भारत में तुष्टीकरण की राजनीति ने कट्टरपंथ और अलगाव को बढ़ावा दिया है। इस संदर्भ में सर्वप्रथम हम इस बात पर दृष्टिपात करते हैं कि तुष्टिकरण है क्या ? भारत में उस तुष्टिकरण के संबंध में राजनैतिक शक्तियों ने क्या नीति बनाई ? क्या ऐसी तुष्टीकरण की नीति आज के आतंकवाद, अलगाववाद, अतिवाद व कट्टरपंथ को बढ़ावा देने वाली सिद्ध हुई है ?
तुष्टीकरण की नीति वह होती है जिसमें किसी आक्रांता या समाज के किसी ऐसे वर्ग ,समुदाय या संप्रदाय से सीधे संघर्ष से बचने के लिए उसको भिन्न भिन्न प्रकार की सौगातें व रियायतें दी जाती हैं , जो स्वाभाविक रूप से देश की मुख्यधारा के साथ मिलकर ने चलने में विश्वास रखता है।
इसी को अंग्रेजी में appeasement कहते हैं।
सर्वप्रथम 1935 से 1939 के बीच नाजी जर्मनी व फासीवादी इटली के प्रति ब्रिटेन के प्रधानमंत्रियों ने जो विदेश नीति बनाई थी उसमें ब्रिटेन के तत्कालीन प्रधानमंत्रियों Ramsay MacDonald, Stanley Baldwin, nivali chamberlayne ने नाजीवाद और फासीवाद से बचने के लिए उनको रियायत दी थी।
1930 के दशक की शुरुआत में द्वितीय विश्व युद्ध के आघात के कारण ऐसी रियायत सकारात्मक रूप से देखी गई ।वारसा संधि में जर्मनी के उपचार के बारे में दूसरे विचार और ऊपरी वर्गों में एक धारणा है कि फासीवाद एक स्वस्थ रूप था साम्यवाद विरोधी। हालांकि म्यूनिख समझौते के समय तक जर्मनी ,ब्रिटेन, फ्रांस और इटली के बीच 30 सितंबर 1938 को निष्कर्ष निकाला गया । अधिकांश ब्रिटिश बांए और लेबर पार्टी द्वारा नीति का विरोध किया गया था। जैसे ही यूरोप में फासीवाद के उदय के बारे में अलार्म बज गया चेंबर लेन ने जनता की राय को नियंत्रित करने के लिए समाचार सेंसरशिप का सहारा लिया। फिर भी चैंबर्लेन म्यूनिख के बाद आत्मविश्वास से घोषणा की कि उन्होंने हमारे समय के लिए शांति हासिल की है।
इस पर लगातार बहस चलती रहती है कि ब्रिटिश नेताओं के पास कोई विकल्प था या नहीं था , अपने देश के हितों की रक्षा करने के लिए। एडोल्फ हिटलर को इतना मजबूत क्यों बनाया ? कब आवश्यक था ?
सितंबर 1931 में लीग ऑफ नेशंस के एक सदस्य जापान ने पूर्वोत्तर चीन में मंचूरिया पर हमला करके उस पर कब्जा किया और यह कहा कि इसकी आबादी चीन की ही नहीं है बल्कि वह एक बहू जातीय क्षेत्र है ।चीन ने सहायता के लिए और संयुक्त राज्य अमेरिका से अपील की। लीग की परिषद ने पार्टियों से शांतिपूर्ण निपटारे की अनुमति देने के लिए और अपने मूल स्थिति में वापस लेने के लिए संयुक्त राष्ट्र ने शांतिपूर्ण मामलों को सुलझाने के लिए उन्हें अपने कर्तव्य की याद दिलाई। जापान निराश था और पूरे मंचूरिया पर कब्जा करने के लिए चला गया ।लीग ने पूछताछ किया जिसने जापान की निंदा की ।फरवरी 1933 में रिपोर्ट के जवाब में जापान ने इस्तीफा दे दिया और चीन में अपनी नीति जारी रखी। संयुक्त राज्य अमेरिका ने जापान की कार्यवाही को मान्यता देने से इनकार कर दिया ।इस तथ्य ने 1930 के अंत में जापान के ऊपर चीन के पक्ष में अमरीकी नीति को स्थानांतरित करने में भूमिका निभाई। कुछ इतिहासकार इस पर ऐसे जोर देते हैं कि लीग की सुदूर पूर्व में निष्क्रियता और प्रभावहीनता ने यूरोपीय हमलावरों को हर प्रोत्साहन दिया, जो विद्रोह के समान कृत्यों की योजना बनाते थे।
इस प्रकार लीग ऑफ नेशंस और अमेरिका ,ब्रिटेन का नीति निर्धारण करना तुष्टिकरण की नीति में आता है।
भारत में तुष्टिकरण की नीति का प्रारंभ कब हुआ ?
भारत में वर्ष 1947 से स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात तुष्टीकरण शब्द अल्पसंख्यक वोट बैंक को प्राप्त करने के लिए , उनको अपने पक्ष में लुभाने के वादे एवं नीतियों के लिए भी प्रयुक्त किया जाने लगा। यहीं से भारत में तुष्टीकरण की राजनीतिक कट्टरपंथ और अलगाववाद को बढ़ावा मिलना प्रारंभ हुआ।
इस विषय में डॉक्टर भीमराव अंबेडकर ने कहा है कि कुछ वर्ग ऐसे अवसर का लाभ लेकर के अपने स्वार्थ के लिए अवैधानिक मार्ग अपनाते हैं तथा शासन इस संबंध में उनकी सहायता करता है। इसी को अल्पसंख्यक तुष्टीकरण कहते हैं । बाबा साहब के अनुसार इस नीति में आक्रमणकारी लोगों को खरीदना ,उनके अनैतिक कार्य में सहायता करना, उनके अत्याचारों से आजिज लोगों की उपेक्षा करना ही तुष्टीकरण कहलाता है ।बाबा साहब अंबेडकर को दलितों और पिछड़ों का उद्धारक भारतवर्ष में कहा जाता है। लेकिन बाबा अंबेडकर ऐसी तुष्टीकरण की नीति के हमेशा विरोधी रहे हैं।
हमारे देश में करीब 60 वर्षों तक राज्य करने वाली प्रमुख राजनीतिक पार्टी कांग्रेस पर सदैव से ही मुस्लिम तुष्टीकरण का आरोप लगता रहा है और कांग्रेस की नीतियां ही अलगाववाद और आतंकवाद व कट्टरपंथ को बढ़ावा देने में सहायक रही है।
सर्वप्रथम एक ताजा उदाहरण कट्टरपंथ का हम सुबुद्घ पाठकों के लिए प्रस्तुत करना चाहेंगे भारत में ‘द हैवीवेट कॉमेडी एंड म्यूजिक कैफे’ मुंबई में आयोजित किया गया था।
अप कॉमेडी के नाम पर मुनव्वर फारूकी ने हिंदू देवी-देवताओं पर अभद्र टिप्पणी की।शिकायत के बावजूद महाराष्ट्र सरकार ने उस पर कोई कार्यवाही नहीं की। आपको ज्ञात है कि शरद पवार और कांग्रेस के समर्थन से महाराष्ट्र में शिवसेना सरकार उद्धव ठाकरे की चल रही है। कांग्रेस कभी भी नहीं चाहेगी कि अल्पसंख्यक वर्ग से संबंधित मुनव्वर फारूकी के विरुद्ध कोई कार्रवाई हो ,यह तो अनुचित संरक्षण है। जिसको भारतवर्ष का कानून इजाजत नहीं देता है।
कार्यवाही नहीं होने के अभाव में मुनव्वर फारूकी की हिम्मत इतनी बढ़ी कि उन्होंने विरोध करने वालों को यूट्यूब पर “भेड़ों की नस्ल “बताया। इससे आप विचार कर सकते हैं कि ‘भेड़ों की नस्ल’ में कौन आते हैं ? परंतु क्योंकि हम सहिष्णु लोग हैं, क्योंकि कथित रूप से हम ‘बड़े भाई’ हैं ,इस दृष्टिकोण से ऐसी घटनाओं को महत्व नहीं देते और इसलिए बढ़ावा मिलता है।
दूसरा उदाहरण देना चाहेंगे कि 5 अगस्त 2019 को कश्मीर में धारा 370 और 35a भारतीय संविधान से पार्लियामेंट द्वारा हटाई गई थी।उसके बाद कश्मीर में हालात सुधरने लगे थे और अवाम अर्थात जनसाधारण ने इसका कोई विरोध भी नहीं किया था।यहां तक कि नेशनल कांफ्रेंस,पीडीपी, कांग्रेस और अन्य राजनीतिक दलों के नेताओं की गिरफ्तारी भी हुई थी। परंतु जनसाधारण का समर्थन उनको प्राप्त नहीं था। लेकिन अब पीडीपी , नेका, कांग्रेस आदि राजनीतिक दल एक बार फिर कश्मीरी लोगों की भावनाओं को भड़काने की कोशिश कर रहे हैं। कांग्रेस का सदैव से तुष्टिकरण की राजनीति एवं देश में आतंकवाद, अलगाववाद को फैलाने में भरपूर सहयोग रहता है । इससे भारत में कट्टरपंथ की वृद्धि हुई। कांग्रेश आज भी वही कार्य कर रही है जो महात्मा गांधी ने स्वामी श्रद्धानंद के हत्यारे राशिद के बारे में कहा था कि” स्वामी श्रद्धानंद ने ऐसी परिस्थितियों स्वयं पैदा कीं और मैं राशिद के साथ हूं। मैं इसमें राशिद की वकालत करता हूं।”
इस प्रकार कांग्रेस का आज भी वही कार्य है। उसका चाल, चरित्र और चेहरा कभी नहीं बदलता।
कांग्रेस का यही व्यवहार, नीति एवं कार्य राष्ट्रघाती तो है ही साथ ही उसके विनाश का कारण होने से आत्मघाती भी है। परंतु कांग्रेस का नेतृत्व आज भी इस बात को स्वीकार करने के लिए तत्पर प्रतीत नहीं होता।
क्योंकि कांग्रेस ने छद्म धर्मनिरपेक्षता का लबादा ओढ़े हुआ है ।मगर कांग्रेस के कार्य ,निर्णय और नीतियों में मजहब सापेक्ष होता है। कांग्रेस की दोहरी नीतियां है।
चौथा उदाहरण है कि तुष्टीकरण की नीति के कारण ही मुस्लिम संप्रदाय ने साडे चार लाख पंडितों को कश्मीर से मार कर घर से बेघर कर दिया।कश्मीरी पंडित अपने ही देश मे बेगाने होकर विस्थापित हो गए। कश्मीरी पंडितों की बहू बेटियों के साथ जो अमानवीय कृत्य मुस्लिम संप्रदाय द्वारा किए गए ,उस पर कांग्रेस आज तक चुप है। कश्मीर के पंडित खून का घूंट पीए बैठे हैं। इससे बड़ा विश्व में और कोई ‘मॉब लिंचिंग’ का उदाहरण नहीं है। जिस समय यह घटना घटी उस समय कांग्रेस की सरकार केंद्र में थी। आज तक कोई भी कांग्रेस का नेता इस कृत्य की आलोचना नहीं करता।
यही तो तुष्टिकरण है कि जो अपराधी हैं उन्हें प्यार कर पुचकार दिया जाता है । परंतु जिनके साथ अपराध हुआ है ,जो पीड़ित हैं ,उनको दुत्कार दिया जाता है। इससे बड़ी विडंबना और क्या होगी इस देश में ? इससे बड़ा तुष्टिकरण और क्या होगा ?
जिसने अपराध किया है जब शासन उसके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं करे तो अतिवाद ,आतंकवाद और अलगाववाद को बढ़ावा नहीं मिलेगा तो और क्या मिलेगा ?
पांचवां एक अन्य उदाहरण यहां पर और प्रस्तुत करना चाहेंगे कि अहमदशाह अब्दाली के आक्रमण से बचने के लिए तत्कालीन दिल्ली के बादशाह मोहम्मद शाह ने अफगानिस्तान भेंट में दे दिया था कि आप हम पर आक्रमण न करो ,लो एक भेंट ले लो।
इस भेंट के बाद भी क्या आक्रमणकारियों ने भारत पर आक्रमण करने रोक दिए थे ? निश्चित रूप से आप सभी सुबुद्धजन जानते हैं कि इसका उत्तर ‘नहीं’ ही होगा। इतिहास से सबक लीजिए कि तुष्टीकरण जैसी महाबीमारी को और बढ़ावा न मिल सके। क्योंकि इसके बाद भी अनेक आक्रमणकारी इधर आते रहे और भारतवर्ष को लूटते रहे। इसलिए देखते हैं कि तुष्टीकरण की नीति हमेशा दुखदाई होती है। बल्कि बेहतर यह होगा होगा कि आक्रमक शक्ति से सीधे संघर्ष किया जाए।
छठा उदाहरण है कि वर्ष 2014 में जब भाजपा की सरकार केंद्र में बनी और कांग्रेस पार्टी की पराजय हुई तो एंटोनी कांग्रेसी नेता को पराजय के कारण खोजने के लिए कांग्रेस ने अधिकृत किया। एंटोनी ने अपनी रिपोर्ट में साफ कहा है कि मुस्लिमपरस्ती के कारण कांग्रेस हिंदुओं के दिल से उतर गई है। एंटोनी की यह रिपोर्ट बहुत ही महत्वपूर्ण है जो कांग्रेस पार्टी को आईना दिखाती है, परंतु कांग्रेस आईना देखने में परहेज करती है। सच्चाई से विमुख होना चाहती है।
उस कांग्रेस नेता की रिपोर्ट पर अमल करते हुए बहुसंख्यक लोगों की उपेक्षा कांग्रेस आज भी करती है।
तुष्टीकरण का सातवां उदाहरण है कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी तथाकथित मुस्लिम बुद्धिजीवियों से गुपचुप मुलाकात 11 जुलाई को करते हैं। एक तरफ दत्तात्रेय ब्राह्मण बनना ,जनेऊ पहनना, मंदिरों में जाना दूसरी तरफ हिंदुओं को झांसे में रखना ,इनकी नीति है ।जनेऊ मात्र दिखावा है। इफ्तार पार्टी में गोल टोपी पहन कर राहुल गांधी शामिल होते हैं ।
दक्षिण भारत में मुस्लिम बहुल क्षेत्र से चुनाव लड़ते हैं। क्योंकि मुस्लिम बहुल क्षेत्र में उनकी विजय सुनिश्चितत थी। ऐसा क्यों ?
यही नहीं श्रीमती सोनिया गांधी पिछले लोकसभा चुनाव में जामा मस्जिद के इमाम से चुपचाप मुलाकात करके आई थी। धर्म ,जाति ,विचारधारा व दिल _दिमाग से मुस्लिम व ईसाईपरस्त हैं , राहुल गांधी और श्रीमती सोनिया गांधी।
आठवां उदाहरण एक घातक षड्यंत्र देश में ,उस पर भी विचार कर लीजिए। केंद्र की भाजपा सरकार देश में समान नागरिक संहिता लाना चाहती है। जिसके लिए वह कृत संकल्प है। लेकिन कांग्रेस प्रत्येक जिले में शरीयत कोर्ट स्थापित करने की ‘ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड’ की राय का समर्थन करती है। इसका तात्पर्य यह हुआ कि ‘ऑल इंडिया मुस्लिम मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड’ वर्तमान में भारत में संविधान के अनुसार संचालित एवं स्थापित न्याय व्यवस्था में विश्वास नहीं करती है। बल्कि एक समानांतर न्याय व्यवस्था भारतवर्ष में चलाना चाहती है।
अपने पड़ोसी चीन को देख लीजिए वहां उइगर मुस्लिमों की क्या दुर्दशा है ? उनको नमाज अदा करने ,गोल टोपी पहनने की स्वतंत्रता प्राप्त है। छोटे से देश बर्मा( म्यांमार )को देख लीजिए वहां रोहिंग्या मुसलमानों के साथ उन्होंने क्या व्यवहार किया ? विचार करिए कि समानांतर न्याय व्यवस्था चलाने का सुझाव एवं प्रत्यय कृत्य संविधान के विरुद्ध होगा। संविधान सम्मत नहीं होगा।
इसी प्रकार से कांग्रेस हमेशा से तीन तलाक बहु विवाह जैसी कुप्रथा ओं का भी समर्थन करती रही है। तथा मुस्लिम बच्चियों के खतना करने का समर्थन भी करती है। नवम उदाहरण देखिए की कांग्रेस देश के विभाजन के लिए जिम्मेदार और गुनहगार जिन्ना का महिमामंडन करती है।
कांग्रेस की पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी द्वारा अफगानिस्तान में अपनी यात्रा के दौरान बाबर की मजार के दर्शन किए थे। जबकि कार्यक्रम में मजार पर जाने का कोई तय निर्णय नहीं था।कांग्रेस जिस प्रकार से ईसाई मिशनरियों को भारतवर्ष में संरक्षण प्रदान करती है और उनका भी तुष्टीकरण करती है। पालघर के 2 साधुओं की हत्या ईसाई लोगों द्वारा की जाती है और बहुत ही दुख की बात है कि उन लोगों के विरुद्ध महाराष्ट्र सरकार ने न्याय पूर्ण कार्य नहीं किया। क्योंकि श्रीमती सोनिया गांधी का दबाव सरकार पर है। इससे ऐसा आभास होने लगा है कि कांग्रेस एक और भारत विभाजन की पृष्ठभूमि तैयार कर रही है। मुस्लिम कट्टरपंथ को समर्थन देकर इस तथ्य को बल मिलता है।
और देखिए कांग्रेस की बातें ,खुले में नमाज पर कांग्रेस का समर्थन है।मुस्लिमों को एक होने का मंत्र कांग्रेस देती है।असम में अवैध घुसपैठियों पर राजनीति करती है।आजादी गैंग को राहुल गांधी का समर्थन प्राप्त है। जो भारत को टुकड़े टुकड़े करने की बात करता है।पाक आतंकवादी संगठन लश्कर-ए-तैयबा आदि की भाषा बोलना कांग्रेस का शौक है।
गुलाम नबी आजाद कांग्रेसी नेता कश्मीर में सेना के विषय में यह कहते हैं कि वह आतंकवादियों को कम आवाम को ज्यादा मार रही है। तथा मानवाधिकारों का उल्लंघन कर रही है। कांग्रेसी नेता गुलाम साहब का यह कहना सैफुद्दीन सोज की सोच का समर्थन करना है। कश्मीर में सेना की कार्यवाही का विरोध करना अनुचित है।तथा कश्मीर में फिर से आग लगाने की नीति निर्माण है।
इस सब के उपरांत भी हम प्रत्येक प्रकार की राजनीतिक संरक्षण एवं तुष्टीकरण की आलोचना करते हैं। चाहे वह कांग्रेस और भाजपा या कोई भी राजनीतिक पार्टी हो, तुष्टिकरण सर्वथा अनुचित है। क्योंकि तुष्टीकरण से ही आतंकवाद ,अतिवाद, अलगाववाद को बढ़ावा मिलता है। राष्ट्रहित में कार्य होने चाहिए। सारी जनता के हित में कार्य होने चाहिए। तभी भारत एक समुन्नत राष्ट्र बन पाएगा। तभी भारत एक समृद्ध राष्ट्र बन पाएगा। तभी भारत विश्व गुरु के पद पर पुनः स्थापित हो पाएगा।
देवेंद्र सिंह आर्य एडवोकेट
चेयरमैन : ‘उगता भारत’ समाचार पत्र