विजय कुमार
भारत और चीन में पुराना झगड़ा है। दोनों एक-दूसरे को 1962 की याद दिलाते रहते हैं। चीन तीन किमी आगे बढ़ता है, फिर समझौता कर दो किमी पीछे हट जाता है। इस तरह उसने काफी धरती कब्जा ली है; पर अब भारतीय सीमा पर सड़क, हवाई अड्डे और बंकर बन रहे हैं।
इन दिनों दुनिया का राजनीतिक, आर्थिक और सामरिक परिदृश्य देखकर यह शंका होने लगी है कि क्या हम तीसरे विश्व युद्ध की ओर बढ़ रहे हैं ? पुराने लोग जर, जोरू और जमीन (धन, महिला और धरती) को झगड़े की जड़ बताते हैं। श्रीराम और रावण का युद्ध सीताजी के अपहरण से ही हुआ था। दुर्योधन हस्तिनापुर के पांच गांव भी पांडवों को देने को राजी नहीं था, अतः महाभारत हुआ। यहूदी, ईसाई और मुस्लिमों के बीच धर्म के नाम पर कई युद्ध हुए। इनका उद्देश्य भी अधिकाधिक धन, जन और जमीन कब्जाना था। ब्रिटेन ने भारत सहित कई देशों को युद्धों से ही गुलाम बनाया और लूटा। लूट के इस माल से ही वहां औद्योगिक क्रांति हुई।
अधिकांश बड़े देश चाहते थे कि उन्हें अधिकाधिक उपनिवेश मिलें, जिससे वे कच्चा माल बटोर कर अपने कारखानों में बना माल वहां बेच सके। अतः ये देश सैन्य शक्ति बढ़ाकर परस्पर गुप्त संधियां करने लगे। 28 जून, 1914 को सर्बिया में आस्ट्रिया के युवराज फर्डिनेंड और उनकी पत्नी की हत्या हो गयी। एक महीने बाद आस्ट्रिया ने सर्बिया पर हमला कर दिया। क्रमशः आस्ट्रिया, जर्मनी, उस्मानिया और हंगरी एक ओर हो गये, तो ब्रिटेन, फ्रांस, रूस, इटली, जापान (मित्र देश) दूसरी ओर। तीन साल बाद अमरीका भी मित्र देशों के साथ आ गया। 28 जुलाई, 1914 को शुरू हुआ यह पहला युद्ध मित्र देशों की जीत के बाद 11 नवम्बर, 1918 को समाप्त हुआ। ब्रिटेन के अधीन होने से लगभग आठ लाख भारतीय सैनिक युद्ध में गये। इनमें से 75 हजार मारे गये। कांग्रेस को लगता था कि युद्ध के बाद हमें पूरी या आंशिक आजादी मिल जाएगी। अतः ब्रिटेन को भरपूर चंदा एवं सैन्य सहयोग दिया गया; पर युद्ध जीतकर उसने अंगूठा दिखा दिया।
युद्ध से जर्मनी और इटली को काफी कुछ खोना पड़ा। अतः वहां राष्ट्रवाद की आंधी चली, जिस पर चढ़कर हिटलर और मुसोलिनी तानाशाह बन गये। इधर जापान अपनी ताकत बढ़ा रहा था। जर्मनी भी लगातार ताल ठोक रहा था। एक सितम्बर, 1939 को जर्मनी ने पोलेंड पर हमला कर दिया। इसकी प्रतिक्रिया में दो दिन बाद ब्रिटेन और फ्रांस ने जर्मनी के विरुद्ध युद्ध घोषित कर दिया। क्रमशः दुनिया के कई देश युद्ध में आ गये। हिरोशिमा और नागासाकी पर अणु बम के प्रहार से जापान ने घुटने टेक दिये और दो सितम्बर, 1945 को युद्ध समाप्त हो गया। इसमें अमरीका, ब्रिटेन आदि की जीत हुई और जर्मनी, इटली, जापान आदि की हार।
भारत ने ब्रिटेन की ओर से युद्ध में भाग लिया। इस बार भी पूरी या आंशिक आजादी का लालच था। वह तुरंत तो पूरा नहीं हुआ; पर दो साल बाद हमें विभाजन के साथ आजादी मिल गयी। यद्यपि इसका कारण ब्रिटिश उदारता नहीं, अपितु उसकी आर्थिक बदहाली तथा 1946 में मुंबई का नौसेना विद्रोह था। इस युद्ध से अमरीका का प्रभुत्व बढ़ गया। तब से अमरीका दुनिया का दादा बनकर हर जगह अपनी टांग घुसेड़ देता है। उसके पास पैसा भी है और हथियार भी; पर कई देश उसके विरुद्ध भी हैं। लम्बे समय तक सोवियत संघ इसमें अगुआ रहा; पर विघटन से वह कमजोर पड़ गया है।
इधर पिछले कुछ सालों में चीन ने शक्ति बढ़ाई है। उसके पास धन भी है और हथियार भी। अतः वह अपने पड़ोसियों से लड़ रहा है। तिब्बत उसने हड़प ही लिया है। कई कमजोर देशों को पैसा देकर वह वहां अपने सैन्य ठिकाने बना रहा है। भारत पर उसकी विशेष निगाह है, चूंकि भारत बड़ा और लोकतांत्रिक देश है। फिर यहां अब नेहरू जैसे लचर नेता की बजाय आंख में आंख डालकर बात करने वाला मोदी जैसा प्रखर प्रधानमंत्री है। इसी से चीन को मिर्चें लग रही हैं। वह भारत तथा मोदी की प्रतिष्ठा गिराना चाहता है। हमारी सीमा में अतिक्रमण का कारण यही है।
चीन में तानाशाही के कारण असली बात कुछ ही लोगों को पता होती है। कई विश्लेषकों के अनुसार कोरोना वायरस चीन का षड्यंत्र है। उनके नेता सोचते हैं कि यदि चीन में दो-चार लाख लोग मरे तो कोई बात नहीं; पर बाकी दुनिया में करोड़ों लोग मरेंगे। चीन की आर्थिकी 10 प्रतिशत, तो बाकी देशों की 50 प्रतिशत तक डूब जाएगी। फिर चीन दुनिया का दादा बन जाएगा। इसी से अमरीका दुखी है। कोरोना की तबाही रोकने में बड़बोले ट्रम्प असफल रहे हैं। अगले चुनाव में उनकी जीत कठिन है। चीन भी यही चाहता है। अतः दोनों में तनाव बढ़ रहा है। यही विश्व युद्ध की आहट का कारण है।
भारत और चीन में पुराना झगड़ा है। दोनों एक-दूसरे को 1962 की याद दिलाते रहते हैं। चीन तीन किमी आगे बढ़ता है, फिर समझौता कर दो किमी पीछे हट जाता है। इस तरह उसने हमारी काफी धरती कब्जा ली है; पर अब भारतीय सीमा पर सड़क, हवाई अड्डे और बंकर बन रहे हैं। फौजें भी तैनात हो रही हैं। उसके कारोबार को भी भारी चोट पहुंची है। कोरोना तथा भारत के विरुद्ध कार्यवाही से दुनिया में उसकी छवि खराब हुई है।
यदि विश्व युद्ध हुआ, तो इसमें चीन और अमरीका नेतृत्व करेंगे। भारत अपनी सेनाएं या सैन्य ठिकाने उपयोग करने की छूट अमरीका को दे सकता है। यद्यपि अमरीका चाहता है कि चीन और भारत लड़ें, जिससे उसके हथियार बिकें और दोनों बर्बाद हो जाएं। भारत चाहता है कि चीन और अमरीका भिड़ जाएं, जिससे चीन का दिमाग ठीक हो जाए और हम बचे रहें। मुस्लिम देश चीन के, तो ईसाई देश अमरीका के साथ जाएंगे। रूस जैसे कई देश तटस्थ भी रहेंगे।
इन दिनों पर्दे के आगे और पीछे की गतिविधियां यही संकेत दे रही हैं। कोरोना ने दुनिया हिला दी है। शायद अगले विश्व युद्ध का कारण यही बन जाए।
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