हिन्दुओं को उत्पीड़ित करने वाला इतिहास का भयंकरतम षडयंत्र साम्प्रदायिक और लक्ष्यित हिंसा निवारण विधेयक

राष्ट्रीय (तथा कथित) सलाहकार (एनएसी) communal-300x200द्वारा सोनिया गांधी की अध्यक्षता में 2011 में साम्प्रदायिक व लक्ष्यित हिंसा रोधक विधेयक का प्रारूप तैयार किया गया है। इसे अब संसद के आगामी सत्र में प्रस्तुत करने की योजना है। शीर्षक देखकर आम आदमी समझेगा कि इसके द्वारा साम्प्रदायिक हिंसा को रोकने तथा उसके लिए दण्ड दिये जाने का प्रबंध किया जाएगा। परंतु विधेयक की धाराओं को ध्यान में पढ़ने पर समझ में आएगा कि यह विधेयक भारत के बहुसंख्यक हिंदू समाज को मुसलमानों का स्थायी रूप से गुलाम बनाने का अब तक के इतिहास का भीषणतम ऐसा घातक प्रहार है जो हिंदुओं पर अत्याचार अन्याय व अमानवीय प्रहार करने का कानूनी अधिकार मुसलमानों और ईसाईयों आदि को प्रदान करेगा।
जिस प्रकार गुवाहटी हाईकोर्ट ने निर्णय दिया कि सीबीआई संवैधानिक संस्था नही है और सर्वोच्च न्यायालय ने इसके पहले कहा था कि सीबीआई पिंजरे में कैद तोते के समान है, उसी प्रकार राष्ट्रीय सलाहकार परिषद भी सोनिया गांधी की निजी संस्था है जिसका वास्तव में कोई संवैधानिक अधिकार नही है। इसके जो सदस्य हैं उनका चयन सोनिया गांधी ने किया है, भारत की संसद या केन्द्रीय मंत्रि-परिषद द्वारा नही किया गया है।
प्रारूप समिति के सदस्य व संयोजक मण्डल की नामावली: सोनिया गांधी, हर्ष मंदर, तीस्ता जावेद सीतलवाड, पीआई जोन्स, नजमी वजीरी, माजा दारूवाला, प्रसाद सिरीवेला, वंदा ग्रोवर, ऊषा रामनाथन, गोपाल सुब्रमण्डयम, फराह नकवी, अबुसलेह शरीफ, असगर अली इंजीनियर, गगन सेठी, जॉन दयाल, जस्टिस हास्बेट सुरेश, कमल फारूकी, मंजूर आलम, मौलाना नियाज फारूकी, शबनम हाशमी, सय्यद शाहबुद्दीन सिस्टर मेरी स्कारिया, सुखदेव थोराट, उपेन्द्र बख्शी, उमा चक्रवर्ती, पीआई होजे, एचएस फुल्का, राम पुनियानी, अनुआगा, रूपरेखा वर्मा, समर सिंह, सौम्या उमा, एमएस स्वामीनाथन (एमपी) डॉ नरेन्द्र जाधव, मीराई चटर्जी, प्रमोद टंडन अरूणा राय माधव गाडगिल, नरेश चंद्र सक्सेना, डॉ एके शिवकुमार, दीपा जोशी। इनमें अधिकतर सदस्य हिंदू विरोधी गतिविधियों से जुड़े रहे हैं। हर्ष मंदर पर अरबों रूपये के विदेशी हवाला कारोबार के आरोप प्रकाशित हो चुके हैं। सीतलवाड वही महिला है जिसे गुजरात दंगों के संदर्भ में झूठा शपथ पत्र देने के लिए उच्चतम न्यायालय द्वारा दोषी ठहराया जा चुका है। सय्यद शाहबुद्दीन मुस्लिम इंडिया नामक पत्रिका के संचालक हैं। किसी भी प्रमुख हिंदू संस्था के प्रतिनिधि को सलाहकार श्रेणी में नही रखा गया है।
विधेयक के घातक प्रारूप की धाराएं:1. साम्प्रदायिक हिंसा या साम्प्रदायिक दंगे का अपराधी केवल बहुसंख्यक हिंदू समाज का व्यक्ति ही माना जाएगा। किसी भी स्थिति में कोई मुसलमान, ईसाई आदि दोषी नही माना जाएगा। अल्पसंख्यकों को समूह (ग्रुप) शब्द से परिभाषित (संबोधित) किया गया है जिसमें अनुसूचित जाति व जनजातियों को भी जोड़ा गया है। इस छदमनीति के द्वारा हिंदुओं व अनुसूचित जाति व जनजाति के लोगों को पृथक करने का सरकारी कुचक्र है। वास्तव में अनुसूचित जाति व जनजाति सुरक्षा अधिनियम तो पहले 1989 से ही बना हुआ है फिर उनको इस कानून के द्वारा अल्पसंख्यकों को साथ जोड़े जाने की भूमिका के पीछे एक ही रहस्य है, बांटो और राज करो।
2. किसी भी साम्प्रदायिक हिंसक घटना के बाद पुलिस में शिकायत (एफआईआर) करने का अधिकार केवल मुस्लिम, ईसाई आदि को ही प्राप्त होगा। दंगा पीड़ित किसी भी हिंदू द्वारा लिखी एफआईआर थाने में स्वीकार नही की जाएगी।
3. बलात्कार या यौन उत्पीड़न : हिंदू स्त्री के साथ किये गये शारीरिक उत्पीड़न बलात्कार या सामूहिक बलात्कार की शिकायत थाने में नही लिखी जा सकेगी, केवल अल्पसंख्यक महिला को ही बलात्कार पीड़िता मानकर पुलिस कार्यवाही करेगी।
4. साम्प्रदायिक दंगे में यदि हिंदू की हत्या हो जाती है या चोट लगती है या उसका घर लूटकर उसे जला दिया जाता है या सारे परिवार को आग में झोंक कर जिंदा जला दिया जाता है तो भी थाने में इस घटना की कोई रिपोर्ट नही लिखी जाएगी और हत्यारे दंगाई मुस्लिमों या ईसाई आदि पर कोई कार्यवाही नही हो सकेगी और न ही किसी की गिरफ्तारी की जाएगी। केवल मुसलमानों, ईसाईयों आदि के साथ ऐसी घटनाएं हुई तो उसके लिए दोषी हिंदुओं को दंडित अवश्य किया जाएगा।
5. कोई भी हिंदू व्यक्ति यदि किसी मुस्लिम ईसाई आदि अल्पसंख्यक के अपना मकान किराये पर देने को मना करता है तो पुलिस शिकायत मिलने पर उसे तत्काल हिंदू को गिरफ्तार करेगी।
6. हिंदू व्यक्ति अपने किसी संस्थान में अल्पसंख्यक को नौकरी देने से मना करता है तो शिकायत मिलने पर वह पुलिस दण्ड का भागी होगा परंतु मुस्लिम ईसाई व्यक्ति यदि हिंदू को नौकरी देने से मना करता है तो यह उसका अधिकार होगा।
7. गोष्ठी, जुलूस रामलीला समाचार पत्र, टीवी आदि के द्वारा प्रचारित किसी विषय पर अल्पसंख्यक द्वारा यदि शिकायत की गयी तो आयोजक संपादक अथवी टीवी चैनल के स्वामी को पुलिस गिरफ्तार करेगी। आरोपी तब तक दोषी माना जाएगा जब तक कि वह न्यायालय में स्वयं को निर्दोष सिद्घ न कर दे।
8. साम्प्रदायिक सौहार्द के लिए सात सदस्यों का राष्ट्रीय प्राधिकरण बनेगा जिसमें अध्यक्ष व उपाध्यक्ष को मिलाकर चार सदस्य मुसलमान, ईसाई आदि व अनुसूचित जाति व जनजाति के होंगे। इस प्राधिकरण में कोई भी हिंदू अध्यक्ष या उपाध्यक्ष नही बन सकेगा।
9. राष्ट्रीय प्राधिकरण राज्य सरकार के कार्यों में भी हस्तक्षेप कर सकेगा। यदि प्राधिकरण चाहे तो केन्द्र सरकार से राज्य सरकार को भंग करवा सकता है।
10. पुलिस, सेना व सुरक्षा एजेंसियों की दंगों के मामले में कोई शिकायत मिलने पर उनके विरूद्घ कार्यावाही के लिए केन्द्र सरकार को यह राष्ट्रीय प्राधिकरण लिखकर भेजेगा। केन्द्र सरकार बाध्य होगी कि 90 दिनों में अपनी रिपोर्ट प्राधिकरण को भेजें।
क्रमश:

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