अजय कुमार
जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल बनाए गए बीजेपी नेता मनोज सिन्हा की पहचान की बात की जाए तो वह उत्तर प्रदेश के जिला गाजीपुर से आते हैं। 2014 के लोकसभा चुनाव में मनोज सिन्हा गाजीपुर संसदीय सीट से सांसद चुने गए थे।
2017 के विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को मिले शानदार बहुमत के बाद उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनते-बनते रह जाने वाले और 2019 के लोकसभा चुनाव में जीत नहीं हासिल कर पाने के कारण केन्द्रीय मंत्री पद गंवाने वाले पूर्व केन्द्रीय मंत्री और भारतीय जनता पार्टी के कद्दावर नेता मनोज सिन्हा के साथ अब किस्मत ने किसी तरह का कोई मजाक नहीं किया, जिसके चलते मनोज सिन्हा जम्मू-कश्मीर के नए उपराज्यपाल बन गये हैं। उन्हें गिरीश चंद्र मुर्मू की जगह जम्मू-कश्मीर का नया उपराज्यपाल नियुक्त किया गया है। गिरीश ने उपराज्यपाल पद से अचानक इस्तीफा दे दिया था जिसके बाद मनोज सिन्हा को जम्मू-कश्मीर का नया उपराज्यपाल बनाया गया है। जम्मू-कश्मीर के पुनर्गठन होने के बाद बीते साल 31 अक्टूबर को मुर्मू ने पहले उपराज्यपाल के रूप में यह पद संभाला था। मनोज सिन्हा जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन के बाद के दूसरे उप-राज्यपाल होंगे। मनोज सिन्हा को जम्मू-कश्मीर का उपराज्यपाल बनाए जाने से कुछ लोगों का आश्चर्यचकित हो जाना स्वाभाविक है, क्योंकि उपराज्यपाल की रेस में जिन लोगों का नाम चल रहा था, उसमें मनोज सिन्हा शामिल नहीं थे।
जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल बनाए गए बीजेपी नेता मनोज सिन्हा की पहचान की बात की जाए तो वह उत्तर प्रदेश के जिला गाजीपुर से आते हैं। 2014 के लोकसभा चुनाव में मनोज सिन्हा गाजीपुर संसदीय सीट से सांसद चुने गए थे। सिन्हा, मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में रेल राज्यमंत्री और फिर स्वतंत्र प्रभार वाले संचार मंत्री रह चुके हैं। पिछले साल 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में भी उन्होंने गाजीपुर संसदीय सीट से चुनाव लड़ा था, लेकिन वह जीत नहीं सके थे। महागठबंधन के तहत बहुजन समाज पार्टी उम्मीदवार अफजाल अंसारी से उन्हें 119,392 वोटों से हरा दिया था, लेकिन हार के बाद भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का मनोज सिन्हा के प्रति विश्वास कम नहीं हुआ था। बात 2017 के विधानसभा चुनाव के बाद मनोज सिन्हा के उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनते-बनते रह जाने की कि जाए तो उस समय जो हालात थे, उसको देखते हुए भाजपा आलाकमान ने मनोज की जगह योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बनाना ज्यादा बेहतर समझा था। दरअसल, मनोज सिन्हा का सौम्य स्वभाव का होना ही उनके सीएम बनने की राह में सबसे बड़ी बाधा बन गया। बीजेपी आलाकमान को लगता था कि अगर कड़क छवि वाले किसी नेता को सीएम नहीं बनाया गया तो प्रदेश की कानून व्यवस्था संभालना आसान नहीं होगा। इसीलिए अंत समय में योगी का नाम तय कर दिया गया, जबकि मनोज सिन्हा शपथ ग्रहण करने से पूर्व मंदिर में माथा टेक आए थे और उनको मुख्यमंत्री को मिलने वाली सुरक्षा भी मुहैया करा दी गई थी। कहा यह भी गया था कि मनोज सिन्हा को इसलिए भी मुख्यमंत्री नहीं बनाया गया क्योंकि वह जाति से भूमिहार हैं और उत्तर प्रदेश में भूमिहार कोई वोट बैंक नहीं है, जबकि बीजेपी योगी को सीएम बनाकर क्षत्रियों और साधु-संतों दोनों को लुभाना चाहती थी।
मनोज सिन्हा के उपराज्यपाल पद पर नियुक्ति के बाद आया जम्मू-कश्मीर के पूर्व सीएम उमर अब्दुल्ला का ट्वीट काफी सटीक रहा। उन्होंने कहा, ‘कल रात एक या दो नाम थे, जिनके नाम सामने आए थे और इनका नाम उनके बीच नहीं था। आप इस सरकार पर हमेशा भरोसा कर सकते हैं कि ये स्रोतों से पहले लगाए गए किसी भी कयास के विपरीत अप्रत्याशित नाम सामने आता है। जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद-370 के हटाए जाने की पहली वर्षगांठ पर बुधवार देर शाम, केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल गिरीश चंद्र मुर्मू ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया था। मुर्मू के इस्तीफे की खबर से प्रशासन खेमे से लेकर सियासी पार्टियों में हड़कंप मंच गया था। मुर्मू ने देर रात राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को इस्तीफा भी सौंप दिया था। वहीं, मुर्मू के इस्तीफे का कारणों का पता नहीं चला, लेकिन अफवाहें थीं कि कुछ वरिष्ठ नौकरशाहों के कामकाज से वह खफा थे। लेकिन इन अफवाहों पर तब विराम लग लगया जब मुर्मू को केंद्र में सीएजी का पद दिया गया।