महर्षि दयानंद सरस्वती जी महाराज ने कहा है कि रेगिस्तान में अरण्ड का पौधा भी बड़ा पेड़ दिखाई देता है। यही स्थिति समाज और राष्ट्र के लिए उस समय बन जाया करती है जब वास्तव में राष्ट्र में बड़े नेता ना हों और छोटे छोटे दीपक स्वयं को सूर्य समझने लगें या समझाने का प्रयास करते दीखें। मुजफ्फरनगर दंगों में मानवता हारी और मानवता को ही हत्या की गयी, लेकिन नेताओं की एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप की ऐसी झड़ी लगी कि सच कहीं दबकर रह गया। मरने वालों को मरने के बाद भी हिंदू मुस्लिम के रूप में देखा जा रहा है। कोई भी ये नही मान रहा कि जो गया वह एक मनुष्य था और अब हमारी मानवता इसी में है कि हम जाने वाले को सम्प्रदाय के नाम पर ना जानें, अपितु उसे एक मनुष्य का नाम दें। झूठे तथ्य, झूठे आंकड़े और झूठे लोग सच को झूठ की इतनी तहों में लपेट चुके हैं कि आप चाहे कितने ही आयोग बना लेना, पर सच को नही खोज पाओगे।
‘तहलका’ समाचार पत्रिका के संस्थापक एवं संपादक तरूण तेजपाल अपनी कलम की तरूणाई के कारण पूर्व में ‘तहलका’ के माध्यम से ‘तहलका’ मचा चुके हैं, परंतु अब एक बार उनकी वास्तविक तरूणाई रंग लायी है और उन पर उनकी एक सहयोगी महिला पत्रकार ने ‘यौन शोषण’ का आरोप जड़ दिया है। ‘तहलका’ के तरूण तेज के इस कृत्य ने संवेदनशील लोगों के हृदय पर वज्रपात कर दिया है। लोग सोचने पर विवश हो गये हैं कि अंतत: हम जा किधर रहे हैं? कलम यदि रास्ता भूलेगी या संसार के क्षणिक सौंदर्य को ईश्वरीय सौंदर्य के समक्ष उच्च और उत्कृष्ट मानेगी तो मानना पड़ेगा कि उस कलम के पीछे सांसारिक ऐषणाऐं ही खड़ी थीं जो उसे ऊंचाई देे रही थीं। उसमें ‘साधना’ का अभाव था। लक्ष्य और साधना को साधना ही गरिमा देती है। यदि साधना को जीवन से निकाल दिया तो लक्ष्य और साधन चाहे कितने ही ऊंचे और पवित्र क्यों ना हो व्यक्ति के सपनों का महल साधना के अभाव में भर-भराकर गिर जाता है। इसलिए तरूण तेजपाल के अपने सपनों का महल ढह चुका है और वह अब केवल एक आरोपी की मुद्रा में खड़े होकर अपनी सफाई पेश करते दिखाई देंगे। वह पत्रकारिता के क्षेत्र में खोखले दरखत सिद्घ हुए हैं और जो उनसे आशाएं की जा रही थीं-उन पर वह खरे नही उतर पाये हैं। जीवन की सबसे बड़ी कठिनाई का नही अपितु सबसे बड़ी हार का वह सामना कर रहे हैं। ऐसी हार जिसका अंत केवल मृत्यु में ही होता है। काल सबको खा जाता है, परंतु कीर्ति को नही खा पाता है। कीर्ति काल को पछाड़ देती है और उस पर अपना वर्चस्व स्थापित कर लेती है। जिस व्यक्ति की कीर्ति पर काले बादल छा जाएं वह जीवित ही मर जाता है।
राजनीति में स्वच्छता का अभियान भ्रष्टाचार मुक्त भारत का निर्माण करने के संकल्प को लेकर चलने वाले अन्ना हजारे ने आरंभ किया। उस अभियान में अरविंद केजरीवाल ने बढ़-चढ़कर भाग लिया। परंतु अपने गुरू के साथ ही ‘छल’ करते हुए अपनी लोकप्रियता के नशे में धुत्त अरविंद ने राजनीति की कीचड़ में ‘कमल’ खिलाने का सपना लेकर ‘आम आदमी पार्टी’ का गठन कर लिया। लोकतंत्र में अपने विचार को बलवती करने और सत्ता प्राप्त करने का अधिकार सबको है। इसलिए देश के लोगों ने आम आदमी पार्टी के गठन को अनुचित नही माना। अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली के विधानसभा चुनावों में अपने प्रत्याशी उतार दिये। लोगों को भ्रांति थी कि एक नया दरखत राजनीति में दिखाई देने लगा है, परंतु वह दरखत भी झाड़ी या अरण्ड का पौधा ही सिद्घ हुआ। भ्रष्टाचार के विरूद्घ खड़ा हुआ नेता भ्रष्टाचार में ही फंसा और धंसा नजर आया। लोगों को एक ‘स्टिंग ऑपरेशन’ के माध्यम से पता चल गया कि कालाधन डालरों के माध्यम से कैसे इस आम आदमी पार्टी के पास आ रहा है? खोखले नेता-खोखले दरखत, खोखले आदर्श???
पटना में नरेन्द्र मोदी की रैली हुई, तो नीतीश कुमार को पता चल गया कि बिहार की जनता किधर जा रही है? सावधानी से अपनी वाणी को उसी प्रकार संभालने लगे जैसे एक ‘देहाती महिला’ अपने ज्येष्ठ के सामने सर से उतरते पल्लू को संभालने लगती है। किसी भी प्रकार अपने पुराने दोस्तों से मुलाकात की इच्छा जगने लगी। तब एक बहाना मिल गया। देश की सरकार (जो अब एक देशी शहजादे के अनाड़ीपन से चल रही है) ने ‘शहजादे’ के दिशा निर्देश पाकर सचिन तेंदुलकर को भारत रत्न देने की घोषणा कर दी। क्रिकेट के इस ‘भगवान’ के साथ ही महान वैज्ञानिक सी.एन. राव के नाम की भी घोषणा कर दी गयी। नाम दोनों ही अच्छे हो सकते हैं, नामों पर किसी को आपत्ति नही है, परंतु इन नामों में जो राजनीति और कमनिगाही दिखाई दी वह आपत्ति जनक है। सचमुच भाजपा के वरिष्ठ नेता अटल जी देश की जनता की दृष्टि में ‘भारत-रत्न’ हंै, उन्हें कांग्रेस के मनमोहन सिंह एक बार ‘भीष्म पितामह’ तो कह चुके हैं, पर उन्हें ‘भारत-रत्न’ के योग्य नही माना गया। इसी प्रकार भारतीय खेल हॉकी के जादूगर मेजर ध्यान सिंह की स्थिति है, सारा देश इन दोनों लोगों के लिए ‘भारत-रत्न’ देने की प्रतीक्षा कर रहा था। लेकिन खोखले नेताओं के खोखले आदर्श सामने आ गये और उन्होंने दूसरे नामों की घोषणा कर दी।
तब पटना के गांधी मैदान में चित्त हुए नीतीश को नीति की बात उसी प्रकार स्मरण हो आयी जैसे कई षडयंत्रों में सम्मिलित रहे कर्ण को युद्घ के मैदान में अपना रथ कीचड़ में फंस जाने पर धर्म और नीति की, बात का स्मरण हो आया था। इसलिए उन्होंने अटल जी को भारत रत्न देने की बात कह डाली। निश्चित रूप से उचित बात को कहे जाने का अधिकार लोकतंत्र में विरोधी को भी होता है, और जब उस उचित बात को विरोधी कहता है तो वह और भी अधिक सात्विक और प्रामाणिक बन जाती है, परंतु तभी जब विरोधी की भावना और बुद्घि भी सात्विक और प्रामाणिक हो। नीतीश ने बड़ी बात कहकर भी अपने खोखले पन को दर्शा दिया है। उन्हें राजनीतिक परिपक्वता का परिचय देना था तो उसी समय देना चाहिए था, जब भाजपा उन से प्रेमपूर्ण और नीतिगत संबंध बनाये रखने में रूचि दिखा रही थी। यहां तक कि उनकी पार्टी के लोग भी उन्हें समझा रहे थे कि मोदी बड़ी सावधानी से धारा 370 को हटाने, समान नागरिक संहिता लागू करने, राममंदिर निर्माण कराने जैसे मुद्दों पर कुछ नही बोल रहे हैं। वह ‘सबका देश-सबको समान अधिकार’ की बात कह रहे हैं, तो इस उचित बात पर अपनी मुहर लगाकर उन्हें समर्थन दिया जाए। परंतु उस समय के दम्भी नीतीश ने ‘द्रोपदी’ का चीरहरण होने दिया और पटना के गांधी मैदान में रथ फंसते ही धर्म और नीति की बात करने लगे। उचित बात के लिए उचित व्यक्ति (अटल) का आश्रय ढूंढ़ते नीतीश उचित अवसर को तो चूक गये और अब समय के चूके गोते खा रहे हैं। खोखले लोग, खोखली बातें:-रस नही आता-दूर-दूर तक जल नही दीखता-घोर राजस्थान में देश का रथ चला गया है।
संविधान ने देश में जाति, संप्रदाय और लिंग के आधार पर किसी भी प्रकार से राजनीति करने या लोगों के मध्य विभेद करने को अनैतिक मानते हुए निषिद्घ किया है। परंतु देश के एक बड़े नेता मुलायम सिंह यादव उत्तर प्रदेश में संविधान की इस मान्यता की धज्जियां उड़ा रहे हैं और सीधे सीधे खुली साम्प्रदायिक घोषणा कर रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट भी उनकी घोषणाओं पर कड़ा दृष्टिकोण अपना चुका है परंतु उन्होंने फिर कह दिया है कि वह मुस्लिमों के हकों की लड़ाई को लड़ते रहेंगे। मुस्लिमों के अधिकार क्या हैं? क्या लैपटॉप पाना या 30 हजार रूपये अध्ययनरत मुस्लिम लड़कियों को दिलवाना या साम्प्रदायिक आधार पर उनके धर्मस्थलों या कब्रिस्तानों की मरम्मत आदि कराना ही मुस्लिमों के अधिकार हैं? नहीं हैं, उनके अधिकार हैं-शिक्षा, स्वास्थ्य और नागरिक सेवाओं में उनको स्थान देना। इसके साथ ही भारत माता के भी कुछ अधिकार हैं-मां के प्रतिपूर्ण समर्पण। इसलिए प्रत्येक नागरिक को ऐसा पाठ पढ़ाना सरकार का दायित्व है कि वह स्वभावत: भारत माता के प्रति व इसके सामाजिक मूल्यों के प्रति निष्ठावान बने। हमारी यह बात केवल मुस्लिमों के लिए ही नही है, अपितु प्रत्येक नागरिक के लिए है। उस दिशा में मौलाना मुलायम सिंह यादव इतना ही काम कर पाये हैं कि वह स्वयं मौलाना हो गये। खोखला आदर्श-खोखले कद का निर्माण करता है और कद को कभी व्यक्ति या व्यक्ति के प्रशंसकों की दृष्टि से नही देखा जाता है, अपितु इतिहास अपने मानदण्डों से स्थापित करता है। सचमुच देश की परिस्थितियों को देखकर यही कहा जा सकता है :-
आंधियों से कुछ ऐसे बदहवास हुए लोग,
कि जो दरखत खोखले थे उन्हीं से लिपट गये।
रेगिस्तान में कोई बड़ा पेड़ भी तो नही दीख रहा, अरण्ड के पेड़ों से चिपटना या खजूर की छाया में सोने का दिवास्पन लेना या आंधी में खोखले दरखतों से लिपट जाना देश की जनता की सबसे बड़ी बाध्यता है। हम सभी ईश्वर से प्रार्थना करें कि 2014 के पश्चात देश को सुदृढ़ और सुविवेकी नेतृत्व मिलें। हम अपने मत का मूल्य समझें।
मुख्य संपादक, उगता भारत