योगीराज श्रीकृष्ण जी का असली जन्म
विनय आर्य
अगस्त माह में हम योगीराज श्रीकृष्ण जी महाराज का पुनः जन्मदिन मना रहे हैं। वही श्रीकृष्ण जी महाराज जिसे पौराणिकों ने लीलाधर, रसिक, गोपी प्रेमी, कपड़े चोर, माखन चोर और न जाने क्या-क्या लिखा। जिससे उनका मनोरथ तो पूरा हो गया लेकिन कहीं न कहीं योगीराज श्रीकृष्ण जी का वास्तविक चरित्र नष्ट हो गया। पूरा विवरण लिखने के पूर्व एक छोटी सी घटना उदाहण स्वरूप देना चाहूँगा कि छतीसगढ़ राज्य में भोले-भाले लोगों को एक पादरी प्रवचन दे रहा था साथ ही साथ बेहद सरल तरीके से अपने प्रश्न भी रखता जैसे वो पूछता किसी की हत्या करना पाप है या पुण्य? श्रोता कह उठते पाप| फिर पूछता चोरी करना अच्छी बात है या बुरी? लोग कहते बुरी| अब पादरी ने पूछा तुम सब भगवान कृष्ण को मानते हो ना? सभी ने एक सुर में कहा, हाँ मानते है| अचानक पादरी ने चेहरे पर गंभीर भाव बनाकर कहा इसी वजह से तुम लोग गरीब और दरिद्र हो कि एक चोर को भगवान मानते हो| गुस्से से कुछ भड़क गये| पादरी का स्वर धीमा पड़ गया और उसने सफाई देते हुए कहा ऐसा मैं नहीं आप लोगों के ही ग्रन्थ कहते है| भीड़ से पहले तो इक्का-दुक्का इसके बाद बहुमत से आवाज़ आनी शुरू हुई कि हाँ हमने भी सुना है| एक धीमी कुटिल मुस्कान के साथ पादरी का होसला बढ़ गया उसने अपने शब्दों से हमारे महापुरुषों पर अधिक तेज हमला किया| और अंत में उसने कहा छोडो इन राम और कृष्ण को यदि सच्चे ईश्वर पुत्र को जानना है तो अपनी दरिद्रता दूर करनी है तो जीसस को जानों| कहानी मात्र समझाने को है क्योंकि वैदिक धर्म को हिन्दू धर्म बनाने वालों ने महापुरुषों की जीवनी इस कदर बिगाड़ दी और उनमे इस तरह से संशय पैदा कर दिए जिसका फायदा हमेशा से अन्य मत के लोग उठाते आये है|
आज बड़ा दुःख होता है कि जब-जब आर्य समाज ने हमेशा अपने महापुरुषों को आरोपों से मुक्त करने का काम किया लोगों को वास्तविक सत्ता का बोद्ध कराया तब-तब उल्टा उन लोगों ने आर्य समाज पर आरोप जड़ने की कोशिश की आर्य समाज भगवान को नहीं मानता| आर्य समाज पर आरोप लगाने वाले उन पाखंडियों ने कभी सोचा है कि योगिराज श्रीकृष्णचंद्र जी महाराज के चरित्र को किस तरह उन्होंने पेश किया लिख दिया 16 हजार गोपियाँ थी, वे छिपकर कपडे चुराने जाया करते थे, गीत बना दिए कि मनिहार का वेश बनाया श्याम चूड़ी बेचने आया, अश्लील कथा जोड़ दी कि उनके आगे पीछे करोड़ो स्त्रियाँ नाचती थी वो रासलीला रचाते थे| यदि कोई हमारे सामने हमारे माता-पिता के बारे में ऐसी टिप्पणी करे तो क्या हम सहन करेंगे? नहीं ना! तो फिर आर्य समाज कैसे सहन करे? ऐसी स्थिति में श्री कृष्ण को समझना बहुत आवश्यक है| श्रीकृष्ण महाभारत में एक पात्र है जिनका वर्णन सबने अपने-अपने तरीके से किया सबने कृष्ण के जीवन को खंडो में बाँट लिया सूरदास ने उन्हें बचपन से बाहर नही आने दिया सूरदास के कृष्ण कभी बच्चे से बड़े नहीं हो पाते। बड़े कृष्ण के साथ उन्हें पता नहीं क्या खतरा था? इसलिए अपनी सारी कल्पनाये उनके बचपन पर ही थोफ दी? रहीम और रसखान ने उनके साथ गोपियाँ जोड़ दी, इन लोगों ने वो कृष्ण मिटा दिया जो शुभ को बचाना, अशुभ को छोड़ना सिखाता था| कृष्ण की बांसुरी में सिवाय ध्यान और आनंद के और कुछ भी नहीं था पर मीरा के भजन में दुख खड़े हो गये पीड़ा खड़ी हो गयी। हजारों सालों तक कृष्ण के जीवन को हर किसी ने अपने तरीके से रखा भागवत कथा सुनाने लगे| कृष्ण का असली चरित्र जो वीरता का चरित्र था जो साहस का था| जो ज्ञान का था जो नीति का था जिसमें युद्ध की कला थी वो सब हटा दिया नकली खड़ा कर दिया जिसका नतीजा आने वाली नस्लें नपुंसक होती गयी | हमारी अहिंसा की बात के पीछे हमारी कायरता छुप कर बैठ गई है | हम नहीं लड़े, बाहरी लोग हम पर हावी हो गये, हमें गुलाम बना लिया और फिर हम उसकी फ़ौज में शामिल होकर उसकी तरफ से दूसरों से लड़ते रहे | हम गुलाम भी रहे और अपनी गुलामी बचाने के लिए लड़ते रहे कभी हम मुग़ल की फ़ौज में लड़े तो कभी अंग्रेज की फ़ौज में | नहीं लड़े तो केवल अपनी स्वतंत्रता के लिए| फिर स्वामी दयानंद जी आये हमारे सामने कृष्ण के शब्दों को रखा हमें बताया कि हम लड़ तो रहे पर अपने लिए नहीं अपितु दुसरे के लिए लड़ रहे है, उठो लड़ो अपने लिए लड़ो| योगिराज की नीति उनकी युद्ध कला को समझाया| अर्जुन नाम मनुष्य का है कृष्ण नाम चेतना का है जो सोई चेतना को जगा दे उसी जाग्रत चेतना का नाम कृष्ण है| जो अपने धर्म व देश के प्रति आत्मा को जगा दे उसी नाम कृष्ण है|
पुराणों का चश्मे से कृष्ण को नहीं समझा जा सकता| क्योकि वहां सिवाय मक्खन और चोरी के आरोपों के अलावा कुछ नहीं मिलेगा| इस्कान के मन्दिरों में नाचने से कृष्ण को नहीं पाया जा सकता| उसके लिए अर्जुन बनना पड़ेगा तभी कृष्ण को समझा जा सकता है| पहली बात कोई अवतार नहीं होता हर किसी के अन्दर ईश्वर का अंश है इस संसार में सब अवतार है| हाँ यह सत्य है कृष्ण जैसा कोई दूसरा उदहारण फिर पैदा नहीं हुआ| यदि स्त्री जाति के सम्मान की बात आये तो कृष्ण जैसा उदहारण नहीं मिलेगा बुद्ध ने स्त्री से को दीक्षित करने से मना किया| महावीर ने तो उसे मोक्ष के लायक ही नहीं समझा मोहमंद ने उसे पुरुष की खेती कहा, तो जीसस ने तो उनके बीच प्रवचन करने से मना कर दिया| कृष्ण ने शायद भूलकर भी जरा-सा भी अपमान किसी स्त्री का नहीं किया। स्त्री जाति कृष्ण का सम्मान करती रही होगी लेकिन इन झूठ के ठेकेदारों ने खुद नारी जाति का शोषण करने के लिए योगिराज के महान चरित्र को रासलीला से जोड़ दिया| हमारा वर्तमान रोज उस भविष्य के करीब पहुँचता है, अत: हमे समझ लेना चाहिए कि जहाँ कृष्ण की प्रतिमा बनेगी वहीं कृष्ण का विचार दफ़न हो जायेगा| जहाँ कृष्ण को अंधविश्वास में लपेटा जायेगा वहीं धर्म की हानि होगी जो लोग सोचते है कृष्ण फिर धर्म की हानि होने पर अवतार लेंगे विधर्मइयों का नाश करेंगे तो सोचे धर्म का असल नाश किसने किया उस पादरी ने या उसे चोर और रसिक लिखने वाले ने? तो मारा कौन जायेगा? धर्म की बुनियादों में कृष्ण हमेशा से जीवित है बस जिस दिन यह अंधविश्वास के अंधकार का पत्थर हटेगा फिर कृष्ण का जन्म दिखाई देगा| उनका विराट स्वरूप दिखाई देगा।