दिनेश शुक्ल
230 सदस्यों वाली मध्य प्रदेश विधानसभा में 203 सदस्य हैं, इसमें कांग्रेस की 114 से घटकर 89, भाजपा के 107 और सात अन्य सदस्य हैं। उपचुनाव के लिए दलगत स्थिति पर नज़र दौड़ाए तो कांग्रेस के 25 विधायकों के इस्तीफे के बाद अब उसके पास 89 विधायक हैं।
मध्य प्रदेश में मार्च महीने में हुए सत्ता परिवर्तन के बाद से लगातार कांग्रेस विधायकों द्वारा विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा देना जारी है। कांग्रेस के इन विधायकों ने सिर्फ विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा ही नहीं दिया बल्कि सत्ताधारी दल के साथ भी हो लिए। 15 साल बाद सत्ता में लौटी कांग्रेस की कमलनाथ सरकार महज 15 महीने ही चल सकी। ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके समर्थकों सहित कांग्रेस के असंतुष्ट विधायकों ने मार्च में बेंगलुरु से विधानसभा की सदस्यता से अपने इस्तीफे देकर मुख्यमंत्री कमलनाथ को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने पर मजबूर कर दिया और एक बार फिर सत्ता में लौटी भाजपा की शिवराज सरकार ने कुर्सी संभालने के साथ ही ऑपरेशन इस्तीफा पार्ट टू शुरू कर दिया।
ज्योतिरादित्य सिंधिया और भाजपा के बीच बनी सहमति के बाद उन्हें पार्टी ने राज्यसभा भेजा तो वही उनके 19 में से 12 समर्थकों को मंत्रिमंडल में जगह दी गई। लेकिन विभागों के बंटवारे को लेकर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीच ठन जाने के बाद भाजपा के अंदर उसी तरह घमासान मच गई जैसे मंत्रिमंडल में कितने सिंधिया समर्थकों को मंत्री बनाना है इसे लेकर छिड़ी थी। मामला जैसे पहले भाजपा केन्द्रीय नेतृत्व के पास पहुँचा था उसी तरह विभाग बंटबारे को लेकर भी पहुँचा। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने तो अपनी नाराजगी जाहिर करते हुए अपने राजनीतिक अंदाज में यहाँ तक कह दिया कि विष तो शिव ही पीते है। तो वहीं भाजपा के वरिष्ठ नेताओं ने ज्योतिरादित्य सिंधिया खेमें को लेकर अप्रत्यक्ष रूप से मोर्चा खोल दिया। पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती ने तो ट्वीट कर अपनी राय रखते हुए लिखा कि- ”लॉकडाउन के पहले फ़रवरी के अंत में जब मध्यप्रदेश में @INCIndia की सरकार गिरने को आ गयी तभी से मेरा यह मत था की विधानसभा भंग कराके @ChouhanShivraj जी के नेतृत्व में चुनाव होना चाहिये। इन 24 सीटों को जीतने के लिए हम जितना प्रयास करेंगे उतने में हम पूरा प्रदेश जीत जाते।”
लेकिन भाजपा ने इस्तीफा पार्ट टू जारी रखा बुंदेलखंड के छतरपुर जिले की मलहेरा विधानसभा सीट से कांग्रेस विधायक प्रद्युम्न सिंह लोधी ने पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती से बात करने के बाद विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा देकर भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर ली। उमा भारती के भोपाल स्थित बंगले से भाजपा प्रदेश अध्यक्ष विष्णुदत्त शर्मा के साथ निकलकर प्रद्युमन सिंह लोधी पहले मुख्यमंत्री निवास पहुँचे और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से राजनीतिक मंशा प्रगट कर भाजपा कार्यालय पहुँचकर एक बार फिर बीजेपी की सदस्यता ग्रहण कर ली। एक बार इसलिए क्योंकि विधानसभा 2018 चुनाव से पहले प्रद्युम्न सिंह लोधी भाजपा नेता ही थे लेकिन भाजपा ने टिकट नहीं दिया तो प्रद्युम्न सिहं लोधी बगावत कर कांग्रेस में शामिल हो गए और कांग्रेस को जिताऊ उम्मीदवार लगा तो उन्होंने टिकट देकर मैदान में उतार दिया। प्रद्युम्न सिंह जीत भी गए और कांग्रेस अध्यक्ष के सामने सरकार गिरने पर फूट-फूटकर रोए भी लेकिन सत्ता परिवर्तन के साथ उनका भी हृदय परिवर्तन हो गया। भाजपा में आते ही वादे के मुताबिक उन्हें 24 घंटे के भीतर ही मध्य प्रदेश राज्य नागरिक आपूर्ति निगम का अध्यक्ष बनाकर उन्हें कैबिनेट मंत्री का दर्जा दे दिया गया। यह सिलसिला यहीं नहीं रूका 12 जुलाई को प्रद्युम्न सिंह लोधी कांग्रेस से भाजपा में शामिल हुए तो वही 17 जुलाई को बुरहानपुर जिले की नेपानगर विधानसभा सीट से कांग्रेसी विधायक सुमित्रा देवी कास्डेकर ने भी विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा देकर भाजपा की सदस्यता ले ली और उनके पीछे-पीछे 23 जुलाई को खंडवा जिले की मांधाता सीट से कांग्रेसी विधायक नारायण पटेल ने भी विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा देकर भाजपा की सदस्यता ले ली। नारायण पटेल प्रदेश कांग्रेस कमेटी के पूर्व अध्यक्ष अरूण यादव के खास माने जाते हैं।
हालंकि राजनीतिक गलियारों में अब यह माना जा रहा है कि अब कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल होने वाले विधायकों को भाजपा की तरफ से भी नो इंट्री का बोर्ड दिखा दिया गया है। लेकिन सिंधिया की बगावत से शुरू हुआ सिलसिला 27 विधानसभा की सीटों पर उप चुनाव के साथ अभी थम गया है। जिसमें 20 सिंधिया समर्थकों सहित कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और अनूपपुर से विधायक रहे बिसाहूलाल सिंह और सुवासरा विधायक रहे हरदीप सिंह डंग को मिलाकर 22 विधायकों के बाद प्रद्युम्न सिंह, सुमित्रा देवी और नारायण पटेल ने विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा देकर सीटें खाली कर दी है। जबकि मुरैना जिले की जौरा सीट से कांग्रेस विधायक बनवारीलाल शर्मा और आगर-मालवा जिले के आगर से विधायक मनोहर ऊंटवाल के निधन के बाद दो सीटें खाली हुई थी। वहीं अब विधायकों के निधन से खाली हुई विधानसभा की खाली सीटों की संख्या और कांग्रेस विधायकों के इस्तीफा दिए जाने के बाद 27 हो गई है।
फिलहाल 230 सदस्यों वाली मध्य प्रदेश विधानसभा में 203 सदस्य हैं, इसमें कांग्रेस की 114 से घटकर 89, भाजपा के 107 और सात अन्य सदस्य हैं। उपचुनाव के लिए दलगत स्थिति पर नज़र दौड़ाए तो कांग्रेस के 25 विधायकों के इस्तीफे के बाद अब उसके पास 89 विधायक हैं। वहीं बीजेपी के पास 107 विधायक हैं साथ ही दो बीएसपी और एक सपा सहित 4 निर्दलीय विधायक भी भाजपा के पक्ष में है। जिसमें से एक निर्दलीय विधायक जिन्हें पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ का खास माना जाना था और उनकी कैबिनेट में निर्दलीय मंत्री के तौर पर शामिल रहे वारासिवनी से निर्दलीय विधायक प्रदीप जयसवाल गुड्डा को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी कैबिनेट मंत्री का दर्जा देते हुए मध्य प्रदेश राज्य खनिज निगम लिमिटेड का अध्यक्ष बना दिया है।
अब आगामी उप चुनाव में बीजेपी को पूर्ण बहुमत के लिए सिर्फ 9 विधायकों की जरूरत है। जबकि बसपा के 2, सपा के 1 और 4 निर्दलीय विधायक उनके साथ है। वही प्रदेश कांग्रेस कमेटी में ग्वालियर-चंबल संभाग के मीडिया प्रभारी केके मिश्रा ने भाजपा की शिवराज सरकार पर पर बड़ा आरोप लगाया है। केके मिश्रा ने ट्वीट कर कहा कि बीजेपी हार के डर से चुनाव को टालना चाहती है। उन्होंने इसको लेकर अपना एक वीडियो भी जारी किया और उसमें आरोप लगाते कहा है कि चुनाव आयोग ने 20 जुलाई को कहा, कोरोना की वजह से चुनाव बढेंगे, 23 जुलाई को कहा सितम्बर अंत तक समय पर ही होंगे, 25 जुलाई मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान चिरायु अस्पताल में भर्ती होते है, इस दौरान उनकी सारी प्रशासनिक गतिविधि, प्रचार अभियान, तबादला उद्योग से सम्बन्धित फाइलों का कार्य सुचारू रूप से संचालित होता है, कुछ दिनों बाद सुबह पॉजिटिव होने के बाद उसी दिन वे डिस्चार्ज भी हो जाते है, 26-27 जुलाई मुख्य सचिव, आयोग को चुनाव आगे बढ़ाने को लेकर पत्र लिखते हैं ? यह प्रामाणिक राजनैतिक लक्षण सरकार के चुनावी मैदान से पलायन और रणछोड़दास हो जाने के स्पष्ट प्रमाण है ? केके मिश्रा ने शिवराज सरकार पर कोरोना के नाम पर उपचुनाव टलवाने का गम्भीर आरोप लगाते हुए कहा कि आखिरकार सरकार इससे डर क्यों रही है। मिथुन राशि का कौन सा “क” उसे भयभीत किये हुए है- कोरोना, कांग्रेस या कमलनाथ ?
बहरहाल पहले सिंधिया की बगावत और फिर एक-एक कर विधायकों का पार्टी से पलायन ने कांग्रेस की कमर तोड़ दी है। 15 साल बाद सत्ता में लौटी कांग्रेस को यह समझ ही नहीं आ रहा कि आखिर 15 महीनों में ही उनका बोरिया बिस्तर कैसे बंध गया। वही अब उप चुनाव से आस लगाए बैठी कांग्रेस उप चुनाव टलने से भी परेशान है। तो वही दोनों पार्टीयों के नेताओं को मध्यावर्ती चुनाव का डर भी सता रहा है। दोनों ही पार्टीयां अपने-अपने स्तर पर इन 27 विधानसभा सीटों पर जनता का मंशा भापने में लगी है। जहां कांग्रेस को आशा है कि वह गद्दरी के नाम पर अपने प्रत्याशी को उप चुनाव में जीत दिलवा पाएगी तो वही भाजपा की शिवराज सरकार अपने पिछले 15 साल के शासन काल और पिछले 6 माह में किए गए काम को रखकर जनता के बीच जाना चाहती है। लेकिन मध्य प्रदेश में आसमंजस्य की स्थिति अभी भी बनी हुई है कि कही प्रदेश में उप चुनाव के बीच मध्यावर्ती चुनाव की स्थिति न बन जाए।
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