अब होने लगा है हमारी स्वतंत्र चेतना का अहसास
ललित गर्ग
आजादी का यह उत्सव उन लोगों के लिए एक आह्वान है जो अकर्मण्य, आलसी, निठल्ले, हताश, सत्वहीन बनकर सिर्फ सफलता की ऊंचाइयों के सपने देखते हैं पर अपनी दुर्बलताओं को मिटाकर नयी जीवनशैली की शुरुआत का संकल्प नहीं स्वीकारते।
एक और आजादी का जश्न सामने हैं, जिसमें कुछ कर गुजरने की तमन्ना भी है तो अब तक कुछ न कर पाने की बेचैनी भी है। हमारी जागती आंखों से देखे गये स्वप्नों को आकार देने का विश्वास है तो जीवन मूल्यों को सुरक्षित करने एवं नया भारत निर्मित करने की तीव्र तैयारी है। अब होने लगा है हमारी स्वतंत्र चेतना का अहसास। जिसमें आकार लेते वैयक्तिक, सामुदायिक, सामाजिक, राष्ट्रीय एवं वैश्विक अर्थ की सुनहरी छटाएं हैं। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद बहुत कुछ बदला मगर चेहरा बदल कर भी दिल नहीं बदला। विदेशी सत्ता की बेड़ियां टूटीं पर बन्दीपन के संस्कार नहीं मिट पाये और राष्ट्रीयता प्रश्नचिन्ह बनकर आदर्शों की दीवारों पर टंग गयी थी, उसे अब आकार लेते हुए देखा जा रहा है। जिस संकीर्णता, स्वार्थ, राजनीतिक विसंगतियों, आर्थिक अपराधों, शोषण, भ्रष्टाचार एवं जटिल सरकारी प्रक्रियाओं ने अनंत संभावनाओं एवं आजादी के वास्तविक अर्थों को धुंधला दिया था, अब उन सब अवरोधक स्थितियों से बाहर निकलते हुए हम अपना रास्ता स्वयं खोजते हुए न केवल नये रास्तों बल्कि आत्मनिर्भर भारत के रास्तों पर अग्रसर हैं। अब आया है उपलब्धि भरा वर्तमान हमारी पकड़ में। अब लिखी जा रही है कि भारत की जमीन पर आजादी की वास्तविक इबारत।
एक संकल्प लाखों संकल्पों का उजाला बांट सकता है यदि दृढ़-संकल्प लेने का साहसिक प्रयत्न कोई शुरु करे। अंधेरों, अवरोधों एवं अक्षमताओं से संघर्ष करने की एक सार्थक मुहिम हमारे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में वर्ष 2014 में शुरू हुई थी। उनके दूसरे प्रधानमंत्री के कार्यकाल की एक वर्ष की सफल सम्पन्नता की सुखद एवं उपलब्धि भरी प्रतिध्वनियां सुनाई दे रही हैं, हाल ही में हमने मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्रीराम के मन्दिर के शिलान्यास का दृश्य देखा। मोदी ने अपने छह साल के कार्यकाल में जता दिया है कि राजनीतिक इच्छाशक्ति वाली सरकार अपने फैसलों से कैसे देश की दशा-दिशा बदल सकती है, कैसे कोरोना जैसी महाव्याधि को परास्त करते हुए जनजीवन को सुरक्षित एवं स्वस्थ रख सकती है, कैसे महासंकट में भी अर्थव्यवस्था को ध्वस्त होने से बचा सकती है, कैसे राष्ट्र की सीमाओं को सुरक्षित रखते हुए पड़ोसी देशों को चेता सकती है।
सरकार और सेना ने सर्जिकल स्ट्राइक/एयर स्ट्राइक कर जबरदस्त पराक्रम का प्रदर्शन कर दिखाया है कि भारत की रक्षा शक्ति दुनिया के किसी विकसित देश से कम नहीं है। भारत पारंपरिक लड़ाई के साथ-साथ मॉडर्न लड़ाई में दुनिया की पेशेवर सेनाओं में से एक है। भारतीय जवानों द्वारा पाकिस्तान की सीमा में घुसकर आतंकियों के ठिकानों को तबाह कर देना भारत की बड़ी शक्ति एवं सामर्थ्य का परिचायक है। मोदी सरकार ने अपने दूसरे कार्यकाल में सबसे बड़ा एवं साहसिक ऐतिहासिक फैसला जम्मू-कश्मीर को लेकर लिया जो जनसंघ के जमाने से उसकी प्राथमिकता रहा है। जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी बनाने का कदम उठाने के साथ-साथ राज्य को दो हिस्सों में बांटने का काम भी इसी कार्यकाल में हुआ। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले अनुच्छेद-370 को निष्प्रभावी करने का प्रस्ताव मंजूर किया और जम्मू-कश्मीर और लद्दाख को दो केंद्र शासित प्रदेश में बांट दिया गया। मोदी सरकार के इस फैसले के बाद कश्मीर में एक देश, एक विधान और एक निशान लागू हो गया है।
विकास की योजनाएं, नीतियां, सिद्धान्त और संकल्प सही परिणामों के साथ सही लोगों तक पहुंच रहे हैं। जनता को बैंकिंग से जोड़ने के लिए जन-धन योजना की घोषणा हो या हर घर को बिजली पहुंचाने के लिए सौभाग्य योजना या फिर प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत एक करोड़ घरों के निर्माण का लक्ष्य रखा जाना, आयुष्मान भारत योजना के तहत गरीब परिवार के हर सदस्य को सरकारी या निजी अस्पताल में सालाना पांच लाख रुपए तक का इलाज मुफ्त देना- ये और ऐसी अनेक योजनाएं भारत के सशक्त एवं समृद्ध होने का परिचायक है। भारत में नया गुड्स ऐंड सर्विस टैक्स (जीएसटी) देश में कर सुधार की दिशा में सबसे बड़ा कदम था। जीएसटी लागू करने का मकसद एक देश- एक कर (वन नेशन, वन टैक्स) प्रणाली है। सवर्ण आरक्षण की मांग देश में लंबे समय से हो रही थी, लेकिन किसी भी सरकार ने हाथ नहीं डाला। मोदी सरकार ने अपने पहले कार्यकाल के आखिरी समय 2019 के जनवरी में सवर्ण समुदाय को आर्थिक आधार पर 10 फीसदी आरक्षण देने का फैसला किया।
अल्पसंख्यक समुदाय से जुड़े कई अहम फैसले भी लिए गये हैं। 45 साल से ज्यादा उम्र की महिलाओं को बिना पुरुष अभिभावक के हज करने की इजाजत दी गई थी। मुस्लिम महिलाओं को तीन तलाक से निजात दिलाने का कदम भी उठाया। मोदी सरकार ने नागरिकता संशोधन कानून को 10 जनवरी 2020 को अमलीजामा पहनाया। इस कानून से पाकिस्तान, अफगानिस्तान और अन्य देशों में रह रहे हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और यहूदी को भारतीय नागरिकता मिल सकेगी। नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद दुनिया के तमाम देशों के साथ भारत के संबंध प्रगाढ़ हुए हैं और देश का सिर सम्मान से ऊंचा उठा और अंतरराष्ट्रीय पहचान मिली है। मोदी ने अमेरिका में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के साथ ह्यूस्टन में ‘हाउडी मोदी’ कार्यक्रम में करीब 50 हजार लोगों को संबोधित किया। ऐसे ही इस साल फरवरी में अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रंप ने मोदी के न्यौते पर गुजरात के अहमदाबाद में ‘नमस्ते ट्रंप’ में शामिल हुए और करीब 1 लाख लोगों को संबोधित किया। सऊदी अरब से लेकर यूएई सहित तमाम इस्लामिक देशों ने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपने देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान से सम्मानित भी किया है। इसके अलावा इस्लामिक देशों के साथ भारत के संबंध भी मजबूत हुए हैं, जिसका नतीजा है कि कश्मीर मसले पर दुनिया भर के देशों ने भारत का साथ दिया था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अपील पर संयुक्त राष्ट्र ने प्रतिवर्ष 21 जून को विश्व योग दिवस के रूप में मनाने की स्वीकृति दी। इसके दुनिया भर में भारत का सम्मान बढ़ा है।
आजादी के 74वें वर्ष में पहुंचते हुए हम अब वास्तविक आजादी का स्वाद चखने लगे हैं, आतंकवाद, जातिवाद, क्षेत्रीयवाद, अलगाववाद की कालिमा धूल गयी है, धर्म, भाषा, वर्ग, वर्ण और दलीय स्वार्थों के राजनीतिक विवादों पर भी नियंत्रण हो रहा है। इन नवनिर्माण के पदचिन्हों को स्थापित करते हुए कभी हम प्रधानमंत्री के मुख से स्कूलों में शोचालय की बात सुनते हैं तो कभी गांधी जयन्ती के अवसर पर स्वयं झाडू लेकर स्वच्छता अभियान का शुभारंभ करते हुए मोदी को देखते हैं। मोदी कभी विदेश की धरती पर हिन्दी में भाषण देकर राष्ट्रभाषा को गौरवान्वित करते हैं तो कभी “मेक इन इंडिया” का शंखनाद कर देश को न केवल शक्तिशाली बल्कि आत्म-निर्भर बनाने की ओर अग्रसर करते हैं। नई खोजों, दक्षता, कौशल विकास, बौद्धिक संपदा की रक्षा, रक्षा क्षेत्र में स्वदेशी उत्पादन, श्रेष्ठ का निर्माण-ये और ऐसे अनेकों सपनों को आकार देकर सचमुच मोदीजी हमारी स्वतंत्रता दिवस को सुदीर्घ काल के बाद सार्थक अर्थ दे रहे हैं।
आजादी का यह उत्सव उन लोगों के लिए एक आह्वान है जो अकर्मण्य, आलसी, निठल्ले, हताश, सत्वहीन बनकर सिर्फ सफलता की ऊंचाइयों के सपने देखते हैं पर अपनी दुर्बलताओं को मिटाकर नयी जीवनशैली की शुरुआत का संकल्प नहीं स्वीकारते। इसीलिए आजादी का यह जश्न एक संदेश है कि-हम जीवन से कभी पलायन न करें, जीवन को परिवर्तन दें, क्योंकि पलायन में मनुष्य के दामन पर बुजदिली का धब्बा लगता है जबकि परिवर्तन में विकास की संभावनाएं सही दिशा और दर्शन खोज लेती हैं। आजादी का दर्शन कहता है- जो आदमी आत्मविश्वास एवं अभय से जुड़ता है वह अकेले ही अनूठे कीर्तिमान स्थापित करने का साहस करता है। समय से पहले समय के साथ जीने की तैयारी का दूसरा नाम है स्वतंत्रता का बोध। दुनिया का कोई सिकंदर नहीं होता, वक्त सिकंदर होता है इसलिए जरूरी है कि हम वक्त के साथ कदम से कदम मिलाकर चलना सीखें।
हमें राष्ट्रीय जीवन में नैतिकता एवं आत्मनिर्भरता को स्थापित करने के लिए समस्या के मूल को पकड़ना होगा। हम पत्तों और फूलों के सींचन पर ज्यादा विश्वास करते हैं, जड़ के अभिसिंचन की ओर कम ध्यान देते हैं इसलिए पत्र और पुष्प मुरझा जाते हैं। इसलिये हम आत्मनिर्भर नहीं हो पाएं। नरेन्द्र मोदी समस्याओं के मूल को पकड़ने के लिये जद्दोजहद कर रहे हैं। वे पत्तों और फूलों को सींचने की बजाय जड़ को सींच रहे हैं ताकि आने वाली पीढ़ियां समस्यामुक्त जीवन जी सकें। आजादी का उत्सव मनाते हुए यही कामना है कि पुरुषार्थ के हाथों भाग्य बदलने का गहरा आत्मविश्वास सुरक्षा पाये। एक के लिए सब, सबके लिए एक की विकास गंगा प्रवहमान हो। आजादी का सही अर्थ है स्वयं की पहचान, सुप्त शक्तियों का जागरण, आत्मनिर्भरता एवं वर्तमान क्षण में पुरुषार्थी जीवन जीने का अभ्यास।