* शरीर विज्ञान के संबंध में विशेष और महत्वपूर्ण जानकारी
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आधुनिक सूक्ष्मदर्शी यंत्र, इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप आदि के अविष्कार से हजारों वर्ष पूर्व वैदिक ऋषि महर्षि पतंजलि ,कपिल ,कणाद ने समाधिजन्य प्रत्यक्ष के आधार पर मानव शरीर को विकारी , मलिन , अशुद्ध, परिणामशील (दिन प्रतिदिन नष्ट होने वाला) घोषित कर दिया था| शरीर अणु परमाणु स्तर पर बड़ा ही घृणित है…… इस शरीर पर मर मिटने लायक कुछ भी नहीं है|
यह फोटो इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप से मानव बाजू की ली गई है जहां इंजेक्शन लगाया जाता है | काला काला जो छेद दिख रहा है यह साधारण सी सिरिंज नीडल से हुआ है जो आमतौर पर सभी को होता है | मानव आंखों से हमें यह सब दिखाई नहीं देता| छेद के आसपास जो उबड़ खाबड़ पपड़ी दार संरचना दिख है यह हमारी स्किन सेल्स है जो प्रतिदिन हमारी चमड़ी का निर्माण करती रहती है तथा कपड़ों से घिसकर वातावरण के प्रभाव से नष्ट होकर स्नान आदि में जल के साथ बह जाती है…..|
आंतरिक शरीर को आपने देख लिया भले ही आपका अपना ही सही आप अनेक सप्ताह तक खाना भी नहीं खाएंगे| एकाएक सारी विषय वासना शरीर के विषय में आपकी आसक्ति लालसा रफूचक्कर हो जाएगी|
उपनिषदों , वैदिक वांग्मय में यह विद्या विषय बहुत जोर शोर से उठाया गया है पंचकोश के विवेचन के माध्यम से| एक बार चित्त में यह अध्यात्म विद्या बैठ जाए तो भोगी से भोगी भी व्यक्ति भी योगी विरक्त वैरागी बन सकता है|
आर्य सागर खारी✍✍✍