उत्सवी आनंद के रूप में लें

लोकतंत्र के महासमर को

– डॉ. दीपक आचार्य

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जो होना था वह हो चुका है आज सामने आ ही जाएगा। लोकतंत्र के इस महासमर की पूर्णाहुति का निर्णायक दौर आखिर आ पहुँचा है जहाँ हम सभी को हर प्रतिस्पर्धा उत्सवी आनंद के साथ लेने का अभ्यास बनाने की जरूरत है।

जो कुछ हो रहा है, जो कुछ होगा, होता रहे, इससे लोकतंत्र की नींव और अधिक मजबूत ही होगी, जन तंत्र का उल्लास ईवीएम से निकल कर परिवेश तक में ताजगी और यौवन का अहसास हर पाँच साल में कराता रहा है। इस बार हमारा उत्साह पहले की अपेक्षा खूब ज्यादा ही रहा है, यह हमारे जनतंत्र की निरन्तर परिपक्व होती छवि का ही परिणाम है।

कोई जीते, कोई हारे, यह लोकतंत्र में होती रहने वाली स्वाभाविक प्रक्रिया है। आज के बाद का चिंतन हमें करना चाहिए। पर आज के बाद यह संक्रमण काल पूर्ण हो जाएगा। कल से हम सभी का दिल और दिमाग जन-जन के उत्थान और हर क्षेत्र के विकास पर केन्दि्रत करने का हो जाना चाहिए।

धु्रवीकरण लोकतंत्र का स्वाभाविक गुण है लेकिन सब कुछ निर्णय हो जाने के बाद हम सभी को मिलजुलकर सभी के कल्याण के लिए आत्मीय भागीदारी के साथ जुटना होगा, यह हम सभी का कत्र्तव्य है चाहे हम किसी भी पक्ष के क्यों न हों। निरपेक्ष हों तब भी हमारी सामाजिक जिम्मेदारी बनती है।

अब हमारे लिए समुदाय और क्षेत्र सर्वोपरि हैं। सारी संकीर्णताओं और सम सामयिक वैषम्य को भुलाकर प्रत्येक नागरिक का परम फर्ज है कि वह प्राणी मात्र के कल्याण और हर क्षेत्र की तरक्की के लिए आत्मीय भागीदारी के साथ आगे आए।

यह पूरा जीवन खेल है और इसे खेल के रूप में लिया जाना चाहिए। स्वस्थ प्रतिस्पर्धा के पूर्ण होने के बाद ताजिन्दगी हमारी मानसिकता स्वस्थ और मस्त रहनी चाहिए और इसके लिए निरन्तर प्रयत्न करते रहना चाहिए। लोकतंत्र के इस महोत्सव के पूर्णाहुति अवसर को उत्सवी आनंद के रूप में लें तथा पुरानी बातों को भुला कर अपने कदम आगे बढ़ाएं।

आज के दिन जो कुछ सामने आए, पूरी गंभीरता, शालीनता और धैर्य के साथ स्वीकारें और लोकतांत्रिक परंपराओं को और अधिक सुदृढ़ बनाते हुए सच्चे नागरिक के हर फर्ज को अच्छी तरह अदा करें।  आने वाले समय की यही मांग है कि हम सभी मिल कर एक-दूसरे के काम आएं, समाज के लिए कुछ करें और अपने प्रदेश-देश को वैभवशाली बनाएं।

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