देश की राजधानी नई दिल्ली को इंद्रप्रस्थ के नाम से संबोधित करने अर्थात इसका नाम परिवर्तित कर इंद्रप्रस्थ करने की मांग ‘उगता भारत’ पिछले 10 वर्ष से उठाता आ रहा है । इस संबंध में वर्त्तमान प्रधानमंत्री श्री मोदी के नाम भी पत्र लिखा गया है । हमारी यह मान्यता प्रारंभ से ही रही है कि नई दिल्ली स्थित पुराना किला महाभारत कालीन है। जिसे उसी दृष्टिकोण से मान्यता मिलनी चाहिए और इसको देश के सबसे अधिक सम्मानित किलों में गिना जाना चाहिए ।
हमारी यह भी मांग रही है कि इस किले के भीतर सारी महाभारत के प्रमुख चित्रों को भी चित्रित किया जाए । इसका जीर्णोद्धार करते हुए नए तरीके से उसी समय की स्थापत्य कला के अनुकूल नए भवनों का निर्माण कराया जाए और उन भवनों के भीतर यहां पर अच्छे ढंग से घटनाओं का चित्रात्मक वर्णन किया जाए।
अब समाचार पत्रों में समाचार प्रकाशित हुआ है कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने 2018 में पुराना किला के पास शेर मंडल के पास चित्रित मिट्टी के बर्तनों के मिलने की आशा में उत्खनन यह सिद्ध करने के लिए किया कि महाभारत काल में यह किला आबाद था।
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने पुराना किला में 1954-55 के बाद 1969 और 1973, 2013-14 और 2017-18 उत्खनन कार्य किया था। ऐसी प्रबल मान्यता है कि पांडवों की राजधानी इंद्रप्रस्थ ही वर्तमान की दिल्ली का पुराना किला है। शम्स सिराज अफीफ की 14 वीं सदी में लिखी किताब तारीख ए फिरुजशाही में लिखा है कि इंद्रप्रस्थ किसी परगना का मुख्यालय हुआ करता था। पश्चिम दिल्ली के नारायणा गांव से 14 वीं सदी के एक अभिलेख में भी इंद्रप्रस्थ का उल्लेख है। अबुल फजल ने 16 वीं सदी में लिखी अपनी पुस्तक आइन-ए-अकबरी में लिखा है कि हुमायूं का किला उसी स्थान पर बनाया गया था जहां कभी पांडवों की राजधानी इंद्रप्रस्थ थी।
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की प्रकाशित पुस्तक दिल्ली और उसका अंचल भी इस बात को मानती है कि पुराना किला यमुना के किनारे स्थित था। इस पुस्तक के अनुसार मूलतः पुराना किला यमुना किनारे स्थित था। इस किले के उत्तरी और पश्चिमी किनारों पर भूमि का गहरा दबा होना यह संकेत देता है कि इन किनारों पर नदी से जुड़ी हुई एक चौड़ी खाई मौजूद थी और किले में मुख्य भूमि से किले को जोड़ने वाले एक उपसेतु के जरिए पहुंचा जाता था। पुराना किला प्राचीन टीले पर स्थित है जिसमें शायद महाभारत के इंद्रप्रस्थ नगर के खंडहर छिपे हैं।
सोलहवीं शताब्दी में बने पुराने किले के नीचे परीक्षण के तौर पर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के पूर्व महानिदेशक प्रो. बीबी लाल द्वारा 1954-55 और 1969-1973 में खोदाई कराई गई थी। ताजा खोदाई 2017-2018 में हुई जिसकी देखरेख वसंत कुमार स्वर्णकार ने की जो अब एएसआइ आगरा सर्कल में अधीक्षण पुरातत्वविद के पद पर तैनात हैं। इस खोदाई में भी पूर्व में हुई खोदाई से मिलते जुलते प्रमाण मिले थे। 2019 में यहां फिर खोदाई की अनुमति दी गई थी, मगर समय पर काम शुरू न हो पाने से इसे बाद में निरस्त कर दिया गया था।
पुराना किला में तीनों बार कराई गई खोदाई में टेराकोटा खिलौने और बढ़िया भूरे रंग के चित्रित मिट्टी के मिले टुकड़ों से बर्तनों के बारे में पता चला, जिन पर सामान्यतः काले रंग में साधारण चित्रण किए गए थे। ये बर्तन जो पुरातत्व वेत्ताओं के बीच भूरे रंग के चित्रित बर्तनों के नाम से विख्यात हैं। प्रायः ईसा से 1000 वर्ष पूर्व के हैं। चूँकि ऐसे लक्षणों वाले बर्तन महाभारत की कहानी से संबद्ध अनेक स्थलों पर पहले भी पाये गए थे और इनका काल 1000 ईसा पूर्व निर्धारित किया गया था। इनके यहां से प्राप्त होने से महाभारत के प्रसिद्व पांडवों की राजधानी इंद्रप्रस्थ का पुराने किले के स्थल पर होने वाली परंपरा को बल मिला है।
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग द्वारा पुराना किला दिल्ली में कराए गए तीनों बार से उत्खनन में मुद्राएं मिली हैं। पुराने किले की खुदाई से मुख्यतः प्रारंभिक ऐतिहासिक काल से लेकर मध्यकाल तक दिल्ली के आसपास आवास होने के प्रमाण मिलते हैं। यहां मुगल, सल्तनत, राजपूत, उत्तर गुप्तकाल, कुषाण तथा शुंग काल से लेकर नीचे मौर्य काल तक के घरों कुओं और गलियों के प्रमाण मिले हैं।
हमारा मानना है कि यदि दिल्ली के पुराने किले को महाभारत कालीन इंद्रप्रस्थ का किला माने जाने का सरकारी स्तर पर निर्णय लिया जाता है तो यह देश के प्राचीन इतिहास के गौरवपूर्ण पक्ष को खोलने के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण कदम होगा । अभी तक भी हमारे प्राचीन इतिहास को मिटाने के षड्यंत्र जारी हैं । कई लोग हैं जो अभी भी महाभारत और रामायण काल की घटनाओं को काल्पनिक मानते हैं और कहते हैं। ऐसे में सरकार को यथाशीघ्र पुराने किले को महाभारत कालीन पांडवों का किला घोषित करना चाहिए । इतना ही नहीं देश की राजधानी का नाम भी नई दिल्ली से बदलकर इंद्रप्रस्थ करने का साहसिक निर्णय वर्तमान केंद्र सरकार को लेना चाहिए । हमारा मानना है कि प्रधानमंत्री श्री मोदी ही ऐसा ऐतिहासिक और साहसिक निर्णय ले सकते हैं।
देवेन्द्रसिंह आर्य
चेयरमैन : उगता भारत
लेखक उगता भारत समाचार पत्र के चेयरमैन हैं।