असदुद्दीन ओवैसी से असहमति क्या भारतीय संविधान की अवमानना है ?

कोर्ट ने और न ही भारतीय संविधान में कहीं कोई उल्लेख नहीं है कि नेता अर्थात “जन प्रतिनिधि” किसी भी धर्म कार्य में सम्मलित नहीं हो सकता, बात यहाँ समाप्त नहीं होती यदि आप वास्तव में इस बात के विरुद्ध हैं कि प्रधानमंत्री को किसी धार्मिक कार्यक्रम में सम्मलित नही होना चाहिये तो न्यायालय में “जनहित याचिका” न्यायालय निश्चित रूप से आप का मार्गदर्शन करेगा, विधि द्वारा अथवा समय नष्ट करने के लिए दण्ड द्वारा किन्तु न्याय जरूर होगा और सर्वमान्य होगा । कम से कम मैं न्यायालय के निर्णय से असहमत होने की स्थिति में नही हूँ, आप के पास विशेष योग्यता हो सकती है ।

किन्तु फिलहाल यह कुतर्क और निर्लज्जता की पराकाष्ठा है कि टीवी चैनलों पर बैठ कर आप अनर्गल प्रलाप कर रहे और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया इसपर चटखारे मार कर TRP जुटा रहा जबकि ऐसा नहीं कि उन्हें यह बात मालूम नहीं वह बेहतर जानते है, पर उन्हें जन-मानस की परवाह नहीं अन्यथा आप को बार-बार मंच मिल ही जाता है जिससे आप लोगों को गुमराह कर समाज में विष घोलने में सफल हो जाते है ।
किसे नहीं मालूम कि इफ्तार में सभी लोग आमन्त्रित होते हैं और इसका आयोजन भी प्रायः किसी न किसी राज्य के गणमान्य जनप्रतिनिधि अथवा विशिस्ट योग्यता प्राप्त कुछ राज्यों के मुख्यमंत्री ही करते हैं तब सेकुलर होने की याद किसी को नही आती ! यदि इसके पश्चात भी आप को लगता है कि प्रधानमंत्री ने हिंदुत्व की नींव रखी है तो प्रश्न उठना लाज़मी है और व्यंग भी कि आप ने विदेश से बैरिस्टर की उपाधि आपने कौन सी नृत्य कला में पारंगत सफल प्रस्तुतिकरण के पश्चात प्राप्त की ? उत्तर न मिले तो यह शोध का विषय है ।

हर नेता जिसका चुनाव जनता करती है, वह एक जनप्रतिनिधि है, फिर वह किसी छोटे से गाँव का प्रधान हो या फिर प्रधानमंत्री ।

एक पक्ष यह भी है जिसे सम्भवतः आप भूल रहे हैं कि संविधान निर्माताओं ने किसी नेता अथवा प्रधानमंत्री को देश का सर्वोच्च पदासीन व्यक्ति नहीं माना, यह उनकी दूरदर्शिता ही थी कि उन्होंने देश का सर्वोच्च पद “महामहीम राष्ट्रपति” को दिया प्रधानमंत्री को नहीं । शायद उन्हें ज्ञात था कि एक न एक दिन कोई मति शून्य व्यक्ति मत के सहारे ऐसे स्थान तक पहुच सकता है कि सारे किये कराये पर पानी फेर दे । इसलिए देश का मुखिया राष्ट्रपति को बनाया गया और उनके कान यह बोल दिया गया कि सांसारिक गतिविधि केवल मोह-माया है अन्य कुछ नहीं ।
इसी लिए देश में राष्ट्रपति का नाम आते ही धीर-गम्भीर शांतचित्त हो कर बैठे लोकतन्त्र के सबसे बड़े प्रतिमान की छवि उभर कर आती है जिसे अंतिम कार्यकारी का मुखिया माना जाता है जो निष्पक्ष भाव से अंतिक कार्यकारी निर्णय लेने का अधिकारी है ।
तबसे आज तक लगभग 70 वर्ष हो गए महामहीम राष्ट्रपति सामाजिक दूरी का दृढ़ता से पालन कर रहे हैं और मोदी जी ने पहले ही बता दिया कि वह एक फकीर हैं जो समान रूप से समाज को देखते हैं, और फ़कीर सभी के समर्थन का आकांक्षी है और सेवा हेतु समर्पित ।
अतः हे “भड़काऊ पुरुष” गलत परिभाषा से लोगों को भ्रमित न करें सृष्टि में जो भी घट रहा वह आप के विरुद्ध है ऐसी सोच आप के लिये पीड़ा का कारण बनेगी अथवा अन्य को पीड़ित करेगी । कोई व्यक्ति राष्ट्र नही हो सकता और व्यक्ति के बिना राष्ट्र नहीं हो सकता, राष्ट्र हेतु अन्य शर्त भी है कि राष्ट्र में वहाँ की “मौलिक संस्कृति” भी समाहित है ।
फिर प्रधानमंत्री ने आप पर एक मिनट भी विचार न करके आप की व्यर्थता को सिद्ध कर दिया है किंतु मुझे यह लेख प्रस्तुत करने में समय व्यय करना पड़ा । अब यह पाठक के ऊपर है कि वह चाहे तो इस व्यय को अनिवार्य बना दें ज्ञान बना दें अथवा अपव्यय ।

Comment: