बिहार में साम्यवादी उग्रवादी ने भी फैलाया है जातिवाद : डॉ राकेश कुमार आर्य
बिहार की राजनीति को जातिवाद से पीड़ित करने और उसे पूर्णतया जहरीला बनाने में साम्यवादी उग्रवाद ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है । भारत में हिंदू को कमजोर करने में साम्यवादी दल सबसे अधिक सक्रिय रहते हैं । सर्वहारा वर्ग के आधार पर साम्यवाद अर्थात समाज में समानता की बात करने का लोक लुभावना नारा देकर भी साम्यवादी दल जातिवाद ऊंच-नीच छुआछूत को इतना अधिक बढ़ावा देते हैं कि उससे देश का सारा सामाजिक परिवेश ही जहरीला हो गया है ।
जातिवाद की राजनीति से ग्रस्त रहे बिहार में पिछड़ा वर्ग की राजनीतिक आकांक्षा राजनीतिक सत्ता प्राप्त करने की रही । इसके पीछे सोच यह भी थी कि यदि पिछड़ा वर्ग सत्ता प्राप्त करने में सफल होगा तो निश्चय ही पिछड़ी जातियों के आर्थिक जीवन स्तर में भी सुधार होगा । जबकि इसी समय बिहार में सामंती सोच को मानने वाले जमींदार अपनी सामाजिक हैसियत को ज्यों की त्यों बनाए रखने के लिए संघर्ष कर रहे थे । ये जमींदार यथास्थिति के समर्थक थे।इस दौरान कई कम्युनिस्ट संगठन बिहार में स्थापित हुए, कम्युनिस्ट पार्टियों ने भूमिहीन दलितों और गरीब किसान जातियों का समर्थन उच्च जातियों और “उच्च पिछड़ी जाति” के जमींदारों के खिलाफ किया। कम्युनिस्ट पार्टियों ने अपने राजनीतिक हित साधने के लिए समाज में जातीय आधार पर लोगों के बीच दूरी बढ़ाने का काम किया ।
कोइरी, कुर्मी और यादव जातियों का एक बड़ा हिस्सा भी जमींदारों का था, लेकिन इन जातियों की महत्वपूर्ण आबादी मध्यवर्ती किसान थे, जो अपनी जमीन पर काम करते थे और दूसरों की भूमि पर काम करना अपनी गरिमा से नीचे मानते थे। इन लोगों की इसी कमजोरी का लाभ कम्युनिस्टों ने उठाना आरंभ किया। इन तीनों किसान जातियों के इस तबके ने दलितों, विशेषकर चमारों, मुसहरों और पासवानों, जिन्हें ‘दुसाध’ भी कहा जाता था, के करीबी सहयोग में जमींदारों के विरुद्ध हिंसक कम्युनिस्ट विद्रोह में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस तरह के विद्रोह में सबसे उल्लेखनीय भोजपुर विद्रोह है । भोजपुर जो भूतपूर्व रियासतों का गढ़ था, वहां कामरेड जगदीश महतो, “कामरेड रामेश्वर अहीर” और “कामरेड रामनरेश पासवान” के नेतृत्व में हिंसक कम्युनिस्ट आंदोलन देखने को मिला। दूसरी ओर कुर्मी, कोइरी और यादवों के जमींदार गुट ने नक्सली दबाव को नाकाम करने और अपनी भूमि को सीपीआई समर्थित भूमिहीन किसान और दलितों के कब्जे से बचाने के लिए भूमिहारों और राजपूतों जैसी जातिय सेनाओं का गठन किया।इस प्रकार कोइरी और कुर्मियों की निजी सेना, “भूमि सेना” और यादवों की निजी सेना जैसे “लोरिक सेना” का गठन किया गया।
कुल मिलाकर के इस प्रकार की जातिवादी सोच और परिवेश में बिहार की उस राजनीतिक सोच और दूरदर्शिता को ठेस पहुंचाई जिसके लिए यह प्रदेश प्राचीन काल से ही जाना जाता रहा है अब समय की आवश्यकता है कि समाज से प्रत्येक प्रकार के भेदभाव ऊंच-नीच छुआछूत और जाति एवं लक्ष्य को समाप्त कर ऐसा परिवेश बनाया जाए। जिसमें सब मिलकर बिहार के लिए समर्पित होकर काम करें। अखिल भारत हिंदू महासभा सावरकर जी और अपने अन्य राजनीतिक आदर्शों के सपनों के अनुसार बिहार का निर्माण करेगी।