जब सामाजिक बंधन ढीले पढ़ जाते है, सरकार को तब ही कानून बंनाने पड़ते है ,क़ानूनी डंडे का भय दिखाना पड़ता है देश में ऐसे कई कानून बने है |जिसका उद्देश परिवार में सुख चैन शान्ति लाना रहा है |, कानून बनाते समय सरकार को यह आशा थी कि इससे समस्या समाप्त हो जायेगी परन्तु ऐसा बिलकुल भी संभव नही है , समस्या समाप्त होने की जगह लगातार बढती ही जा रही है ,जिस पर अंकुश तक नही लग पा रहा |
घरेलू हिंसा निषेधात्मक कानून बनने पर महिलाओ को राहत जरुर प्राप्त हुई है ,लेकिन समाजिक समस्याए कम नही हुई है लेकिन फिर भी कानून बनने आवश्यक है | पारिवारिक समस्याओ को लेकर व्यक्ति कोर्ट कचेहरी जाने से बचता है ,लेकिन अत्यधिक समस्या उत्पन होने की स्तिथि में वह कोर्ट का दरवाजा खटखाता है , क्योकि उसको कोर्ट पर पूरा विश्वास होता है की उससे न्याय मिलेगा ,लेकीन किसी भी कोर्ट का कार्य परिवार चलाना नही है | लेकिन हर परिवार में पुलिस भी नही बिठाई जा सकती है, इसलिए व्यक्ति की दिल और दिमाग में डर बैठने के लिए व सरकार घरेलू हिंसा के कई नियम बना कर उन पर डंडा चलाने का काम करती है
मेरा मानना है की महिलाओ पर होने वाले अत्याचार की महिलाये स्वयं जिम्मेदार होती है वह जानकर सब कुछ शुरू से सहती आती है ,जब उन्हें आवाज़ उठानी चाहिए तो वह समाज ,परिवार की इज्ज़त की परवाह करती है जब बात हद से गुजर जाती है ,पानी सर से ऊपर गुजर जाता है तब जा कर कोर्ट का दरवाजा खटखाती है| अगर वह जुल्म को शुरुआत में ही रोक दे और जुल्म न सहने की हिम्मत कर दे तो उन्हें कोर्ट के दरवाजे तक जाने की आवश्यकता ही न पड़े |
भारत की प्रथम महिला आईपीएस अधिकारी किरण बेदी मानती है की महिलाये ही महिलाओ पर अत्यचार का पहला कारण होती है, यदि महिलाये तय कर ले कि जिस घर में महिलाये है वंहा महिलाओ पर अत्याचार नही होगा ,तो सब कुछ बदल सकता है |उनका मानना है की समाज में महिलाओ की स्तिथि बदल रही है और आगे भी बदलेगी ,लेकिन पांच हज़ार साल की मानसिकता बदलने में वक़्त लगेगा |घरेलू हिंसा का ग्राफ लगातार बढ़ रहा है,और भविष्य में अंदेशा है की मामले और बढेंगे, लेकिन इसका कारण ये है की महिलाओ में जागरूकता बढ़ रही है और ज्यादा महिलाये शिकायत दर्ज करवा रही है |लेकिन शिकायत दर्ज करवाने के बाद भी सज़ा मिलने की दर बहुत कम है ,सिर्फ सौ में से दो लोगो को ही सजा मिल पाती है |
घरेलू हिंसा विरोधी कानून से महिलाओ को बड़ी उम्मीदे है जिसमे महिलाओ को दुर्वव्यहार से सुरक्षा प्रदान का प्रवाधान है यह कानून महिलाओ को घरेलू हिंसा से बचाएगा क्योंकि केवल भारत में ही लगभग 70 प्रतिशत महिलाएं किसी न किसी रूप में इसकी शिकार होती है
सेण्टर फॉर सोशल रिसर्च के आंकड़ो के अनुसार तीन साल प्रताड़ित होने के बाद एक हज़ार में से एक महिला ही शिकायत दर्ज करवाती है घरेलू हिंसा विरोधी कानून के तेहत पत्नी व बिना विवाह के किसी पुरुष के साथ रह रही महिला मारपीट ,यौनशोषण,आर्थिक शोषण,मानसिक शोषण,या फिर अपमानजनक भाषा के इस्तेमाल की परिस्थिथि में कार्यवाही करवा सकती है |
पुरषों द्वारा बात बात पर महिलाओ पर गुस्सा उतारना व् अभध्र भाषा का उपयोग करना ,उनके साथ मारपीट करने पर उनके खिलाफ कारवाही हो सकती है |
लड़का न होने पर महिला को ताने देना या उसको प्रतडित करने पर इस कानून तहत कारवाही की जा सकती है
उसकी मर्ज़ी के खिलाफ शारीरिक सम्बन्ध बनाना या उस पर दवाब डालन भी भारी पड़ सकता है |
लड़की के न चाहते हुए भी उसे किसी के साथ शादी करने के लिए बाध्य करने पर भी ,या जबरजस्ती शादी का फैसला थोपना किसी लड़की पर लड़के को भारी पड़ सकता है |
अगर किसी महिला के ससुराल वाले लड़की पक्ष से दहेज़ की मांग करते है तो लड़की के पक्ष वाले लड़के के पक्ष पर घरेलू हिंसा विरोधी कानून के तहत कारवाही करवा सकते है |
महत्वपूर्ण यह है की इस कानून के तहत मारपीट के अलावा यौन दुर्व्यवहारया अश्लील ,चित्रों ,फिल्मो को दिखाने या देखने के लिए विवश करता है मारपीट या गालिगालोज या अभध्र व्यवहार ,अपमान करता है तो उसके खिलाफ इस कानून के तहत कार्यवाही की जाती है
पति द्वारा पत्नी को नौकरी न करने देना या नौकरी छोड़ देने का दवाब बनाना,या नौकरी करने से रोकना भी इस कानून के तहत आता है |
इस कानून के अंतर्गत पत्नी को पति के मकान या फ्लैट में रहने का कानून हक होगा भले ही मकान उसके नाम पर हो या न हो |
इस कानून का उलंघन करने पर कैद की सजा व जुर्माना दोनों ही हो सकता है |
आमजन का मानना था मामला कोर्ट में पहुचने के बाद सालो तक कूट में पढ़ा रहता था जिसे लोगो में नकारात्मकता पैदा होने लगी इसलिए अब मामला कोर्ट में पहुचने पर मजिस्ट्रेट को 60 दिन के भीतर ही अपना फैसला सुनना अनिवार्य कर दिया |