परम राजनीतिज्ञ थे मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम

आज के राजनीतिज्ञों के लिए अनुकरणीय व्यक्तित्व है श्री राम का |
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मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम चंद्र कूटनीति राजनीति न्याय व्यवस्था लोक प्रशासन जैसे विषयों के मर्मज्ञ ज्ञाता धुरंधर थे |वाल्मीकि रामायण के अयोध्या कांड में उनके राजनीतिक ज्ञान का परिचय होता है जो उन्हें उपदेश के रुप में अपने अनुज महाराज भरत को दिया | महाराज दशरथ की मृत्यु के 14 दिन पश्चात भरत ने वल्कल वस्त्र धारण कर लिए| मर्यादा पुरुषोत्तम राम को मनाने के लिए भरत चतुररंगनी सेना लेकर अयोध्या से कूच कर गए| अयोध्या कांड में रघुवंशी भरत की इस कवायद का बड़ा ही सुंदर उल्लेख है सैकड़ों शिल्पी मार्ग को समतल करने वाले वृक्षों को काटकर मार्ग बनाने वाले जहां वृक्ष नहीं वहां मार्ग पर वृक्ष लगाने वाले पत्थरों को तोड़कर रास्ता बनाने में माहिर शिल्पी ओ को इस काम में लगाया गया|

ससुधाकुटिट्मतलः प्रपुष्पितमहीरुहः|
मतोद् घुष्टद्विजगणः पताकाभिरलकृतः||१३

अपरेपूरयन् कूपान पासुभि: श्ववभ्रमायतम्|
निम्नभागास्तत: केचित्समाश्चक्रु: समन्ततः||१२ (अयोध्या कांड)

भरत जी की आज्ञा अनुसार भूमि प्रदेश के जानने वाले भूमि की नाप तोल करने में दक्ष लोग फावड़े कुदाल आदि उपयोगी सामान लेकर आगे आगे चले| वे लोग मार्ग को ठीक करने के अभिप्राय से लता वल्ली झाड़- पत्थरों और अनेक प्रकार के वृक्षों जो मार्ग में पड़ते थे कूट काटकर रास्ता बनाते जाते थे| कुछ लोग मार्ग में आने वाली कूप और गड्ढों को मिट्टी से पाटते थे और नीची भूमि को मिट्टी से भर कर बराबर करते चले जाते थे उन कारीगरों ने सेना के जाने के मार्ग को चूने के गचो से ठीक कर दिया सड़क के इधर-उधर विकसित फूलों वाले वृक्ष लगाए गए सड़कों के दोनों ओर पताका सुशोभित हो रही थी और पक्षी गण मस्ती में आकर चहक रहे थे|

महाराज भरत अयोध्या प्रस्थान की तिथि उसी दिन शाम को गंगा के किनारे निषादराज गुह की राजधानी श्रंगवेरीपुर में पहुंचते हैं जो आज प्रयाग में है| निषादराज मर्यादा पुरुषोत्तम राम के मित्र थे | अपना अभिप्राय निषाद राज को बताते हैं… निषादराज अपने अधीनस्थों को आदेश देते हैं (यहां हम बताना चाहेंगे निषाद कोई मल्लाह नहीं था वह निषाद लोगों का राजा था) उसकी आज्ञा पाकर नाविक लोग उठ खड़े होते हैं अपने राजा के आदेश अनुसार 500 नौका गंगा के घाट पर लगा दी जाती है| महर्षि वाल्मीकि ने नौकाओं की संख्या व कुछ नौकाओं का नाम भी अयोध्या कांड में इस प्रसंग में खोला है| इन 500 नौकाओं के अतिरिक्त स्वस्तिक नाम वाली नौका भी लाई गई इन नौकाओं में घंटे बंधे हुए थे | पताका शोभायमान थी, वायु आने जाने के लिए स्थान था और इनके सब बंधन बड़े मजबूत थे| इन्हीं नौकाओं में एक कल्याणी नाम वाली नौका भी थी जिस पर सफेद उनी कालीन बिछी हुई थी जिसके चलने पर घंटियों का मधुर घोष होता था इसे निषादराज गुह स्वयं लाया था इसी नौका पर महा यशस्वी भरत शत्रुघ्न कौशल्या सुमित्रा और राजपरिवार की अन्य स्त्रियों आरूढ़ हुई| नौकाओं से गंगा को पार कर महाराजा भरत भारद्वाज ऋषि के आश्रम में गए… मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने भी वन गमन के दौरान एक रात्रि उस आश्रम में बताई थी आज भी वह प्रयागराज में स्थित है… यह भारद्वाज ऋषि विमान शास्त्र के रचयिता भी थे| राम के चित्रकूट में होने की जानकारी इन्हीं ने महाराज भरत को आश्वस्त होने पर दी| चित्रकूट पर्वत पर जब राम भरत की प्रथम भेंट होती है वनवास के दौरान… मर्यादा पुरुषोत्तम राम अयोध्या वासियों की कुशलक्षेम पूछने के पश्चात भरत को राजनीति का उपदेश देते हैं… बड़े ही सुंदर उपदेश हैं बाल्मीकि रामायण के अयोध्या कांड के 70 वे सर्ग में 50 से अधिक श्लोक मर्यादा पुरुषोत्तम राम के भरत को दिए गए उपदेश वैदिक भारत की राजनीति का सुंदर खाका प्रस्तुत करते हैं| इस लेख के विस्तृत होने के भय से मैंने मात्र दो ही श्लोकों को अंकित किया है| उपदेशों का सार इस प्रकार है|

कच्चिद्देवान् पितृन् भृत्यान गुरून् पितृसमानपि|
वृद्धाश्च तात वैघाश्चं ब्राह्नाणाश्चाभिमन्यसे|| (अयोध्या कांड)

कच्चित्सहस्न्नान् मूर्खणामेकमिच्छसि पण्डितम्|
पण्डितो हार्थकृच्छेषु कुयार्निन्न: श्रेयसं महत्|| (अयोध्या कांड)

मर्यादा पुरुषोत्तम राम भरत से कहते हैं हे !भरत तुम अपने राज्य में विद्वानों रक्षकों नौकरों गुरुओं पिता के समान पूज्य बड़े बूढ़ों चिकित्सकों विद्वानों का सत्कार तो करते हो|

हे !भाई तुम बाण और अस्त्र विद्या में निपुण तथा नीतिशास्त्र विशारद धनुर्वेद के आचार्यों का आदर सत्कार तो करते हो|

हे !तात क्या तुमने अपने सामान विश्वसनीय वीर नीतिशास्त्र के जाने वाले लोभ में न फंसने वाले प्रमाणिक कुल उत्पन्न और संकेत को समझने वाले व्यक्तियों को मंत्री बनाया है क्योंकि हे राघव !मंत्रणा को धारण करने वाले नीतिशास्त्र विशारद सचिवों के द्वारा गुप्त रखी हुई मंत्रणा हीं राजाओं की विजय का मूल होती है| तुम अकेले तो किसी बात का निर्णय नहीं कर लेते तुम्हारा विचार कार्य रूप में परिणत होने से पूर्व दूसरे राजाओं को विदित तो नहीं हो जाता| तुम हजार मूर्खों की अपेक्षा एक बुद्धिमान परामर्शदाता को रखना अच्छा समझते हो ना? क्योंकि संकट के समय बुद्धिमान व्यक्ति महान कल्याण करता है| है केकईनंदन! तुम्हारे राज्य में उग्र दंड से उत्तेजित प्रजा तुम्हारा अथवा तुम्हारे मंत्रियों का अपमान तो नहीं करती| हे भरत! क्या तुमने व्यवहार कुशल सूर बुद्धिमान धीर पवित्र स्वामी भक्त और कर्म कुशल व्यक्ति को अपना सेना अध्यक्ष बनाया है?

तुम्हारी सेना में जो अत्यंत बलवान युद्ध विद्या में निपुण सू परीक्षित और पराक्रमी सैनिक है उन्हें पुरस्कृत कर सम्मानित करते हो या नहीं उनका उत्साहवर्धन करते हो या नहीं? तुम सेना के लोगों को कार्य अनुरूप भोजन और वेतन जो उचित परिमाण में और उचित काल में देना चाहिए उसे यथा समय देने में विलंब तो नहीं करते| हे भरत !राज कर्मचारियों का वेतन ठीक समय पर ना मिलने से राज्य कर्मचारी लोग विरुद्ध होते हैं स्वामी की निंदा करते हैं राज्य कर्मचारियों का ऐसा करना भारी अनर्थ की बात समझी जाती है| हे भरत! तुम्हारी गुप्तचर व्यवस्था तो अचूक है या नहीं| हे राघव! पापी लोगों से रहित मेरे पूर्वजों के द्वारा सुरक्षित तथा समृद्ध कौशल देश सुखी तो है या नहीं?

हे भरत! पशुपालन कृषि आदि में लगे हुए तुम्हारी सब प्रजा सुखी तो है ना लेन-देन के कार्य में लिप्त रहकर ही वैश्य लोग धन-धान्य से युक्त होते हैं ना| हे भरत! तुम प्रतिदिन प्रात काल उठकर और सब प्रकार से सुभाषित होकर दोपहर से पहले ही सभा में जाकर प्रजा से मिलते हो या नहीं? हे भरत तुम्हारी आय अधिक और खर्च न्यून है ना तुम्हारे कोश का धन नाच गाने वालों में तो नहीं ले लुटाया जाता| तुम्हारे राज्य में घूस लेकर अपराधियों को छोड़ तो नहीं दिया जाता| अमीर और गरीब का झगड़ा होने पर तुम्हारे मंत्री लोभ रहित होकर दोनों का मुकदमा न्याय पूर्वक निपट आते हैं या नहीं…….|

हे भरत ! झूठे अपराधों के कारण दंडित लोगों को आंखों से गिरने वाले आंसू अपने भोग विलास के लिए शासन करने वाले राजा उसके पुत्र राज्य कर्मचारियों और उसके पशुओं का नाश कर डालते हैं|

ऐसे अनेकों महत्वपूर्ण अर्थव्यवस्था न्याय प्रशासन लोक प्रशासन कर व्यवस्था से संबंधित उपदेश मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने भरत को दिए| आज आधुनिक भारत में राजनीतिक रैलियों में राम का उद्घोष करने वाले राजनेताओं को अपने गिरेबान में झांकना चाहिए…! क्या वह राम के राजनीतिक आदर्शों पर चल रहे हैं? रामराज्य मर्यादा पुरुषोत्तम राम को मानने से ही नहीं मर्यादा पुरुषोत्तम राम की शिक्षाएं को मानने उन्हें राज व्यवस्था में लागू करने से ही आएगा | राम के विचारों का साकार मंदिर कब भारतीय लोकतंत्र में बन पाएगा?

आर्य सागर खारी✍✍✍

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