कदम कदम पर भीड़ है,पर सत्पुरूष
पीछे बिगाड़े काम।
मित्र नही छिपा शत्रु,
दूर से करो सलाम ।। 424।।
मित्र को भी भूलकर,
कभी मत बतलावै राज।
सारे भेद प्रकट करै,
जन हो जाए नाराज ।। 425।।
मनन किये को गुप्त रख,
मत करना इजहार।
मखौल उड़ावें लोग सब,
गर हो न सके साकार।। 426।।
धरती पर वन बहुत हैं,
पर चंदन दुर्लभ पाय।
कदम कदम पर भीड़ है,
पर सत्पुरूष कोई कहाय।। 427।।
गुणियों से कुल शोभते,
जिनका शील स्वभाव।
लोग कहें भूसुर उन्हें,
और दिव्य लोक की नाव ।। 428।।
मनन किये को गुप्त रख,
वाणी को देय लगाम।
रक्षा कर संकल्प की,
जब तक बने न काम ।। 429।।
आज्ञाकारी पुत्र हो,
पत्नी करे सम्मान।
निज धन से संतुष्ट हो,
वह घर स्वर्ग समान ।। 430।।
दुष्ट के संसर्ग से,
दुखी हों बुद्घिमान।
मूरख व्यक्ति को ज्ञान दे,
पछतावे की खान ।। 431।।
लक्ष्मी तब तक ही टिके,
जब तक सदुपयोग।
दुरूपयोग के कारनै,
बनै पतन के योग ।। 432।।
क्रमश: