आवश्यकताओं पर ध्यान दें
शौक हमेशा दुःख ही देता है
– डॉ. दीपक आचार्य
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आम आदमी को मस्ती के साथ जीवन निर्वाह के लिए जितनी जरूरत होती है उतनी आवश्यकताओं की पूर्ति के बारे में सोचा और किया जाए तो जीवन के कई सारे अनावश्यक तनावों और दुःखों से मुक्ति पायी जा सकती है। पर आज का युग अंधभक्ति और फैशन का है जिसमें हमारे जीवन का हर पक्ष दूसरों के भरोसे बंधा हुआ है।
हम हमारी इच्छाओं और जरूरतों से ज्यादा इस बात के लिए फिकरमंद होने लगे हैं हमारे बारे में लोग या समुदाय की धारणा किस प्रकार की बनी हुई है। हम अब अपनी मर्जी के मालिक नहीं रहे, हम दूसरों के दिल और दिमाग से चलने लगे हैं। दूसरे लोग जैसा सोचते और चाहते हैं वैसा ही हम करने लगे हैं।
हमें इससे कोई सरोकार नहीं है कि जिन रिमोट्स के भरोसे हम रोबोट की तरह चल रहे हैं या चलाये जा रहे हैं वे हमें चलाने लायक हैं भी या नहीं। हमें अपनी आत्मा, बुद्धि और कौशल तथा अपने पर से भरोसा खत्म हो गया है तभी हम जमाने की नज़र से अपने आपको देखने के आदी हो गए हैं।
यही कारण है कि जमाने भर का लालच भरा सम सामयिक प्रदूषण हमारे भीतर आने लगा है और हम सब कुछ भुलाकर उन सारे कामों में रमते जा रहे हैं जो दूसरों को अच्छे लगते हैं। इस अंकुशहीन अंधी दौड़ में हमने अपने भविष्य प्रबन्धन और सुकूनदायी जिन्दगी के सारे सूत्रों को भी गौण मान लिया है।
बाहरी आकर्षण की चकाचौंध में हम उन मछलियों की तरह इतने बंध गए हैं कि सब जाल में फंसे हुए हैं डोर उन मछुआरों के हाथ आ गई है जो रसीले तटों से हमें कभी भी बेदखल कर सकते हैं। हमारे जीवन में जिन चीजों के बगैर काम चल सकता है अथवा जिन चीजों की हमें किसी भी प्रकार की कोई आवश्यकता नहीं है उन वस्तुओं के आकर्षण का मोहपाश भी हमें जबर्दस्त जकड़ने लगा है। कई लोग तो इस शौक के मारे अपने शरीर और घर को भण्डार या कचराघर बनाते हुए देखे जा सकते हैं।
दूसरों की नकल करने की हमारी आदि परंपरा का निर्वाह करते हुए हम वो सब कुछ चाहने लगे हैं जो हमारे पड़ोसियों या परिचितों के पास है। चाहे इसकी हमें जरा भी आवश्यकता हो न हो। संसाधन और सामग्री के अकारण संग्रहण का यह अजीब शौक आजकल बहुसंख्य लोगों की जिन्दगी में देखा जा रहा है।
अपनी मानसिकता को सिर्फ अपनी जरूरतों की ओर केन्दि्रत करने की आवश्यकता है ताकि जीवननिर्वाह सहज और निरापद हो सके तथा फालतू का बोझ भी नहीं पड़े। नई पीढ़ी में तो अनुपयोगी वस्तुओं का महज टाईमपास करने के लिए अंधाधुध उपयोग और जमा करते रहना ऎसी बुरी आदत बन गया है जिसके आगे उनके भविष्य निर्माण और सेहत के लक्ष्य भी फीके हो चले हैं।
जीवन को एक यायावर की तरह गुजारने की जरूरत है जहाँ सफर में सिर्फ उन्हीं न्यूनतम वस्तुओं की जरूरत होती है जो काम में आने वाली हैं और जिनके बगैर काम नहीं चल सकता। फालतू का बोझ इस सफर में नहीं होना चाहिए। आवश्यकताओं के न होने पर भी शौकिया संसाधनों की ओर ललचायी निगाहों से देखना और पाना ही दुःखों का मूल कारण है जो जीवन भर असंतोष और उद्विग्नताएं देता है तथा ऎसा व्यक्ति मौत आने तक भी शांत, धीर-गंभीर एवं तुष्ट नहीं रह सकता।
जीवन में शौक के लिए कुछ पाने की इच्छा छोड़ें तथा आवश्यकताओं की पूर्ति को प्रमुखता दें। ऎसा नहीं करने वालों का शौक जीवन में कभी किसी मुकाम पर पहुँच कर किसी न किसी रूप में शोक का माहौल खड़ा कर ही देता है जहाँ अवसादों और अंधेरों के सिवा कुछ भी नज़र नहीं आता। तब ये अपने शौक व शौकिया सामग्री का जखीरा ही हमारे लिए मकड़जाल बनकर गला घोंटता प्रतीत होता है।