नौकरशाही में मुस्लिम घुसपैठ पर सुदर्शन न्यूज़ ने किया कुछ नए और भयानक तथ्यों का खुलासा
सुदर्शन न्यूज चैनल के एडिटर इन चीफ सुरेश चव्हाणके ने कुछ दिनों पहले अपने चैनल पर एक सीरीज लाने का ऐलान किया। उन्होंने 25 अगस्त को ट्वीट करते हुए बताया कि उनके चैनल पर 28 अगस्त से एक ऐसी सीरिज शुरू होगी, जिसमें वह कार्यपालिका के सबसे बड़े पदों (IAS-IPS) पर मुस्लिमों की बढ़ती संख्या पर बात करेंगे।
इस घोषणा के साथ उन्होंने सीरिज का परिचय देने के लिए एक वीडियो साझा की। इस वीडियो में हम उन्हें कुछ सवाल करते देख सकते हैं। वह दावा करते हैं कि उनकी सीरिज सरकारी नौकरशाही में मुस्लिमों के घुसपैठ का खुलासा करेगी।
दरअसल, सुरेश चव्हाणके ने उस उस दुखती नब्ज पर हाथ रख दिया है, जिसके कारण हो रही पीड़ा से छद्दम सेक्युलरिस्टों को उछलना लाजमी है। वैसे इस मुद्दे पर काफी समय से चर्चा गर्म थी, सवाल यह था कि बिल्ली के गले में घंटी बांधे कौन? और घंटी बांधने का काम सुरेश ने कर दिया है। कोई और चैनल अपनी TRP के चक्कर में इस मुद्दे पर चर्चा तक करने को तैयार नहीं था, लेकिन सुदर्शन चैनल ने देश में नियुक्तियों/चयन में धर्म के आधार पर हो रही प्राथमिकता धांधली को उजागर कर, राष्ट्र के सम्मुख ज्वलंत समस्या को प्रस्तुत किया है। प्रतियोगिता में किसने अच्छे अंक लिए हैं, चयन उसी आधार पर होना चाहिए, मजहब के नाम पर अलग से अंक देकर प्रथम स्थान प्राप्त करने वाले पीछे धकेल देना, क्या उसके साथ बेइंसाफी नहीं? लेकिन छद्दम धर्म-निरपेक्ष इसे साम्प्रदायिकता का रंग देकर, फ़िज़ा ख़राब करने की बात बोल रहे हैं।
उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के कार्यकाल में हुए मुज़फ्फरनगर दंगे में क्या हुआ था, उस समय की फाइलों को खोलो। हिन्दू पुलिस वालों ने कुछ दंगाइयों को पकड़ कर सुरक्षा की दृष्टि से अधिकारीयों के आने तक हवालात में डाल दिया। जैसे ही वह मुस्लिम अधिकारी आया, उसने उन्हें छोड़ने के लिए बोला, जिसका उन पुलिसकर्मियों द्वारा विरोध करने पर उस पुलिस अधिकारी के साथ उनकी मार-पिटाई भी हुई, उस झगडे के दौरान उस मुस्लिम अधिकारी ने कहा था, “पहले मैं मुसलमान हूँ, पुलिस बाद में…”, इतना ही नहीं मुलायम सिंह ने इस शर्मनाक हरकत पर उस अधिकारी के विरुद्ध कोई कार्यवाही करने की बजाए उसकी पीठ थप-थपाई थी। अगर किसी हिन्दू ने यही बात कही होती “क्या तब भी उसकी पीठ थपथपाई होती?” विपरीत इसके फिरकापरस्ती करने के इल्ज़ाम में उस अधिकारी पर कानूनी कार्यवाही की जाती। जिसका उल्लेख उस समय हिन्दी पाक्षिक को सम्पादित करते लेख में किया था, और वही हादसा 11, अशोका रोड पर हुई “मुज़फरनगर दंगा : एक सच” चर्चा के दौरान वहां के भाजपा नेता हुकुम सिंह ने अपने भाषण में बताया। इतनी मीडिया मौजूद थी, सब चाय/कॉफी, समोसे और रसगुल्ले खाकर चले गए, परन्तु किसी भी मीडिया ने इस समाचार को लेशमात्र भी जगह नहीं दी। क्योकि केंद्र में यूपीए और उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी सत्ता में थी। जबकि मैं पहले ही इस समाचार को प्रकाशित कर चूका था। देखिए संलग्न पृष्ठ।
वे पूछते हैं, “आखिर अचानक मुसलमान आईएएस, आईपीएस में कैसे बढ़ गए? सबसे कठिन परीक्षा में सबसे ज्यादा मार्क्स और सबसे ज्यादा संख्या में पास होने का राज क्या है? सोचिए, जामिया के जिहादी अगर आपके जिलाधिकारी और हर मंत्रालय में सचिव होंगे तो क्या होगा?”
सोशल मीडिया पर अब इसी विवादित वीडियो के कारण बवाल हो गया है। कई मुस्लिम एक्टिविस्टों और लेफ्ट लिबरल्स ने सुरेश चव्हाण पर नफरत फैलाने का आरोप लगाया। साथ ही उनके अकाउंट को सस्पेंड करने की माँग की है। सैफ आलम नाम के वकील ने इस बीच मुंबई पुलिस में सुरेश के ख़िलाफ़ शिकायत दायर करके केस की जानकारी भी दी।
कई आईएएस-आईपीएस अधिकारियों ने भी इस ट्वीट के खिलाफ़ अपनी राय रखी। वहीं आईपीएस एसोसिएशन ने भी इस वीडियो की निंदा की है। उनके अलावा वामपंथी गिरोह के लोग भी इसे अपने लिए एक ‘मौका’ समझकर ट्वीट कर रहे हैं।
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