-मुरली मनोहर श्रीवास्तव
बिहार की सियासत पल-पल करवट ले रही है। यहां कौन किसके साथ कब है और कब उनका साथ छोड़ देगा यह तो सिर्फ वही जाने। बिहार विधानसभा चुनाव की खबरों के साथ यहां जो राजनेता नजर तक नहीं आते थे वो अपने प्रचार प्रसार में जुट गए हैं। सबसे अहम मुद्दा तो ये है कि नीतीश कुमार को सत्ता से बेदखल कर खुद ही सत्ता का नेतृत्व करना चाहते हैं। इनमें एक नाम तो पहले से पता है कि राजद (राष्ट्रीय जनता दल) के तेजस्वी यादव इस वक्त लालू प्रसाद के अंदाज में महागठबंधन का नेतृत्व कर रहे हैं। वहीं इसी बीच लोजपा सुप्रीमो चिराग पासवान भी अपनी अकड़ दिखाने लगे हैं और आए दिन नीतीश कुमार के खिलाफ बोल रहे हैं। हलांकि केंद्रीय राजनीति से लेकर बिहार की सत्ता में एनडीए के एक पार्ट भी है लोजपा, बावजूद इसके आक्रामक रुप को देखकर यही कहा जा सकता है कि इनके अंदर भी सत्ता नेतृत्व की भूख बढ़ गई है। होना भी चाहिए मगर वगैर जमीनी हकीकत की तफ्तीश किए किसी कदम को बढ़ाना खतरे से खाली नहीं होती। इनके बिहार में कूदने के पीछे दो ही संभावनाएं हो सकती हैं। पहली ये कि पिछड़ा, दलित कार्ड खेलना साथ ही बिहार के बाहर से आए 30 लाख प्रवासियों के वोट की उम्मीदें होंगी या फिर दूसरा पहलू ये हो सकता है कि कहीं न कहीं भाजपा का पर्दे के पीछे से इशारा मिल रही हो। खैर, एक बात और याद दिलाना चाहुंगा कि कुछ ऐसे ही कदम बढ़ाए थे पूर्व केंद्रीय मंत्री सह रालोसपा (राष्ट्रीय लोक समता पार्टी) प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा ने और उनकी स्थिति के बारे में कुछ कहने की जरुरत नहीं है। कल तक मुख्यमंत्री की दौड़ में शामिल उपेंद्र कुशवाहा राजनीति को सधे कदमों से चलने वाले नीतीश कुमार ने केंद्र से लेकर बिहार तक उन्हें बौना साबित कर दिया।
एनडीए के दो घटक दल आमने-सामनेः
एनडीए (राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन) के दो घटक दलों जदयू (जनता दल यूनाइटेड) और लोजपा (लोक जनशक्ति पार्टी) के बीच तनाव दिनोंदिन बढ़ता ही जा रहा है। लोजपा सुप्रीमो चिराग पासवान पिछले कई महीनों से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के कार्यशैली की खुलेआम आलोचना कर रहे हैं। हलांकि लोजपा की नीतीश से बढ़ती दूरी से हम (हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा) अपने फायदे को साफ-साफ देख रही है और वो नीतीश कुमार के करीब जाने के लिए बेचैन हैं। इसके पहले पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी को मुख्यमंत्री बनाने का श्रेय भी नीतीश कुमार को ही जाता है। महागठबंधन का एक हिस्सा हम मुख्यमंत्री की तारीफ में कशिदे गढ़ रहा है। नियोजित शिक्षकों से जुड़ी समस्याओं को दूर करने को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से खुलेआम कहा था कि अगर वो उनकी बातों को मानकर कदम उठाएंगे तो वो नीतीश के साथ आ जाएंगे। नीतीश कुमार ने गांधी मैदान से स्वतंत्रता दिवस के मौके पर उनकी मांग से संबंधित ऐलान कर उनको और करीब कर लिए हैं। चिराग क्या कर रहे हैं, किस-किस से मिल रहे हैं इन सारी चीजों पर जीतन राम मांझी पैनी नजर बनाए हुए हैं।
दलित की राजनीति बिहार में चरम परः
एनडीए और महागठबंधन दोनों दलित कार्ड के लिए लगातार मशक्कत कर रहे हैं। एक तरफ राजद के तेजस्वी अपने को स्थापित करने के लिए महागठबंधन की अगुवाई कर रहे हैं। नीतीश सरकार के मंत्री और कभी राजद की धुरी का एक हिस्सा रहे श्याम रजक जदयू छोड़कर अपने पुराने घर राजद में लौट रहे हैं। इनके जाने के पीछे कहा जा रहा है कि नीतीश कुमार जबसे पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष सह मंत्री अशोक चौधरी जदयू में शामिल हुए हैं इन्हें खास तरजीह नहीं दे रहे हैं साथ ही मांझी की वापसी के बाद श्याम रजक हाशिए पर चले जाएंगे। एक कारण और है वो ये कि श्याम रजक फुलवारीशरीफ विधानसभा क्षेत्र से आते हैं जो आरक्षित सीट है और वहां महादलितों के साथ-साथ मुस्लिम की भी बड़ी संख्या है। इसको साधते हुए श्याम ने रिस्क नहीं लिया और खुद अपने वोट बैंक को सुरक्षित रखने के लिए राजद के साथ हो जाएंगे, जिससे यादव, महादलित और मुस्लिम वोट इन्हें फिर से सदन भेज सकती है। चिराग पासवान युवा है, महादलित वोट पर इनकी पकड़ है। साथ ही अपनी काबिलियत पर विश्वास है इसलिए अपने भाग्य को आजमाने की पूरी ताकत झोंक रहे हैं।
कभी लालू-नीतीश-पासवान की तिकड़ी थीः
बिहार की सत्ता से लेकर केंद्रीय राजनीति तक लालू प्रसाद यादव, नीतीश कुमार और रामविलास पासवान की गहरी पैठ थी। 1989 में आरक्षण विरोधी राजनीति कर इन तीनों नेताओं ने खुद को स्थापित कर लिया। इसके बाद 90 के दशक में लालू प्रसाद ने बिहार की जनता की नब्ज को पकड़कर बिहार की सत्ता में काबिज हुए और मुख्यमंत्री बन गए। पिछड़ों की राजनीति करते-करते लालू प्रसाद जब घोटाला में फंसे तो अपनी पत्नी राबड़ी देवी को बिहार का मुख्यमंत्री बनाने में सफल हो गए। बाद में नीतीश कुमार ने बिहार की जनता की नजाकत को भांपते हुए केंद्रीय राजनीति से खुद को अलग करते हुए बिहार की सत्ता पर विकास के मुद्दे पर काबिज हुए। जिस बिहार को लोग लालू-बालू और आलू के रुप में अविकसित बिहार, अपराध, नक्सल के रुप में जानते थे। उस बिहार की परिभाषा को नीतीश कुमार सत्ता में आते ही बदलकर रख दिया। बिजली, पानी, सड़क तो बनाया ही अपराध पर नकेल कसते हुए बिहार में शिक्षा, स्वास्थ्य को भी सुधारने की कोशिश जारी रही। यही नतीजा है कि बिहार में 15 साल की राजद की सरकार को खींचकर 15 साल से बिहार की सत्ता पर आसीन हैं। लालू, नीतीश तो सत्ता पर काबिज हो गए मगर रामविलास पासवान जो कि हमेशा केंद्रीय मंत्री बनते रहे चाहे किसी की भी सरकार बने उनको बिहार की बागडोर संभालने का मौका बिहार की जनता ने कभी नहीं दिया। शायद उसी मलाल को पूरा करने के लिए रामविलास के पुत्र चिराग जोर आजमाईश कर रहे हैं।
जदयू-लोजपा के रिश्तों में दरारः
बिहार सरकार के फेल होने के उठाए गए सवाल पर बहुत कम बोलने वाले जदयू सांसद ललन सिंह ने चिराग पासवान को कालिदास की संज्ञा तक दे दी। इस बयान के बाद तिलमिलाए चिराग पासवान ने आनन-फानन में पटना में वरिष्ठ नेताओं की बैठक बुलाई और उस बैठक में नीतीश कुमार पर जमकर भड़ास निकाली। खबरें तो यहां तक आ रही हैं कि चिराग बहुत जल्द जदयू से अपने रिश्तों खत्म करने का ऐलान कर सकते हैं। अंदरखाने में चिराग ने क्या निर्णय लिया यह किसी को खबर नहीं है, मगर इस मसले पर जमीनी हकीकत क्या है, इससे सभी महफूज हैं।
बिहार में इन दिनों अलग तरीके की सियासत हो रही है। एनडीए में साथ होकर भी लोजपा नीतीश कुमार के पीछे पड़ी है तो महागठबंधन का घटक दल मांजी के हम का रूख नीतीश कुमार के लिए नरम हो गया है। शिक्षकों को सेवा शर्त देने पर तो मांझी ने कह दिया कि मुख्यमंत्री ऐतिहासिक काम कर रहे हैं और हम उनके साथ हैं। अब ऐसे में देखने वाली बात ये है कि आखिर बिहार की सियासत में 30 वर्षों में 15-15 वर्षों के समीकरण को लालू-नीतीश तो पूरा कर लिए। इस 15 वर्ष के मिथ्य को तोड़कर नीतीश बिहार की सत्ता पर पुनः आसीन होकर खुद का ही रिकॉर्ड तोड़ेंगे या फिर भाजपा कोई नया सिनॉरियो खड़ा करने के लिए लोजपा को मोहरा बना रही है यह तो कुछ दिनों में ही पता चल जाएगा।