एक पुण्य चलेगा साथ में, सब होवेगा शून्य
प्रेमहीन बन्धु जहां,
और कुल्टा हो नार।
दयाहीन जो धर्म हो,
मत करना स्वीकार ।। 444 ।।
आयु, मृत्यु, कर्म, धन,
और पांचवां ज्ञान।
गर्भ में ही सारे मिलें,
ऐसा विधि-विधान ।। 445 ।।
ेकर्म से अभिप्राय व्यवसाय से है।
सत्पुरूषों से ले प्रेरणा,
करें शिष्टï व्यवहार।
ऐसे कुल संसार में,
पाते हैं ख्याति अपार ।। 446 ।।
जब तक सांस है देह में,
जग में कर तू पुण्य।
एक पुण्य चलेगा साथ में,
सब होवेगा शून्य ।। 447 ।।
विद्या धन है गुप्त धन,
कामधेनु कहलाय।
देश विदेश में विद्या ही,
यश धन को बरसाय।। 448।।
कामधेनु से अभिप्राय है-जिससे मनुष्य की सभी इच्छाएं पूर्ण होती हैं।
विधवा कन्या कुबास हो,
झगड़ालू हो नार।
देह जलै बिन आग के,
सहवें कष्टï अपार ।। 449 ।।
जिसकी सुसंतान हो,
मृदुभाषिणी नार।
सत्पुरूषों की संगति,
देती सुकून अपार ।। 450 ।।
पत्नी सुखदायी वही,
जाको पवित्र व्यवहार।
धर्म निभावै आपनो,
सरस देय आहार ।। 451।।
‘धर्म निभावै आपुनो’ से अभिप्राय है-पतिव्रता धर्म को निभाना।
‘सरस देय आहार’ से अभिप्राय है-स्वादिष्ट भोजन खिलाए।
‘पवित्र व्यवहार’ से अभिप्राय है-पवित्र आचरण।
कौन कौन मेरे सखा,
कितना हूं बलवान।
कितना मेरा आय-व्यय,
ज्ञानी राखै ध्यान।। 452 ।।
राजा, गुरू और मित्र की,
पत्नी मात समान।
सास भी माता तुल्य है,
जननी सबसे महान ।। 453 ।।
क्रमश: