Categories
विशेष संपादकीय

कांग्रेस के कफन में कील ठोंकते दिग्विजय सिंह

कांग्रेस के नेता दिग्विजय सिंह इस समय ‘अपेक्षाकृत शांत’ दीख रहे हैं। पूरा देश पांच राज्यों के चुनावों को जब 2014 के लोकसभा चुनावों का पूर्वाभ्यास मान रहा है और इन चुनावों में अपेक्षा से अधिक रूचि दिखा रहा है तब दिग्विजय सिंह का शांत रहना कई प्रश्न खड़े करता है।
दिग्विजय सिंह कांग्रेस के बड़बोले नेता हैं, और उन्हें सुर्खियों में बने रहने की कला आती है। इसलिए चुनावों के समय वह अपनी कला को भूल गये होंगे, यह नही कहा जा सकता। निश्चित रूप से वह इस समय ‘रहस्यात्मक राजनीति’ की शतरंज बिछा रहे हैं, वह जानते हैं कि ‘रहस्यात्मक राजनीति’ ही व्यक्ति का उस समय बचाव किया करती है, जब उसके विरोधी उसका खात्मा होता देखने के लिए अत्यंत लालायित हों। इसलिए ‘रहस्यात्मक राजनीति’ के माध्यम से दिग्विजय सिंह सक्रिय किंतु शांत अज्ञात -वास में हैं। कांग्रेस का अल्हड़ नेतृत्व उनकी चाल से अनभिज्ञ हो सकता है। दिग्विजय सिंह की छवि उनके प्रदेश (मध्य प्रदेश) में अच्छी नही है लोग उन्हें मध्य प्रदेश का घमंडी लालू मानते हैं। वह प्रदेश के दो बार मुख्यमंत्री रहे हैं और उनकी छवि मुख्यमंत्री रहते हुए जिस प्रकार बिगड़ी उसे सुधारने के लिए वह अब तक जोर लगा रहे हैं। परंतु प्रदेश की जनता है कि उन्हें माफ करने को तैयार नही है। अत: कहीं ‘सड़े-टमाटरों’ से सामना ना हो जाए, इसलिए राजनीति के कुशल खिलाड़ी दिग्विजय सिंह प्रदेश की चुनावी सभाओं में मंच पर पीछे बैठे दिखाई देते हैं। कई स्थानों पर उन्होंने बोलना भी उचित नही समझा है। दिग्विजय सिंह अपनी ‘रहस्यमयी राजनीति’ को अपने पक्ष में भुना रहे हैं, वो स्वयं ‘सड़े-टमाटरों’ से बचाने की अवस्था में न दिखाकर पार्टी आलाकमान और पार्टी उपाध्यक्ष राहुल गांधी के प्रति अपनी निष्ठा का निश्चायक प्रमाण स्थापित कर रहे हैं। ऐसे में यदि पार्टी सत्ता में आ जाती है तो दिग्विजय सिंह अपनी निष्ठा का मूल्य वसूलने के लिए मैदान में दम ठोंककर आ जाएंगे, और यदि नही आती है, तो ‘हार का ठीकरा’ कांग्रेस की बलिदानी परंपरा के लिए ‘बलि का बकरा’ बनने जा रहे मनमोहन सिंह के सिर फोड़ दिया जाएगा। तब दिग्विजय सिंह अपने कांग्रेसी आका ‘सोनिया-राहुल’ के बचाव में एक संकट मोचक की तरह आ धमकेंगे। इसी को कहते हैं, आम के आम गुठलियों के दाम, और यही है दिग्विजय सिंह की रहस्मयी राजनीति। राजनीति में राजनीति के पीछे के रहस्य का घेरा ही राजनीति की दुल्हन को सुंदरता देता है, उसके प्रति आकर्षण उत्पन्न करता है। जिस राजनीतिज्ञ की राजनीति के पीछे का रहस्य का घेरा हट जाता है वह राजनीति में वैसे ही आभाहीन और तेजहीन हो जाता है जैसे ‘पूर्ण ग्रहण’ से ग्रसित चंद्रमा हमें आकाश में केवल एक लाल ठीकरे की भांति दिखायी दिया करता है। इसलिए राजनीति में ‘पूर्ण ग्रहण’ से बचने के लिए हर चतुर राजनीतिज्ञ रहस्यमयी राजनीतिक दांव पेंचों को आपातकाल के लिए अवश्य बचाकर रखता है। दिग्विजय सिंह जानते हैं कि पार्टी के सितारे इस समय गर्दिश में हैं, इसलिए उन्होंने अपने आपको 2014 के लोकसभा चुनावों के पश्चात बोलने के लिए सुरक्षित कर लिया है। क्योंकि 2014 के चुनावोपरांत कांग्रेस में उन लोगों की खाल नापी जाएगी जिन जिन के बोलने से पार्टी को क्षति होगी। तब कांग्रेस आलाकमान अपनी गर्दन बचाएगा और दूसरों को उसमें फांसेगा। उस समय कांग्रेस के कुछ चाटुकार प्रवृत्ति के लोग सामने आएंगे और हाथ में रस्सा लिये फटाफट कुछ ‘बलि के बकरों’ को आलाकमान के सामने बड़ी वफादारी से पेश करेगा। उन लोगों का नेतृत्व निश्चित रूप से तब दिग्विजय सिंह के हाथों में होगा। दिग्विजय सिंह उस समय के लिए ही अपने आपको बचाकर ‘बैकबेंचर’ बनना इस समय अपने लिए अच्छा मान रहे हैं। पार्टी के लिए वर्तमान परिस्थितियों में सत्ता में लौटना कठिन होता जा रहा है। यदि फिर भी किसी चमत्कार ने पार्टी को सत्ता में ला दिया तो भी दिग्विजय सिंह घाटे में नही रहेंगे। क्योंकि तब वह अपनी चुप्पी को पार्टी के लिए यूं दिखाएंगे कि मेरी वजह से जो रोज के बखेड़े खड़े होते थे मैंने उनसे पार्टी को बचाने के लिए स्वयं को शांत किया और समर्पित होकर तथा मीडिया से आवश्क दूरी बनाकर पार्टी को सत्ता तक पहुंचाने में अपना योगदान दिया।
दिग्विजय सिंह की चुप्पी को न समझने वाले लोग धीरे धीरे उनके स्थान पर स्वयं को ‘डमी दिग्विजय सिंह’ के रूप में स्थापित करने का प्रयास करेंगे। परंतु वे धीरे धीरे हाशिये पर चले जाएंगे, या चुनावों के बाद की समीक्षा में जब बलि के बकरों के गले नापे जाएंगे तो कई उस ‘गला नाप’ प्रतियोगिता में अपना उचित पुरस्कार प्राप्त कर जाएंगे। किसी भी परिस्थिति में दिग्विजय सिंह की राजनीति असफल नही हो पाएगी।
कांग्रेस के लिए यह समय संकट का है, और संकट के समय दिग्विजय सिंह जैसे ‘अच्छे दरबारी’ को अपना गला बचाने की बजाए अपने नेता का गला बचाने का प्रयास करना चाहिए। बात विचारणीय ये है कि अपना गला बचाकर और आलाकमान का गला फंसाकर दिग्विजय सिंह असफल कहे जाएंगे या सफल। सारे घटनाक्रम को इतिहास दूर से बड़ी बारीकी से देख रहा है, और जब सही समय आएगा तो इतिहास का सत्यान्वेषी विद्यार्थी दिग्विजय सिंह की ‘रहस्यमयी राजनीति’ को कांग्रेस के कफन में अंतिम कील ही स्थापित करेगा। क्या ही अच्छा हो कि कांग्रेस दिग्विजय सिंह के सच को समझे और परिणाम आने से पहले सचेत हो जाए।

Comment:Cancel reply

Exit mobile version