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प्रमुख समाचार/संपादकीय

आज का चिंतन-25/12/2013

बड़े दिन पर लें बड़े संकल्प

– डॉ. दीपक आचार्य

9413306077

dr.deepakaacharya@gmail.com

दुनिया का हर पर्व-त्योहार और उत्सव का दिन अपने आप में एक संदेश लेकर आता है। जो इसे ग्रहण कर लेता है उसका जीना सार्थक हो जाता है, जो सिर्फ मौज-मस्ती और उल्लास को ही लक्ष्य मान लेते हैं, उनके लिए ऎसे दिन साल भर में खूब आते हैं और बिना कुछ दिए चले जाते हैं।

जो लोग दिवसों का महत्त्व समझ जाते हैं उनके लिए ये दिन इतिहास के शिलालेख बन जाते हैं और इन दिवसों से ही प्रेरणा पाकर ये युगों का निर्माण करते हैं जो सदियों तक याद रखे जाIMG_1433ते हैं। दिन कोई सा हो, बड़ा हो या छोटा, हम सभी के लिए हर दिन कोई न कोई विशेष संदेश लेकर आता ही है। दिन की अवधि बड़ी होने और उत्तरायण के आगमन के साथ ही बड़ा दिन अपने आपमें खूब सारे संदेशों को लेकर आता है।

बड़े दिल वाले लोग पूरी गहराई तथा गंभीरता के साथ इन पावन दिवसों के महत्त्व को अंगीकार करते हैं और अपने जीवन निर्माण की दिशा और दशा बदलने का सामथ्र्य पैदा करते हैं। लोक जीवन में बड़ा दिन देश-दुनिया में कोने-कोने तक विभिन्न रूपों में उत्सवी आयोजन के साथ मनाया जाता है। बड़ा दिन अपने आप में कई सारे बड़े-बड़े संदेशों को लिए हुए है। जो इन्हें आत्मसात कर लेता है वह अपने आप बड़ा हो जाता है, उसकी बड़ाई होने लगती है।

बड़ा दिन को उत्साहपूर्वक मनाकर ही इतिश्री नहीं मान लेनी चाहिए बल्कि इस दिन को मनाने की सार्थकता तभी है जब हम मानवीय संवेदनाओं, उदारता, निष्काम लोक सेवा, परोपकार, आप्तजनों की सेवा-सुश्रुषा से लेकर प्राणी मात्र के कल्याण के लिए वह सब कुछ करें जो एक इंसान कर सकता है। मैत्री, करुणा, दया और संबलन हर किसी के घर-आँगन तक पहुँचे, मन के कोनों से लेकर हर घर रौशन हो, शांति और सद्भाव की भावनाओं का साम्राज्य हर कहीं पसरता रहे और सृष्टि में ऎसा कुछ होने लगे कि हर प्राणी को यहीं पर स्वर्ग सा शाश्वत सुख और आनंद प्राप्त हो।

अपने मन के भीतर के मैलेपन और अंधकार को दूर करने तथा आत्मकेन्दि्रत भावों को त्यागकर अपनी दृष्टि को और अधिक व्यापकता देते हुए सृष्टि के लिए जीने की भावनाओं को मूर्त रूप देने के लिए आज बहुत कुछ करने की आवश्यकता है। ये सारे प्रयास बिना किसी लोभ-लालच या प्रलोभन, दबाव के हों तथा यह सब कुछ ‘वसुधैव कुटुम्बकम, आत्मवत सर्वभूतेषु, परद्रव्येषु लोष्ठवत, मातृवत परदारेषु…’ आदि उपनिषद वाक्यों को सुनहरा आकार देने वाले होने चाहिएं।

हम संसार के हैं और संसार हमारा है, इस विशुद्ध भावना को सामने रखकर यदि जीवनयापन किया जाए तो यह पूरी दुनिया हसीन होगी, और दिखेगी भी। समाज और क्षेत्र को स्वर्णिम आभा प्रदान कर सुकूनदायी बनाने में प्रत्येक व्यक्ति सशक्त इकाई है, जिसकी भागीदारी होने पर नए युग का निर्माण किया जा सकता है। लेकिन इन सभी के लिए अपने मनमुटावों, मलीनताओं और स्वार्थ वृत्तियों को मिटाना पहली और अनिवार्य शर्त है। बड़ा दिन यही संदेश देता है।

आज के दिन पूरी उदारता और दृढ़ इच्छाशक्ति के साथ समाज और देश के लिए जीने-मरने का संकल्प लेने की जरूरत है, यही हमारे जीवन का वह सबसे बड़ा काम हो सकता है जिसकी सुगंध सदियों तक हर कहीं पसरती रह सकती है। सभी को क्रिसमस-डे की हार्दिक शुभकामनाएँ …..।

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