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आज का चिंतन-13/12/2013

सबसे बड़े नालायक वे हैं

जो औरों को तनाव देते हैं

30feb3555692c842db83b61d6e62dc75– डॉ. दीपक आचार्य

9413306077

dr.deepakaacharya@gmail.com

 

आदमी का जन्म संसार के कल्याण और अपने बंधुओं, क्षेत्रवासियों एवं संपर्कितों के सुख-दुःखों में भागीदारी निभाते हुए व्यष्टि एवं समष्टि का कल्याण करने के लिए हुआ होता है। सामाजिक प्राणी के रूप में इंसान की जो पहचान सदियों से कायम है उसे पूरी मौलिकता देने और चरम प्रवाहमय रखने की कोशिशें हर युग में होती रही हैं और उनका प्रभाव भी सामने आया है।

इसे कलियुग का प्रभाव, इंसानियत के गुणधर्म का क्षरण अथवा आदमी की भौतिकतावादी सोच, कुछ भी कह लें मगर इतना तो सच है कि आदमी के भीतर से आदमियत की वो गंध अब गायब होती जा रही है जिससे आदमी की पहचान हुआ करती थी।

ईश्वर ने इंसान को अपेक्षाकृत ज्यादा बुद्धि नवाजकर दूसरे प्राणियों से कुछ ज्यादा ही महत्त्व दिया हुआ है लेकिन इंसान अपनी बुद्धि और विवेक का उपयोग जब से मनुष्यों और परिवेश की बजाय अपने आपके लिए करने लग गया है,  तभी से आदमी के सामाजिक सरोकारों, पारिवारिक सरोकारों और राष्ट्रीय  सोच के मिथक खण्डित होते चले गए हैं जिसका खामियाजा हम भी भुगत रहे हैं और आने वाली पीढ़ियों को भी भुगतना पड़ेगा ही।

आजकल आदमियोें की एक बहुप्रचलित किस्म हमारे सामने है जो खुद भले ही अच्छे  इंसान साबित नहीं हो पाए हैं मगर औरों को उपदेश देने, फटे में टाँग अड़ाने और बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाने बनने से लेकर ढेरों विचित्रताओं से भरे हुए हैं।

इनमें ऎसे-ऎसे अहंकारी और नालायक लोग आजकल हर कहीं दिखने लगे हैं जिनकी हर हरकत नकारात्मकता से परिपूर्ण होने के साथ ही विघ्नों का आवाहन करने वाली रही है। इस किस्म के लोग हर गलियारे में मौजूद हैं जो और कुछ कर पाएं या नहीं, मगर दूसरों को तनाव देने के मामले में इनका कोई मुकाबला नहीं।

ये लोग जहाँ होते हैं वहाँ हमेशा दूसरों को बेवजह परेशान करने और तनाव देने का ही काम करते रहते हैं। औरों को तनाव देकर इन्हें अनिर्वचनीय सुख प्राप्त होता है। ये अपनी पूरी जिन्दगी में कभी चुपचाप नहीं बैठते, बल्कि हमेशा इसी सोच-विचार में डूबे रहते हैं कि किस प्रकार औरों को कोई न कोई तनाव कैसे दिया जाए।

,ये लोग जिन दुकान-दफ्तरों और संस्थानों में होते हैं वहाँ रहने वाले दूसरे लोगों के लिए ये सबसे बड़ी समस्या बनकर सामने होते हैं और इनकी मौजूदगी का हर क्षण औरों के लिए परेशानी का सबब बना होता है। जितने समय ये कहीं रूके होते हैं, वहाँ सभी लोग अजीब से भय और तनावों में जीने लगते हैं और भगवान से यही प्रार्थना करते रहते हैं जल्द से जल्द इनसे पिण्ड छूटे।

अपने संपर्क में रहने और आने वाले लोगों के चेहरे पर मुस्कुराहट लाना हर इंसान का फर्ज है लेकिन जो लोग ऎसा नहीं कर पाते हैं उन्हें इंसानी शरीर के होते हुए भी असली इंसान नहीं माना जा सकता।

जो लोग दूसरों को तनाव देते हैं उनका पूरा जीवन बददुआओं की वजह से अभिशप्त रहता है और वे जीवन भर खुद भी किसी न किसी समस्या और अज्ञात भयों से घिरे रहते हैं। जो लोग दूसरों को तनाव देते हैं वे जीवन में कभी सुखी नहीं रह सकते।

ऎसे लोग हद दर्जे के मनोविकारी, सनकी या उन्मादी होते हैं और अपने उन्मादों को हलका करने के लिए ही औरों को बेवजह तंग करते हुए तनावों की बौछार करते रहते हैं। जो लोग औरों को तनाव देकर दुःखी करते हैं वे दुनिया में सबसे बड़े नालायकों की श्रेणी में गिने जाते हैं क्योंकि मनुष्य की सार्थकता इसी में है कि मनुष्य मात्र ही नहीं बल्कि सभी प्रकार के प्राणियों को प्रसन्नता एवं सुकून बाँटे। जहाँ कहीं नालायकों द्वारा बेवजह किसी को तंग किया जाए, इनका सशक्त प्रतिरोध किया जाना जरूरी है तभी इन पर अंकुश लग सकता है।

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