है जिससे उसका सीमा संबंधी विवाद ना हो। भारत भी उनमें से एक है।
यद्यपि भारत का चीन से सीमा संबंधी विवाद बहुत पुराना है परंतु ब्रिटिश समय में चीन की तत्कालीन सरकार ने इस विवाद को निपटा लिया था। अंग्रेज अधिकारी ‘मैकमहोन’ ने एक स्थाई रेखा भारत चीन के नक्शे के मध्य खींची और दोनों देशों ने उसे सीमा समस्या का स्थायी समाधान मानने की स्वीकृति दी। परंतु जब आजादी के पश्चात कम्युनिस्ट लाल चीन ने दुनिया को अपनी आंखों से देखना आरंभ किया तो उसकी आंखों में खून की लालिमा दीखने लगी और उसने स्पष्ट कर दिया कि भारत के साथ उसका सीमा संबंधी विवाद ज्यों का त्यों है। क्योंकि वह ‘मैकमहोन’ रेखा को मान्यता नही देता। चीन की इसी नीति ने भारत के साथ 1962 में युद्घ को निमंत्रित किया और हमें भारी क्षति उठानी पड़ी। उसके पश्चात चीन और भारत की दुश्मनी पूर्ण दोस्ती ने कई उतार चढ़ाव देखे हैं। कई बार सीमा पर होली मिलन हुआ है, लेकिन वह ‘ओली मिलन’ नही बन सका। क्योंकि चीन की कुटिलता सदा ही ‘ओली’ के लिए अशुभ बनी रही।
ऐसी पृष्ठभूमि में चीन के साथ जो समझौता किया गया है उसके उपरांत भी भारत के प्रधानमंत्री ने स्पष्ट किया है कि चीन के साथ सीमा संबंधी समस्या का समाधान अभी बहुत जल्दी हल होने वाला नही है। प्रधानमंत्री की इस टिप्पणी में सच्चाई है, परंतु फिर भी पी.एम. से उनकी विनम्रता की शैली में ही पूछा जा सकता है कि 2004 से वह देश के पी.एम. हैं तो क्या उन्होंने 2004 से ही चीन के विषय में यह मन बना लिया था या 2014 की पूर्व संध्या पर आते आते बनाया है? यदि 2004 में ही बना लिया था तो दस वर्ष का समय देश की जनता ने उन्हें दिया और उन्होंने चीन के प्रति कोई गरमाहट या विवाद सुलझाने के प्रति गंभीरता इसलिए प्रकट नही की कि वह शुरू से ही इस विवाद को कभी न सुलझने वाला विवाद मानकर चले। यदि ऐसा था तो उसे भी उचित नही कहा जा सकता क्योंकि देश के पी.एम. को देश की सीमाओं की चिंता पहले होनी चाहिए और यदि उनकी चीन के प्रति यह धारणा 2014 की पूर्व संध्या पर बनी है तो इसे हमारे विनम्र पी.एम. की निराशा ही माना जाएगा। यह निराशा देश की सवा अरब की आबादी की भावनाओं के विरूद्घ है। इसके उपरांत भी चीन ने सीमा संबंधी समझौते में यह लिखवाया है कि कोई भी पक्ष दूसरे पक्ष पर हमला करने के लिए सैन्य क्षमताओं का प्रयोग नही करेगा और ना ही सीमा पर गश्ती दलों का पीछा करेगा। इस पंक्ति की पड़ताल यदि की जाए तो हमें अधिक खुश होने की आवश्यकता नही है। हम निश्ंिचत होकर ना बैठें क्योंकि यह पंक्ति चीन को लाभ पहुंचा सकती है। वह हमारी सीमाओं का अतिक्रमण करेगा और हमारे सैनिकों के प्रतिरोध पर विश्व के सामने यही कहेगा कि हमारे गश्ती दल का पीछा करके भारत सीमा संबंधी समझौते का उल्लंघन कर रहा है। सीमा संबंधी विवाद को हम जितना लटका रहे हैं उतने ही हम विवाद की वर्तमान स्थिति को स्थायित्व दे रहे हैं जिससे चीन ही फायदे में रहेगा। इसीलिए वह ‘नत्थी वीजा’ सिस्टम को लागू रखना चाहता है। चीन की चाल से समझना होगा और संपन्न समझौते से अधिक उम्मीदें पालने की बीमारी से भी हमें बचना होगा।