बिखरे मोती-भाग 26
सत्पुरूषों का संग भी, कोई पुण्य का है प्रभात
ज्यों-ज्यों हम बूढ़े हुए,
तृष्णा हुई जवान।
भोग लिया हमें भोग ने,
ये देख हुए हैरान।। 401।।
आंखों से दिखता नहीं,
शिथिल हुए सब अंग।
मृत्यु से डरता फिरै,
कितना होवै तंग ।। 402।।
जैसे जल-कण कमल पर,
तैसेई तन में प्राण।
मृत्यु का सूरज उगै,
देखत करें पयान ।। 403।।
आंखों में जिसके शर्म हो,
वाणी में होय मिठास।
मन में होय उदारता,
जीत लेय विश्वास।। 404।।
उदारता से अभिप्राय है-हृदय में पवित्रता और परोपकारी की भावना।
मन घटै वैभव छुटै,
बन्धु छोड़ै साथ।
वक्त देख खामोश रहै,
सुमर ले दीनानाथ ।। 405।।
बड़ी मनोरम होत है,
चांद से उजलाई रात।
सत्पुरूषों का संग भी,
कोई पुण्य का है प्रभात ।। 406।।
मेरा मन आकाश को,
लांघ निकल जाए दूर।
मोक्ष मिलै जिस ब्रह्म से,
क्यों न हो भरपूर।। 407।।
ब्रह्मा की एक उपासना,
सभी पुरूषों का भूल।
मत भटकै संसार में,
यहां शूल ही शूल ।। 408।।
सच्चा बल है तपोबल,
सच्चा साथी ब्रह्म।
सच्ची दौलत पुण्य है,
कमा धर्म ही धर्म ।। 409।।
महलों मेें मुजरे करै,
चंचला ये कहलाय।
लक्ष्मी किसी की सगी नही,
आज आय कल जाए।। 410।।
सब कुछ जग में क्षणिक है,
क्यों भ्रम में मशगूल।
न पुण्य किया न नाम लिया,
ये तो महंगी पड़ेगी भूल ।। 411।।
बेलगाम ज्यों अश्व हो,
मन की ऐसी दौड़।
संयम की दे लगाम तू,
हरि-चरणों में मोड़ ।। 412।।
वासनाओं के अरण्य में,
मन भटकै दिन रैन।
अनासक्त हो लौ लगा,
तभी मिलेगा चैन ।। 413।।
शीतलता और ज्योति का,
देता चांद है दान।
इसलिए शिव के ललाट पर,
ऊंचा मिला स्थान ।। 414।।
क्रमश: