बोए पेड़ बबूल के तो आम कहां से
प्रवीण दुबे
जैसी संभावना थी वही सामने आया, चार राज्यों के चुनाव परिणामों में कांग्रेस को जनता ने नकार दिया है। किसी ने ठीक ही कहा है ”बोए पेड़ बबूल के तो आम कहां से होय” कांग्रेस को जब-जब देशवासियों ने मौका दिया, वो जहां-जहां भी सत्ता में रही उसने जनता के साथ झूठ, छल, कपट की राजनीति की। इसी का परिणाम सामने है, जनता ने खुलकर कांग्रेस के विरोध में मतदान किया और नतीजे सबके सामने हैं। देश की राजधानी दिल्ली में तो कांग्रेस के लिए चुल्लू भर पानी में डूब मरने जैसी स्थिति है। यहां वह तीसरे नंबर पर जा पहुंची। आखिर चार राज्यों के चुनाव परिणाम किस बात का संकेत दे रहे हैं? इस पर चिंतन, मंथन बेहद आवश्यक है। यह इस कारण भी आवश्यक है क्योंकि आने वाले चार माह पश्चात लोकसभा चुनाव प्रस्तावित हैं। इससे पूर्व चार राज्यों के चुनाव परिणाम बेहद मायने रखते हैं। कांग्रेस ने इन चुनावों को कितनी गम्भीरता से लिया था यह इस बात से सिद्ध हो जाता है कि मध्यप्रदेश हो या राजस्थान अथवा दिल्ली हो या छत्तीसगढ़ उसने अपनी पूरी ताकत चुनाव प्रचार में लगा दी थी। राहुल, सोनिया सहित कांग्रेस के सभी दिग्गज नेताओं ने इस प्रदेशों में अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी। मध्यप्रदेश में तो राहुल गांधी ने अपने नेताओं से साफ तौर पर कहा था कि उन्हें हर कीमत पर मध्यप्रदेश चाहिए, यह भी चेतावनी दी थी कि गुटबाजी समाप्त करें और चुनाव में एकजुटता प्रदर्शित करें। यह सारी बातें बेमानी साबित हुईं। मध्यप्रदेश में तो कांग्रेस उसी वक्त चुनाव हार गई थी जब चुनाव प्रचार के दौरान कई अवसरों पर कांग्रेस क्षत्रपों की गुटबाजी खुलकर सामने आ गई थी। कांग्रेस महासचिव दिग्विजयसिंह जहां इस बात से आग-बबूला थे कि ज्योतिरादित्य को कांग्रेस हाईकमान ने इतनी तवज्जो क्यों दी। यही वजह रही कि दिग्विजय सिंह ने सार्वजनिक मंच से स्वयं को डूबता हुआ सूरज तक करार देकर अपने इरादे साफ तौर पर जाहिर कर दिए थे। विधानसभा चुनाव के परिणाम एक और संकेत देते हैं जो कांग्रेस के लिए बेहद कड़वी सच्चाई जैसा है। यह सच्चाई है राहुल गांधी को जनता द्वारा प्राथमिकता न दिए जाने की। कांग्रेस ने राहुल गाधी को नरेन्द्र मोदी के समकक्ष प्रस्तुत किया था, कांग्रेस ने चुनावी राज्यों में राहुल के धुआंधार चुनावी दौरे कराए थे। कहने में कोई अतिश्योक्ति नहीं होना चाहिए कि चुनाव नतीजे आने के बाद यह पूरी तरह साफ हो गया है कि जनता राहुल गांधी से बिल्कुल प्रभावित नहीं है। उसने राहुल के चुनावी वादों को पूरी तरह नकार दिया है। आगामी लोकसभा चुनाव के परिप्रेक्ष्य में यह कांग्रेस के लिए बहुत बड़ी खतरे की घंटी है और जनता की भाजपा के प्रति उसकी रीतियों-नीतियों के प्रति स्वीकारोक्ति कहा जाए तो अतिश्योक्ति नहीं कहा जाना चाहिए। जनता ने अपने जनादेश में साफतौर पर यह संकेत दिया है कि अब झूठी बातें, झूठे वादे और छलकपट की राजनीति नहीं चलने वाली। मध्यप्रदेश में शिवराज की लगातार तीसरी जीत और राजस्थान, दिल्ली जैसे कांग्रेस शासित राज्यों में उसकी हार यह संदेश देती है कि जनता अब विकास चाहती है। अब केवल चुनाव से पहले विकास या जनकल्याणकारी योजनाएं देकर जनता को बेवकूफ नहीं बनाया जा सकता, जैसा कि राजस्थान और दिल्ली जैसे प्रदेशों में कांग्रेस ने किया। चुनाव से ठीक पहले जहां विकास और जनकल्याणकारी योजनाओं का ढिंढोरा पीटा गया, घोषणा पत्र जारी करके जनता को लालच देने की कोशिश की गई, जो काम नहीं आई। जनता ने मध्यप्रदेश में शिवराज के लगातार विकास की कार्यशैली और जनकल्याणकारी योजनाओं को मूर्त रूप देने की नीति को पसंद किया, यही वजह रही कि कांग्रेस को हार और भाजपा को जीत मिली। यह चुनाव परिणाम केन्द्र में सत्तासीन यूपीए सरकार की गलत नीतियों के प्रति भी जनता के गुस्से को उजागर करता है। देशवासी महंगाई, भ्रष्टाचार, आंतरिक असुरक्षा से बुरी तरह त्रस्त हैं। यही गुस्सा चुनाव में कांग्रेस के खिलाफ सामने आया है। यह इस बात का भी संकेत है कि देश की जनता ने केन्द्र में व्यवस्था परिवर्तन का मन बना लिया है।