मनोज कुमार राय
देश भक्ति शब्द सुनते ही शरीर रोमांच से भर जाता है । एक ऐसा भाव पैदा होता है जो शब्दों में व्यक्त करना असंभव सा प्रतीत होता है । दिल ख़ुशी से भर जाता है जैसे अचानक पतझड़ में बहार आ गयी हो । एक ऐसा जोश और जिम्मेदारी का भाव पैदा हो जाता है जो समय और ऊम्र की सीमा को तोड़कर सबमे एकरूपता का बोध कराने लगता है । जाति, वर्ग, संप्रदाय और धर्म की सारी सीमायें जैसे टूट जाती है और प्रेम एवं बन्धुत्व की निर्मल धारा बहने लगती है । दिल गर्व का अनुभव करना शुरू कर देता है क्योकि देश के लिये त्याग की भावना अपने उत्कर्ष पर पहुँच जाती है फिर जबां पे ये शब्द अपने आप आने लगते हैं :-
“जो भरा नहीं है भावों से बहती जिसमे रसधार नहीं, वह ह्रदय नहीं पर पत्थर है जिसमे स्वदेश का प्यार नहीं “
यह सुनने, देखने, महसूस करने में बहुत अच्छा लगता है । पर जब हम सिक्के के दुसरे पहलुओं पर ध्यान करते है तब कुछ अनुत्तरित प्रश्न जैसे अपने आप मुहबाये खड़े हो जाते हैं । उन प्रश्नों पर गौर करने से जैसे रोमांच छीड़ होना शुरू कर देता है, प्रेम एवं बन्धुत्व के निर्मल धारा जैसे मानो अपनी तीब्रता खोना शुरू कर देती है और दिल एवं दिमाग कुंद हो जाता है । पुरे का पूरा उल्लास एवं जोश स्वतः ही जैसे समाप्ति की घोषणा करना शुरू कर देता है और साथ ही साथ मन में यह प्रश्न उठता है क्या ऐसा भी होता है ?
स्वार्थ में पड़कर किया गया कार्य और सोच देश भक्ति की राह में सबसे बड़ा रोड़ा है । कोई यह बोले की वह तो आम नागरिक है वो देश के बारे में क्या सोचे, यह उसका काम नहीं है । यह तो शाषन करने वालों का काम है । अगर कृषक कहे कि वह केवल अपने लिए अन्न पैदा करेगा, उसको देश और देश के लोगों से क्या लेना देना है । वैज्ञानिक बोले की वह तो नौकरी इसलिए कर रहा है कि उसका तथा उसके परिवार का भरण पोषण हो सके । इसी तरह शिक्षक, सैनिक और नेता भी बोलने लगे तो देश का क्या होगा ? क्षेत्रवाद, भाषावाद, जातिवाद तथा धर्म या सम्प्रदायवाद राष्ट्रीय एकता में सबसे बड़ी बाधा हैं । अराजक एवं असामाजिक तत्व देश को खोखला करने में लगे हुए हैं । कठिनाइयों से डरकर, अपने कर्तव्यों के प्रति उदासीनता भी देश भक्ति की भावना को कमजोर बनाती है । नौजवानों का भटकना असामाजिक तत्वों के वर्चस्व को दर्शाता है । अच्छे और देश भक्तों का निरादर करना तथा देश भक्ति की भावना का उपहास करना एक आम बात हो गई है ।
आज समाज ऐसे तत्वों की कमी नहीं है जो एक अपराधी को हीरो के रूप में देखते हैं । कानून तोडना, संविधान की आलोचना करना, देश के खिलाफ बोलना और किसी समाज विशेष को खुश करने के लिए देश द्रोही कृत्य करना या उसका परोक्ष या प्रत्यक्ष रूप से समर्थन करना भी देश भक्ति की राह में बहुत बड़ा अवरोध है । देश में ऐसे लोग बहुतायत से मिल जायेंगे जो गलत काम या यूँ कहें कि कानून तोडना गर्व की बात समझते हैं । क्या उनके लिए देश प्रेम और देश प्रेमी की अलग परिभाषा है ? नहीं ! यह केवल भटकाव है, एक ऐसा सन्नाटा है जो देश और समाज के अस्तित्व पर प्रश्नचिन्ह लगता है ।
यह मेरी आकांक्षा है । इन बुराइयों और अवरोधों को दूर करना होगा, यह हमारी पहली जिम्मेदारी बनती है । यह पढने, पढ़ाने या किताबों से नहीं आयेगी वल्कि इसके लिये सोच पैदा करनी होगी । अंतरमन में भाव उत्पन्न करने होगे । देश का प्रत्येक नागरिक देश के लिए सामान रूप से जिम्मेदार होता है । हर एक आदमी जो कुछ अपने लिए करता है वह केवल उसके लिए नहीं होता है अन्ततः उसका वह कार्य उसके कुटुंब, समाज और फिर देश के लिए समर्पित हो जाता है । कोई भी काम न तो छोटा होता है और न तो बड़ा । हर एक काम जो देश और समाज के काम आये वह महान होता है । आइये हम सभी आपनी जिम्मेदारियों को समझें और एक दुसरे से कन्धा मिलाकर देश और देश के विकास के राह में पड़ने वाले सारे अवरोधों को दूर करते हुये शांति और समृध्धि का वातावरण बनायें । समतामूलक समाज की स्थापना करते हुये एक ऐसी भूमि तैयार करें जो भविष्य की स्वर्णिम धरोहर बन जाये और आगे आने वाली पीढ़ी इससे प्रेरणा लेकर विश्वशांति के मार्गपर अग्रसर रहे जिससे इतिहास का यह कालखंड भारत को शांति सम्राट के रूप में अमर रखे ।
इसी उपलक्ष्य में मै अपनी कविता की चंद पंक्तियों के साथ इस लेख को विराम दे रहा हूँ :-
“”बहुत हुआ अब बंद करो, भटकन का अब अंत करो, देश हमारा ऊपर है, देश भक्ति सर्वोपरि है,
विविध बाधा आती रहती, आकांक्षा लुभाती रहती, विश्वशांति के अग्रदूत हम , “स्वामी” के अग्रज सपूत हम,
बनकर शांति सम्राट विश्व के, अमर करें यह काशी, हम हैं भारतवासी, हम हैं भारतवासी “”
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