किसी भी देश की स्वतंत्रता के लिए आवश्यक है – आत्मनिर्भरता
अंग्रेजों ने भारतीय उपमहाद्वीप पर अपना पहला चौकी 1619 में सूरत के उत्तर-पश्चिमी तट पर स्थापित किया। उस शताब्दी के अंत तक, ईस्ट इंडिया कंपनी ने मद्रास, बॉम्बे और कलकत्ता में तीन और स्थायी व्यापारिक स्टेशन खोले थे। उन्नीसवीं सदी के मध्य तक, ब्रिटिशों ने इस क्षेत्र में अपने प्रभाव का विस्तार जारी रखा, भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश के वर्तमान समय के अधिकांश हिस्सों पर उनका नियंत्रण था। भारत में ब्रिटिश शासन 1757 में शुरू हुआ, जब प्लासी के युद्ध में ब्रिटिश जीत के बाद, अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कंपनी ने देश पर नियंत्रण स्थापित करना शुरू कर दिया। ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत पर 100 वर्षों तक शासन किया|इसे 1857-58 में भारतीय विद्रोह का सामना करना पड़ा । प्रथम विश्व युद्ध (28 जुलाई 1914 – 11 नवंबर 1918) के दौरान भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन शुरू हुआ|इसका नेतृत्व मोहनदास करमचंद गांधी ने किया था|महात्मा गांधी ने ब्रिटिश शासन के शांतिपूर्ण और अहिंसक अंत की वकालत की। पूरे भारत में स्वतंत्रता दिवस को, झंडा उठाने वाले समारोहों, कवायदों और भारतीय राष्ट्रगान के गायन के साथ चिह्नित किया जाता है। पुरानी दिल्ली के लाल किले के ऐतिहासिक स्मारक में प्रधानमंत्री के झंडा चढ़ाने के समारोह में भाग लेने के बाद, एक परेड सशस्त्र बलों और पुलिस के सदस्यों के साथ होती है। प्रधानमंत्री तब देश को एक टेलिविज़न के माध्यम से एड्रेस देते हैं |यह एड्रेस भारत की प्रमुख उपलब्धियों को बताता है और भविष्य की चुनौतियों और लक्ष्यों को रेखांकित करता है।15 अगस्त को राजपत्रित अवकाश रखा जाता है। पूरी दुनिया कोरोनावायरस महामारी (Covid-19) की चपेट में है | इस महामारी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश को ‘आत्मनिर्भर भारत’ का नारा दिया है | 15 अगस्त 2020 स्वतन्त्रता दिवस की थीम है – “आत्मनिर्भर भारत”| भारत में वर्ष २०२० में ७४ वाँ स्वतन्त्रता दिवस मनाया जा रहा है |
स्वाधीनता के ७३ वर्ष पूरे हो गए | स्वतन्त्रता के बाद व्यवस्था क्षीण होती गई | स्वतन्त्रता जैसे शब्द ,शब्द तक ही सीमित रह गए| स्वतन्त्रता का अनुपालन सही मायने में नहीं हो सका|सत्य और अहिंसा विरोधी रथ पर सवार हो सत्ता के चरम शिखर पर पहुँचने वाले सुधारकों की मनोदशा ठीक नहीं है।सुधारकों की प्रवृत्ति ठीक होती तो देश में आरक्षण को लेकर राजनीति न होती।
भ्रष्ट प्रशासन ,शिक्षा से लेकर न्याय तक का राजनैतिककरण होना,लोकतंत्रात्मक प्रणाली का जुगाड़ तंत्रात्मक हो जाना आदि अन्य सामाजिक कुरीतियों ने जन्म ले लिया। भारत में लोकतंत्र है और राजनेताओं ने लोकतंत्र का आधार, आरक्षण को बना दिया है।२५/०८/१९४९ ई में संविधान सभा में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति आरक्षण को मात्र १० वर्ष तक सिमित रखने के प्रस्ताव पर एस. नागप्पा व बी. आई. मुनिस्वामी पिल्लई आदि की आपत्तियां आई । डॉक्टर अम्बेडकर ने कहा मैं नहीं समझता कि हमे इस विषय में किसी परिवर्तन की अनुमति देनी चाहिए।यदि १० वर्ष में अनुसूचित जातियों की स्थिति नहीं सुधरती तो इसी संरक्षण को प्राप्त करने के लिए उपाए ढूढ़ना उनकी बुद्धि शक्ति से परे न होगा । आरक्षण वादी लोग , डॉ अम्बेडकर की राष्ट्र सर्वोपरिता की क़द्र नहीं करता । आरक्षण वादी लोगों ने राष्ट्र का संतुलन ख़राब कर दिया है।आरक्षण वादी लोग वोट की राजनीति करने लगे हैं न कि डॉ अम्बेडकर के सिद्धांत का अनुपालन कर रहे हैं । आरक्षण देने की समय सीमा तय होनी चाहिए जिससे दबे कुचले लोग उभर सकें।जब आरक्षण देने की तय सीमा के अंतर्गत दबे कुचले लोग उभर जाएं तो आरक्षण का लागू होना सफल माना जाए । आरक्षण कोटे से चयनित न्यायाधीश, आई.ए.एस., आई.ई.एस., पी.सी.एस. , इंजीनियर ,डॉक्टर आदि अपने कार्य का संचालन ठीक ढंग से नहीं कर पाते क्योंकि उन्हें कोटे के तहत उभरा गया । इस प्रकार के आरक्षण से मानवता पर कुठारा घात हो रहा है । अतएव शिक्षित व योग्य व्यक्ति को शोषण का शिकार होना पड़ रहा है । इस प्रकार की आरक्षित कोटे कि शिक्षा विकास कि उपलब्धि नहीं है । यह विकास के नाम पर अयोग्य लोगों को शरण देने वाली बात है । किसी भी देश के विकास में आरक्षण अभिशाप है ।आज यदि हम देश को उन्नति की ओर ले जाना चाहते हैं और देश की एकता बनाये रखना चाहते हैं, तो जरूरी है कि आरक्षणों को हटाकर हम सबको एक समान रूप से शिक्षा दें और अपनी उन्नति का अवसर पाने का मौका दें । अतः राष्ट्र के विकास को जीवित रखने के लिए , आरक्षण को वोट कि राजनीति से दूर रखना होगा । आरक्षण, विकास का आधार नहीं हो सकता । आरक्षण लोकतंत्र का आधार नहीं हो सकता । आरक्षण समुदाय को अलग करने का काम करता है न कि जोड़ने का । ऐसी डोर जो समुदाय या लोगों को जोड़े वह है लोकतंत्र । लोकतंत्र का आधार सिर्फ और सिर्फ विकास हो सकता है क्योंकि डोर या रस्सी रूपी विकास ही समूह को जोड़ने का आधार है । लोकतंत्र का आधार विकास होना चाहिए न कि आरक्षण । ताजा स्थिति यह है कि आरक्षण राष्ट्रीय विकास पर हावी है ।जिस तरह देश में फर्जी स्कूलों कि बाढ़ आ चुकी है और हजार हज़ार में डिग्रियाँ बिक रही है जिससे वो लोग डिग्री तो पा लेते है किन्तु अपने दायित्वों का निर्वाह नही कर पाते क्युंकि योग्यता तो होती नही ! परिश्रम किए बिना ही पद मिल गया वही स्थिति जाति प्रमाण पत्र की है कि बिना परिश्रम के जाति प्रमाण पत्र के सहारे पद मिल जाता है । फिर देश का नाश हो या सत्यानाश इन्हे कोई फर्क नही पड़ता । जातिवाद देश को तोड़ने का काम करता है जोड़ने का नही । ये बात इन लोगो कि समझ में नही आएगी क्यूँकि समझने लायक क्षमता ही नही है । देश के विषय से इन्हे प्यारा है आरक्षण ! दूसरों कि गलतियां निकाल कर ख़ुद को दोषमुक्त और दया का पात्र बनाना । आरक्षण जिसे ख़ुद अंबेडकर ने 10 साल से ज्यादा नही चाहा और जिसे ये लोग मसीहा मानते है उसके बनाए हुए नियम को ख़ुद तोड़ते है सिर्फ़ अपनी आरक्षण नाम कि लत को पूरा करने के लिए । वैसे भी जब किसी को बिना किए सब कुछ मिलने लगता है तो मेहनत करने से हर कोई जी चुराने लगता है और वह आधार तलाश करने लगता है जिसके सहारे उसे वो सब ऐसे ही मिलता रहे ! यही आधार आज के आरक्षण भोगी तलाश रहे है। कोई मनु को गाली दे रहा है तो कोई ब्राह्मणों को। कोई हिंदू धर्म को, तो कोई पुराणों को । कुछ लोग वेदो को तो कुछ लोग भगवान को भी । परन्तु ख़ुद के अन्दर झाँकने का ना तो सामर्थ्य है और ना ही इच्छाशक्ति । जब तक अयोग्य लोग आरक्षण का सहारा लेकर देश से खेलते रहेंगे तब तक ना तो देश का भला होगा और ना समाज का और ना ही इनकी जाति का। देश के विनाश का कारण है आरक्षण । आज हर जाति में अमीर है हर जाति में गरीब।हर जाति में ज्ञानी लोग है और हर जाति में अज्ञानी ! हर जाति में मेहनत कश लोग है और हर जाति में नकारा , हर जाति में नेता है और हर जाति में उद्द्योगपति । देश को तोड़ रहा है सिर्फ़ जातिवाद वो भी कुछ लोगो की लालसा, वोट बैंक की राजनीति के माध्यम से। जिस दिन हर जाति के लोग जात पात भुलाकर योग्यता के बल पर आगे जायेंगे और योग्यता के आधार पर देश का भविष्य सुनिश्चित करेंगे देश ख़ुद प्रगति के रास्ते पर बढ़ चलेगा। आत्मनिर्भर भारत में ,आरक्षण दीमक का काम करेगा | आरक्षण , भारत को आत्मनिर्भर बनने से रोकेगा | आरक्षण आत्मनिर्भरता में बाधक है | बिना आत्मनिर्भर के स्वतंत्र नहीं हुआ जा सकता है | अतएव आरक्षण लोगों की स्वतन्त्रता में बाधक है| आत्मनिर्भर भारत के लिए आरक्षणमुक्त भारत होंना जरुरी है |आरक्षण, आत्मनिर्भरता की निशानी नहीं है | आरक्षण , विकलांगता की निशानी है |
स्वतन्त्रता चार उपादानों में निहित है – १. स्वदेशी , २.स्वाधीन , ३. स्वावलम्बी , ४. स्वाभिमानी |आज ना तो कोई स्वदेशी रह गया , ना स्वाधीन हो पाया , ना ही स्वावलम्बी बन सका और ना ही स्वाभिमानी | स्वाभिमान अल्प परिमाण में बचा है परन्तु यह भी भोगवादित कुचक्र से नहीं बच पाएगा , अंत में इसे भी समाप्त होना है | इस समय लोकायत दर्शन चरितार्थ हो रहा है | लोकायत अर्थात जो इस संसार में फैला हुआ है या जो लोक में व्याप्त है | यह युग विज्ञापनों के दौर का है | इस भौतिक युग में आकर्षक होना , आकर्षित होने के क्रिया कलाप एवं तरह तरह के विदेशी सामानो का भारत आना आदि हमें स्वदेशी होने से वंचित किये हुए है | प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का “आत्मनिर्भर भारत ” का सपना भारत को स्वदेशी बनाने में अहम् भूमिका निभाएगा |
लोकायत अर्थात जो व्याप्त है वह है आत्मवंचन या धोखा | लोकायत दर्शन का रचयिता चार्वाक ऋषि को माना जाता है | यदि चार्वाक शब्द का शाब्दिक अर्थ देखा जाए तो चार्वाक :- चारु + वाक् = आकर्षक वाणी | अतः हम इन विज्ञापनों या कुरीतियों को अश्लील नहीं कह सकते हैं क्योंकि समयानुसार यह आकर्षक वाणी है | महाभारत में लोकायत का रचयिता वृहस्पति को माना गया है | वृहस्पति अर्थात ग्रहों में बसे बड़ा |जब वृहस्पति बड़ा हुआ तो लोकायत दर्शन का महत्व भी बड़ा हो गया | कहने का तात्पर्य भारत का अधिकांश भौतिक चिंतन लोकायत दर्शन पर आधारित है | अतः इस महान युग में महान दर्शन का चरितार्थ होना अपने आप में महान है | मरने से पहले किसी का ऋण लेकर न मरना यह वाक्य कहने वाला भारत जैसा देश ,अरबों रुपयों के विदेशी कर्ज का ऋणी है । अल्प परिमाण में जो स्वाभिमान है वह सिर्फ भारतीय इतिहासकारों ने बचा रखा है । अतः स्वतन्त्रता को पुनः जीवित करने के लिए स्वदेशिता ,स्वभिमानिता ,स्वाधीनता एवं स्वावलम्बन को अपने निजी जीवन में उतारना होगा । इस परिप्रेक्ष्य में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का आत्मनिर्भर भारत का सपना स्वदेशी ,स्वावलम्बन ,और स्वाधीनता को बल प्रदान करेगा | आत्मनिर्भर भारत से देश एक बार फिर स्वतन्त्रता की तरफ बढ़ेगा | अतएव आत्मनिर्भर होने से आत्मबल का विकास होगा |जैसा की उपनिषद में कहा गया है – “नायं आत्मा हीनेंन लभ्यः” अर्थात यह आत्मा बलहीनो को नहीं प्राप्त होती है |कहने का तातपर्य है कि बिना आत्मबल के सफलता अर्जित नहीं की जा सकती है| यही आत्मबल राष्ट्र के विकास में अहम् भूमिका निभाता है | भारत को आत्मनिर्भर बनाने के लिए सभी सामाजिक कुरीतियों को ख़त्म करना होगा | यही आत्मनिर्भर भारत, स्वतन्त्रता का असली परिचायक होगा| अतएव हम कह सकते हैं कि आत्मनिर्भरता , स्वतन्त्रता की जननी है|
डॉ. शंकर सुवन सिंह