अरविन्द केजरीवाल का किस्सा अब धीरे धीरे खुलता जा रहा है । वे पिछले कुछ अरसे से दिल्ली में भ्रष्टाचार से लड़ने की अपनी इच्छा ज़ाहिर करते रहे । यह इच्छा और इसका प्रदर्शन उन्होंने अन्ना हज़ारे के कुनबा में रह कर ज़ाहिर किया था । अन्ना के कारण कुनबे की इज़्ज़त भी थी और लोगों को उन पर विश्वास भी था । इसलिये आम लोगों ने और कुनबे वालों ने अरविन्द केजरीवाल पर भी सहज भाव से विश्वास कर लिया । यह तो बाद में पता चला कि अन्ना के इस कुनबे में अग्निवेश नाम के तथाकथित स्वामी से लेकर शशि भूषण और प्रशान्त भूषण नाम के बाप बेटे तक घुसे हुये हैं । जैसे जैसे इन घुसपैठियों के असली इरादों की पहचान होती गई वैसे वैसे वे बाहर निकलते गये या निकाल दिये गये । भूषण परिवार के टैक्स के मामले को यदि छोड़ भी दिया जाये तो बाद में प्रशान्त तो कश्मीर को भारत से अलग होने देने की वकालत को भी भ्रष्टाचार हटाने से ही जोड़ने लगे । इससे अन्ना समेत आम देशवासी भी चौंके । क्योंकि ग़ुलाम नबी फ़ाई मामले की चर्चा भी फैलती जा रही थी , ऐसे समय में प्रशान्त भूषण द्वारा कश्मीर की आजादी का समर्थन उत्तेजना पैदा करने वाला ही था । इसलिये उनके लिये भी अन्ना हजारे के कुनबे में रहना संभव नहीं हो सका । तभी अरविन्द केजरीवाल ने इच्छा ज़ाहिर कर दी कि वे देश में भ्रष्टाचार दिल्ली का मुख्यमंत्री बन कर ही समाप्त करेंगे । शायद कुनबे के लोग उनकी इच्छा के भीतर की इच्छा को जल्दी पहचान गये , इसलिये उन्होंने अरविन्द की इस चाल में फँसने से इंकार कर दिया । अरविन्द ने भी अन्ना का कुनबा छोड़ कर अपना अलग कुनबा गठित किया । अब वे अपना अलग शो चलाने लगे और दिल्ली के जंतर मंतर पर मंतर मार कर भ्रष्टाचार से लड़ने का प्रदर्शन करने लगे । राजनैतिक नेताओं और उनके नित नये उजागर हो रहे कारनामों के प्रति आम जनता की अनास्था उस सीमा तक पहुँच गई थी कि उसने अरविन्द के इस जादू टोना नुमा कार्यक्रमों को भी सचमुच भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई समझना शुरु कर दिया । टी. वी चैनलों ने बहती गंगा में हाथ धोने के लिये अरविन्द केजरीवाल के नये कुनबे के इन कारनामों को भी , मैं तुलसी तेरे आँगन की, की तरह धारावाहिक शैली में प्रसारित करना शुरु कर दिया । यह भारतीय राजनीति का स्टिंग आप्रेशनकाल कहा जा सकता है । लेकिन भूगोल के लोग शुरु से ही चिल्लाते रहे हैं कि धरती गोल है । इसलिये जब कोई आदमी एक स्थान से चलता है तो वह अन्तत: वहीं पहुँचता है , जहाँ से वह चला था । अरविन्द के साथ भी यही होने वाला है । लेकिन आज जब विश्वविद्यालयों में मैनेजमैंट के पाठ्यक्रमों को ही कैरियर के लिये सर्वाधिक उपयुक्त माना जा रहा है तो ऐसे समय में भूगोल के सिद्धान्तों को समझने का समय किसके पास है ? लेकिन एक दिन दूसरों पर स्टिंग आप्रेशन का काला जादू चलाते चलाते अरविन्द का कुनबा भी एक दूसरे स्टिंग आप्रेशन की जद में आ गया । इस नये तांत्रिक द्वारा किये गये स्टिंग आप्रेशन से स्पष्ट आभास मिल रहा था कि अरविन्द के कुनबे द्वारा जंतर मंतर पर मंतर मार कर भ्रष्टाचार को समाप्त करने के नमूने के तौर पर जो दिखाया जा रहा था , वह एक नाटक था। पैसा लेकर पगड़ियाँ उछालने का नाटक । जंतर मंतर पर किसी की पगड़ी उछलती देख दर्शक समझते थे कि भ्रष्टाचार नंगा हो रहा है लेकिन अब लगता है कि वह तो दरवाज़े के अन्दर सौदा न पट पाने की खुंदक निकाली जा रही थी। लेकिन इन दिनों कुनबा थोड़ा निष्क्रिय है । स्टिंग आप्रेशन पर यदि विश्वास किया जाये , ( न करने का कोई कारण नहीं है क्योंकि इसी प्रकार के स्टिंग आप्रशनों से ही तो अरविन्द के कुनबे ने भी शोहरत हासिल की है ।) तो चुनाव आयोग की सक्रियता के चलते अभी किसी की पगड़ी उछालना थोड़ा मुश्किल है , लेकिन चुनाव का यह झंझट निपट जाने दीजिये उसके बाद सुपारी लेकर पगड़ी उछालने का धंधा फिर चालू हो जायेगा । इस आप्रेशन ने अरविन्द केजरीवाल समेत उसके पूरे कुनबे को दिन दिहाडे नंगा ही नहीं कर दिया बल्कि साधारण झाड़ू को सोने के झाड़ू में बदलने की तिलस्मी तकनीक का भी ख़ुलासा कर दिया ।
उसके बाद इस नाटक का दूसरा अंक चालू हुआ । यह अंक खेला जाना बहुत ज़रुरी हो गया था , क्योंकि कोई आदमी केजरीवाल के मंच पर ही उसको टंगडी मार गया था और रिहर्सल रुम में हो रही रिहर्सल को भी दर्शकों को दिखा गया था । जबकि ग्रीन रूम के बाहर साफ़ और स्पष्ट अक्षरों में लिखा रहता है कि इसमें दर्शकों का प्रवेश निषेध है । दिल्ली विधान सभा के लिये वोट डालने का समय नज़दीक़ आता जा रहा है । कुनबे ने तो दिल्ली की दीवारों पर पोस्टर चिपका दिये थे , जिसमें बाकायदा दिल्ली की जनता को सूचित कर दिया गया है कि किस तारीख़ को अरविन्द केजरीवाल दिल्ली के मुख्यमंत्री पद की शपथ , किस स्थान पर लेंगे और किस तारीख़ को दिल्ली विधान सभा उनके नेतृत्व में ‘अन्ना का जन लोकपालÓ बिल पास कर देगी । तब अन्ना हज़ारे ने अत्यन्त विनम्रता से केजरीवाल को कहा कि अपनी इन सारी रणनीतियों में कृपया मेरा नाम प्रयोग न करें और न ही मेरे नाम पर पैसा एकत्रित करें । दिल्ली में चर्चा हो रही थी कि हो सकता है कुमार विश्वास अब अन्ना के खिलाफ भी कोई कविता जारी कर दें । लेकिन अभी कविताई की तैयारियाँ हो ही रहीं थीं कि मंच पर स्टिंग आप्रेशन हो गया । केजरीवाल के कुनबा के घर आकर ही कोई आइना दिखा गया । लेकिन अब तो जो होना था वह हो चुका था और सारी दुनिया ने देख भी लिया था कि भ्रष्टाचार को रोकने के लिये ही भ्रष्टाचार किया जा रहा था । परन्तु ज्ञानी लोग ऐसे संकट काल के लिये रास्ता बता गये हैं । बीती ताही बिसारिए,आगे की सुधा लेहु । स्टिंग आप्रेशन से लगे घावों को लेकर कब तक रोया जा सकता था ? समय हाथ से रेत की तरह फिसलता जा रहा है । इसलिये रातोंरात भ्रष्टाचार से लड़ने के मूल स्क्रिप्ट में परिवर्तन किया गया । मंच पर नये सिरे से जल्दी जल्दी दोबारा पर्दे लगाये गये । कुनबे के मुख्य सूत्रधार अरविन्द केजरीवाल के मंच पर आने की बाकायदा घोषणा की गई । वे सचमुच गंभीर मुद्रा में प्रकट हुये । एक बारगी तो पुराने दर्शक भी गच्चा खा गये । अरविन्द कभी भ्रष्टाचार से समझौता नहीं करेंगे । कुनबे में कोई कोई कितना भी नज़दीक़ी क्यों न हो । अरविन्द ने कहा की सख़्ती से कुनबे में व्याप्त भ्रष्टाचार को समाप्त किया जायेगा और संलिप्तता सिद्ध होने पर कुनबइयों को घर से बाहर कर दिया जायेगा । दर्शकों ने तालियाँ पीटीं और पूछा, जाँच कौन करेगा ? जबाब था , हमीं करेंगे और कौन करेगा ? अब दर्शकों के अपने सिर पीटने की बारी थी । जिन पर दोष हैं , वे ख़ुद ही जाँच करेंगे और ख़ुद ही सजा सुनायेंगे ? अरविन्द केजरीवाल का लोकतंत्र और उनके भ्रष्टाचार से लड़ने के नाटक का पर्दाफ़ाश हो चुका था । लेकिन फिर भी कहीं आशा की एक किरण बची हुई थी कि शायद वे सचमुच जाँच कर कुछ लोगों को पकड़ भी लेंगे । लेकिन हुआ वही जिसका अरविन्द केजरीवाल के भ्रष्टाचार मुक्त समाज हेतु चलाये जा रहे आन्दोलन को देर से देख रहे विशेषज्ञों को अंदेशा था । अरविन्द ने स्वयं ही जाँच कर अपने राजनैतिक कुनबे के लोगों को दोषमुक्त घोषित कर दिया । इतना ही नहीं जिस मीडिया ने अरविन्द बाबू को कभी अतिरिक्त समय देकर भी जनता का हीरो बनाया था, उसी मीडिया की जम कर निन्दा की । मीठा मीठा हड़प, कड़वा कड़वा थू । तो कुल मिला कर यह हुआ अरविन्द केजरीवाल का लोकतंत्र , जन लोकपाल और पारदर्शिता का नमूना । सिपाही भी आप , जाँच कर्ता भी आप और न्यायाधीश भी आप स्वयं ही । इस आदर्श माडल से जो जाँच का परिणाम आ सकता था , वही आया । केजरीवाल अपने इसी लोकतांत्रिक माडल और इसी लोकपाल के बलबूते देश का प्रशासन संभालना चाहते हैं और यह भी चाहते हैं कि लोग उनकी इस बात पर विश्वास कर लें कि वे सचमुच भ्रष्टाचार के खिलाफ लड रहे हैं । लेकिन असली दुख तो इस बात का है कि सिस्टम के फ़ेल हो जाने से व्याप्त हो रहे शून्य को भरने के लिये , लोगों में फैली निराशा और हताशा का लाभ उठा कर अरविन्द केजरीवाल जैसे अनेकों समूह या कुनबे आगे आ रहे हैं । यदि स्थिति यही रही तो देश भर में ऐसे छोटे छोटे समूह , इस का लाभ उठा कर , स्थापित हो सकते हैं । उनकी इस पलांटेशन में मीडिया भी भरपूर सहायता करेगा, जिस प्रकार उसने केजरीवाल के समूह को पलांट करने में की थी ।
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