एक बार फिर से आम आदमी पार्टी देशभर में विस्तार की रणनीति पर
संतोष पाठक
पहले बात कर लेते हैं देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश की। उत्तर प्रदेश वो राज्य है, जहां के मतदाता लोकसभा में 80 सांसद चुनकर भेजते हैं। यूपी के मतदाताओं के समर्थन के बिना दिल्ली की गद्दी पर बैठना लगभग असंभव-सा ही है।
दिल्ली में अपनी जड़ें मजबूती से जमा लेने के बाद एक बार फिर से आम आदमी पार्टी देशभर में विस्तार की रणनीति पर आक्रामक तरीके से अमल करने जा रही है। आम आदमी पार्टी के मुखिया और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल हों या उत्तर प्रदेश के प्रभारी आप के राज्यसभा सांसद संजय सिंह या आप के अन्य राज्यों के नेता, ये सभी दूसरे राज्यों में आम आदमी पार्टी का विस्तार करने के लिए आक्रामक अंदाज में सक्रिय हो गए हैं।
पहले बात कर लेते हैं देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश की। उत्तर प्रदेश वो राज्य है, जहां के मतदाता लोकसभा में 80 सांसद चुनकर भेजते हैं। यूपी के मतदाताओं के समर्थन के बिना दिल्ली की गद्दी पर बैठना लगभग असंभव-सा ही है। उत्तर प्रदेश वो राज्य है जिसने देश को अब तक सबसे ज्यादा प्रधानंमत्री दिए हैं। इस प्रदेश के महत्व का अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि जब नरेंद्र मोदी ने 2014 में राष्ट्रीय राजनीति में आने का फैसला किया तब उन्होने यूपी के वाराणसी संसदीय क्षेत्र से ही लोकसभा चुनाव लड़ने का भी फैसला किया। 2014 के लोकसभा चुनाव के समय ही आप के मुखिया अरविंद केजरीवाल को भी प्रदेश के महत्व का अंदाजा बखूबी था इसलिए उन्होंने भी दिल्ली के मुख्यमंत्री का पद छोड़कर वाराणसी से ही मोदी के खिलाफ चुनावी रण में ताल ठोंकी थी। हालांकि 2014 का लोकसभा चुनाव आप के लिए किसी झटके से कम नहीं था। पार्टी को पंजाब छोड़कर किसी राज्य में कामयाबी नहीं मिली। सबसे दुखद स्थिति तो यह थी कि अरविंद केजरीवाल, कुमार विश्वास समेत पार्टी के तमाम दिग्गज नेताओं को चुनावी मैदान में हार का सामना करना पड़ा था। उस हार से सबक लेते हुए केजरीवाल ने उस समय यह ऐलान किया था कि अब आप सिर्फ और सिर्फ दिल्ली पर ही ध्यान केंद्रित करेगी लेकिन पिछले विधानसभा चुनाव में दिल्ली में मोदी-शाह की जोड़ी को बूरी तरह से पटखनी देने के बाद एक बार फिर से आम आदमी पार्टी में जोश पैदा हो गया है। इसी का नतीजा है कि पार्टी ने एक बार फिर से अन्य राज्यों में चुनावी विस्तार की कोशिशें शुरू कर दी हैं।
केजरीवाल ने अपने सबसे भरोसेमंद साथी संजय सिंह को उत्तर प्रदेश का प्रभारी बना कर मैदान में उतार दिया है। प्रदेश के सुल्तानपुर जिले से आने वाले राज्यसभा सांसद संजय सिंह ने यूपी की कमान संभालते ही राज्य की राजनीति में हलचल पैदा कर दी है। संजय सिंह ने पहले राम मंदिर भूमि शिलान्यास का मुद्दा उठाकर सीधे प्रधानमंत्री और आरएसएस पर हमला बोला और उसके बाद से वो लगातार राज्य के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर सीधा निशाना साध रहे हैं। प्रदेश के अलग-अलग जिलों में अपने खिलाफ दर्ज होने वाले एफआईआर के लिए भी संजय सिंह सीधे मुख्यमंत्री को ही जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। पुलिस के तमाम व्यापक इंतजामों के बावजूद गुरुवार को यूपी विधानसभा में पहुंच कर भी संजय सिंह ने सीधे योगी सरकार को चुनौती देने का काम किया। राज्यसभा के सभापति और उपराष्ट्रपति नायडू को पत्र लिखकर संजय सिंह ने अपने इरादे साफ कर दिए हैं कि वो सड़क से लेकर संसद तक भाजपा को घेरने की कोशिश करेंगे। संजय सिंह के आक्रामक अंदाज की वजह से यूपी में पार्टी के कैडर में जोश आ गया है। यही वजह है कि अब आप दिल्ली मॉडल पर यूपी विधानसभा चुनाव में उतरने की तैयारी कर रही है। पार्टी का यह दावा है कि प्रदेश में वो बिजली, स्वास्थ्य, पानी और शिक्षा जैसे मुद्दों को उठाकर जनता का समर्थन हासिल करेगी। पार्टी के नेता यह भी दावा कर रहे हैं कि इस मॉडल पर चलने की वजह से पार्टी संगठन के कमजोर होने के बावजूद उन्हें यूपी में चुनावी फायदा होगा। हालांकि वास्तविकता यह भी है कि इन तमाम मुद्दों से भी ज्यादा आम आदमी पार्टी प्रदेश में जातिगत मुद्दों को भी हवा दे रही है क्योंकि संजय सिंह यह बखूबी जानते हैं कि यूपी के चुनावी रण में जाति सबसे महत्वपूर्ण फैक्टर होता है।
उत्तर प्रदेश से सटे पहाड़ी राज्य उत्तराखंड को लेकर भी आम आदमी पार्टी ने बड़ा ऐलान कर दिया है। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने उत्तराखंड के आगामी विधानसभा चुनाव में सभी 70 सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी है। आम आदमी पार्टी एक रणनीति बनाकर पहाड़ी राज्य की सभी सीटों पर चुनाव लड़ेगी और भाजपा बनाम कांग्रेस की लड़ाई में एक वैकल्पिक तीसरी ताकत बनने की कोशिश करेगी।
यह एक सच्चाई है कि आप का संगठन आज की तारीख में जितना दिल्ली में मजबूत है उतना देश के किसी अन्य राज्य में नहीं है। आप के नेता भी इस तथ्य को बखूबी समझते हैं इसलिए बार-बार वो दिल्ली मॉडल की बात करते हैं। आप के बड़े नेताओं का यह दावा है कि जिस मॉडल या चुनावी रणनीति के सहारे उन्होने पहले शीला दीक्षित जैसे दिग्गज को मात दी। दिल्ली की राजनीति से देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस को साफ कर दिया। जिस मॉडल के सहारे उन्होंने मोदी-शाह के विजयी रथ को रोक दिया, उसी मॉडल के सहारे वो कमजोर संगठन के बावजूद उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड जैसे राज्य में भी चुनावी जीत हासिल कर सकते हैं।
चुनावी मैदान– चाहे वो उत्तर प्रदेश का हो या उत्तराखंड का या पंजाब का या अन्य किसी राज्य का..कितनी बड़ी तादाद में मतदाता झाड़ू का बटन दबाएंगे, यह तो वक्त ही बताएगा लेकिन फिलहाल तो आप के चुनावी इरादों ने कई राज्यों की राजनीति में हलचल तो पैदा कर ही दी है।