मिथिलेश कुमार सिंह
न्यायालय की अवमानना, 1971 के कंटेंप्ट आफ कोर्ट एक्ट में वर्णित किया गया है। इसमें स्पष्ट किया गया है कि अदालत की गरिमा और उसके अधिकारों के संदर्भ में अगर कोई नागरिक अनादर व्यक्त करता है तो कानूनन उस पर कार्यवाही सुनिश्चित की जा सकती है।
कई बार जब आप खबरें पढ़ते होंगे, तो कभी ना कभी आपके सामने कंटेंप्ट आफ कोर्ट, यानी न्यायालय की अवमानना की खबर भी दिख ही जाती होगी। अभी पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट के जाने-माने वकील प्रशांत भूषण के बारे में यह खबर आई थी कि सुप्रीम कोर्ट ने क्रिमिनल कंटेंप्ट आफ कोर्ट की तहत उनको दोषी पाया है।
इसका संज्ञान भी खुद उच्चतम न्यायालय ने स्वतः ही लिया था।
आमतौर पर अदालती अवमानना का अर्थ यही लगाया जाता है कि न्यायालय का आदेश ना मानना या उसका अपमान करना, जोकि सच भी है, किंतु इसकी और क्या बारीकियाँ हैं और इसमें किस प्रकार का प्रावधान सुनिश्चित किया गया है, आइए जानते हैं। यह जानना है इसलिए भी आवश्यक है क्योंकि सामान्य तौर पर लोग अनजाने में भी कई ऐसी बातें कह जाते हैं, कई ऐसा कृत्य कर जाते हैं, जो कंटेंप्ट आफ कोर्ट के अंतर्गत आ सकता है, इसीलिए हर नागरिक को इसके बारे में जागरूक रहना आवश्यक है।
न्यायालय की अवमानना, 1971 के कंटेंप्ट आफ कोर्ट एक्ट 1971 (Contempt of Court Act, 1971) में वर्णित किया गया है। इसमें स्पष्ट किया गया है कि अदालत की गरिमा और उसके अधिकारों के संदर्भ में अगर कोई नागरिक अनादर व्यक्त करता है तो कानूनन उस पर कार्यवाही सुनिश्चित की जा सकती है।
मूलतः कंटेंप्ट आफ कोर्ट दो तरह का होता है जिसे सिविल और क्रिमिनल में डिवाइड किया गया है।
सिविल कंटेंप्ट आफ कोर्ट में अदालत के किसी ऑर्डर, रिट या किसी प्रोसेस को जानबूझकर अनदेखा करना या उसके खिलाफ जाना शामिल किया जाता है।
वहीं क्रिमिनल कंटेंप्ट आफ कोर्ट किसी कोर्ट के प्रति लिखित, मौखिक या किसी चित्र द्वारा किसी ऐसी बात किए जाने, उसे पब्लिश करने से है जिससे कोर्ट का अपमान होता ,है उसका अवमानना होती हो।
यहां यह बताना उचित रहेगा कि अगर किसी मामले का आप चित्र प्रकाशन किया गया है और वह निर्दोष है, तो वह इसके अंतर्गत नहीं गिना जायेगा। इसी प्रकार अगर कोई न्यायिक आर्डर आता है और उसका निष्पक्ष और जायज विवेचन किया गया है या फिर कोर्ट के एडमिनिस्ट्रेटिव साइड पर भी अगर कोई कमेंट हुआ है तो वह किसी भी कंटेंप्ट आफ कोर्ट के अंतर्गत नहीं गिना जाता है।
ध्यान देने वाली बात यह है कि अगर आप कोर्ट की अवमानना करते हैं तो इसके लिए आप पर बकायदा केस चलता है और दोषी पाए जाने पर 6 महीने तक की जेल अथवा 2000 का फाइन या फिर दोनों ही पनिशमेंट दी जा सकती है।
बता दें कि दंड देने का अधिकार सुप्रीम कोर्ट के पास ना केवल उस की अवमानना के संदर्भ में है, बल्कि निचली समस्त अदालतों, यहां तक कि हाईकोर्ट की अवमानना के खिलाफ भी वह फैसला दे सकता है। इसी प्रकार हाई कोर्ट अपने अधीनस्थ तमाम न्यायालय की अवमानना के लिए किसी को भी दंडित कर सकता है और यह कंटेंप्ट आफ कोर्ट एक्ट 1971 की धारा 10 में व्याख्यायित किया गया है।
बता दें कि संविधान का अनुच्छेद 129 भी सुप्रीम कोर्ट को स्वयं की अवमानना के लिए किसी को पनिश करने की ताकत देता है, वहीं अनुच्छेद 142 (2) में सुप्रीम कोर्ट किसी भी नागरिक की जांच कर सकता है और उसको दंडित कर सकता है, जबकि अनुच्छेद 215 में हाई कोर्ट के पास कंटेंप्ट आफ कोर्ट के लिए पनिशमेंट देने का अधिकार बतलाया गया है।
भारतीय जज व कानून किसी भी व्यक्ति के लिए बेहद महत्वपूर्ण होते हैं और उनकी गरिमा बनाए रखना, उनका सम्मान सुनिश्चित करना उतना ही आवश्यक है।
ज़रा सोचियेगा! अगर उन्हीं न्यायमूर्तियों का अपमान किया जाएगा और लोकतंत्र के सबसे मजबूत खम्बों यानी न्यायाधीशों को डराया धमकाया जाएगा तो कानून का शासन कठिनाई में आ सकता है, इसीलिए हर व्यक्ति को इस तरह की जानकारी होना आवश्यक है और जानकारी के साथ-साथ अदालत का हर हाल में सम्मान बनाए रखना भी आवश्यक है।