*एक वाकया*
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-राजेश बैरागी-
हालांकि यह नोएडा के एक पुलिस थाने में आज का वास्तविक वाकया है परंतु आप इसे किसी भी थाने में होता हुआ देख सकते हैं। पुलिस आयुक्त प्रणाली लागू होने का फायदा यह हुआ कि अफसरों की बाढ़ आ गई और नुकसान भी यही हुआ कि अफसरों की बाढ़ आ गई। चूंकि अफसरों की बाढ़ संभालने का सारा दारोमदार थाने पर होता है तो दरोगा हर माल क्षमा करें मामले पर लार न टपकाये तो क्या करे। तो हुआ यूं कि पति-पत्नी आपस में झगड़ बैठे, समझौते को तैयार नहीं।
पत्नी ने शिकायत की तो दरोगा जी की लार पौंछने का दायित्व पति पक्ष का हुआ।पति पक्ष भी समकक्ष दरोगाओं से लेकर पुलिस आयुक्त तक की सिफारिश लगवाने लगा और इस हुज्जत में शाम हो गई। दरोगा पति पक्ष को जितना धमकाये उससे ज्यादा रिझाये। दरोगा पूरे दिन के घटनाक्रम को दोहराते हुए बार-बार यह समझाने का प्रयत्न कर रहा था कि उसने कब कब पति पक्ष का पक्ष लिया था। इस दौरान उसके मुंह से लार कभी इधर गिर जाती और कभी उधर। पत्नी पक्ष पहले ही चला गया था।अब पति पक्ष भी खिसकने लगा तो निराश हताश दरोगा जी ने आखिरी और अभेद्य पासा फेंका,-चाहे जिससे सिफारिश लगवा लो, रिपोर्ट तो मुझे ही लगानी है।’ और दरोगा जी का यह पासा बिल्कुल सही पड़ा।(नेक दृष्टि हिंदी साप्ताहिक नौएडा)