ऐसे थे आर्य राजा मर्यादा पुरुषोत्तम राम
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अनेक विद्याओं के ज्ञाता देवऋषि नारद, महर्षि वाल्मीकि के आश्रम में पधारते हैं| देव ऋषि नारद का सम्मान कर महर्षि वाल्मीकि उनसे पूछते हैं भगवान! इस समय इस आर्यव्रत में ही नहीं इस संसार में गुणवान, कृतज्ञ ,धर्मज्ञ सत्यवादी, कृतज्ञ ,सत्यवादी ,दृढ़ प्रतिज्ञ ,कौन है?
सदाचार से युक्त सब प्राणियों का हित करने वाला विद्वान सामर्थ्ययुक्त और प्रियदर्शन कौन है?
धैर्य युक्त काम क्रोध आदि शत्रु का विजेता, कांतियुक्त तथा निंदा न करने वाला तथा युद्ध में क्रोध होने पर देवताओं को भी भयभीत करने वाला कौन है?
हे !महर्षि ऐसे गुणों से युक्त व्यक्ति के संबंध में जानने कि मुझे उत्कट अभिलाषा है और आप इस प्रकार के मनुष्य को जानने में समर्थ है|
महर्षि वाल्मीकि के जिज्ञासा युक्त प्रश्नों को सुनकर देवर्षि नारद प्रसन्न होकर कहते हैं….|
हे! मुनि वाल्मीकि आपने जिन बहुत से तथा दुर्लभ गुणों का वर्णन किया है उन से युक्त मनुष्य के संबंध में सुनिए मैं सोच विचा र के पश्चात कहताहूं|
सर्वदाभिगतः सद्धि: समुद्र इव सिन्धुभि:|
आर्य: सर्वसमश्चैव सदैव प्रियदर्शनः(१६)
समः समविभक्ताड्: स्निग्धवर्णः प्रतापवान्|
पीनवङछा विशालाछो लक्ष्मीवाञछुभलक्षण:||(१७)
धर्मज्ञ : सत्यसन्धश्च प्रजाना च हिते रतः|
यशस्वी ज्ञानसम्पन्न: शुचिर्वश्य: समाधिमान्||(१२)
(वाल्मीकि रामायण, बालकांड)
“इक्ष्वाकु वंश में उत्पन्न राम नाम से लोगों में विख्यात श्री रामचंद्र नित्य स्वभाव मन को वश में रखने वाले अति बलवान तेजस्वी धैर्यवान जितेंद्रिय है”
मर्यादा पुरुषोत्तम राम की शारीरिक सरंचना
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वे श्रीराम बुद्धिमान ,नीतिज्ञ मधुर भाषी श्रीमान शत्रु नाशक विशाल कंधे वाले ,गोल तथा मोटी भुजाओं वाले शंख के समान गर्दन वाले ,बड़ी ठोड़ी वाले और बड़े भारी धनुष को धारण करने वाले हैं उनके गर्दन की हड्डियां मांस से छिपी हुई है| वे शत्रु का दमन करने वाले हैं उनकी भुजाएं घुटनों तक लटकती हैं उनका सिर सुंदर एवं सुडोल है| माथा चौड़ा है ,अच्छे विक्रमसाली हैं|
उनके अंगों का विन्यास सम है ना बहुत छोटे हैं ना बहुत बड़े उनके शरीर का रंग चिकना एवं सुंदर है |बड़े प्रतापी हैं उनकी छाती उभरी हुई है और नेत्र विशाल है| उनके सब अंग प्रत्यंग सुंदर है और वे शुभ लक्षणों से संपन्न है|
मर्यादा पुरुषोत्तम राम की बौद्धिक विशेषताएं
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जिस प्रकार नदिया समुंदर में पहुंचती है उसी प्रकार उनके पास सदा सज्जनों का समागम लगा रहता है | वे आर्य है सम दृष्टि है और सदा प्रियदर्शन है| सत्यप्रतिज्ञ , कार्य कीर्ति युक्त ज्ञाननिष्ठ पवित्र जितेंद्रिय और समाधि लगाने वाले हैं| सब वेद शास्त्र वेद अंगों के मर्मज्ञ धनुर्वेद में पारंगत उत्तम स्मरण शक्ति से युक्त प्रतिभाशाली सर्वप्रिय सज्जन कभी दीनता ने दिखाने वाले और लौकिक तथा यौगिक क्रियाओं में कुशल है| वे सब गुणों से युक्त और कौशल्या के आनंद को बढ़ाने वाले हैं , गंभीरता में समुद्र के समान ,धैर्य में हिमालय के तुल्य ,पराक्रम में विष्णु के सदर्श, प्रियदर्शन में चंद्रमा जैसे, क्षमा में पृथ्वी की भांति और क्रोध में काल अग्नि के समान है धन में कुबेर के समान और सत्य भाषण में तो मानो दूसरे धर्म है|
देव ऋषि नारद के मुख से इस वृतांत को सुन महर्षि वाल्मीकि ने अपने शिष्य भारद्वाज सहित नारद जी का सत्कार किया| नारद जी से श्री राम का चरित्र सुनकर महर्षि वाल्मीकि ने धर्म अर्थ से युक्त सर्वजन हितकारी श्रीराम के जीवन की घटनाओं को उत्तम प्रकार से एकत्र करना आरंभ किया| कुछ लोग कहते हैं कि महर्षि वाल्मीकि ने रामायण राम के जन्म से 10000 वर्ष पूर्व लिख दी थी यह मिथ्या है, रामायण में ऐसा कोई उल्लेख नहीं है| महर्षि वाल्मीकि ने रामायण महर्षि ब्रह्मा के निर्देश पर ही लिखी थी| एक इतिहासकार जीवनीकार में जो जो विशेषताएं होनी चाहिए सारी विशेषताएं महर्षि वाल्मीकि के अंदर मौजूद थी| मर्यादा पुरुषोत्तम राम से अलग रामायण की जितने भी सत्य पात्र है उन सभी पर महर्षि वाल्मीकि ने अध्ययन किया था उनके हंसने बोलने आदि चरित्र उन सबको महर्षि वाल्मीकि ने धर्म बल से यथावत जान लिया| मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने सीता और लक्ष्मण के साथ वन में गुजरते हुए जो कुछ किया था उस सबका भी मुनि वाल्मीकि ने साक्षात्कार किया इसके पश्चात मुनि में एकाग्र चित्त होकर उन चरित्रों घटनाक्रम जो पहले घटित हो चुके थे उनको क्रम से व्यवस्थित किया|
मर्यादा पुरुषोत्तम राम के बनवास भोगने , लंका युद्ध के पश्चात श्रीराम के राज सिंहासन पर आरूढ़ होने पर ही रामायण महाकाव्य की रचना महर्षि वाल्मीकि ने संपूर्ण महाकाव्य की रचना की |इस विषय में वाल्मीकि रामायण का यह श्लोक प्रमाण है|
प्राप्तराज्यस्य रामस्य वाल्मिकीभर्गवानृषि:|
चकार चरितं क्रृत्सत्रं विचित्रपदमर्थवत्|| वाल्मीकि रामायण श्लोक संख्या 25 बालकांड|
यह महाकाव्य अन्य राजा महाराजाओं को राम के पावन चरित्र से प्रेरणा देने के उद्देश्य से लिखा गया था| लाखो वर्ष तक अनेक चक्रवर्ती सम्राट महाराजाओं ने रामायण महाकाव्य रघुनंदन राम के पावन चरण से प्रेरणा ली…. लगभग 5200 वर्ष पूर्व लिखे गए महाभारत ऐतिहासिक काव्य में भी राम के चरित्र प्रजा पालन आदर्श का वर्णन मिलता है गंगापुत्र भीष्म धर्मराज को युधिस्टर को मर्यादा पुरुषोत्तम राम के पावन चरित्र से प्रेरणा लेने की सीख देते हैं | महाभारत के अनुशासन पर्व में इसका उल्लेख है| हमारे लिए जितने प्राचीन पूजनीय योगीराज श्री कृष्ण चक्रवर्ती सम्राट धर्मराज युधिष्ठिर गंगापुत्र भीष्म महाभारत कालीन उन महानुभावों के लिए उतने ही प्राचीन अनुकरणीय प्रेरणादायक राम थे|
आज पूरा देश राममय है| राम आर्य वैदिक संस्कृति के आदर्श अनुपम उत्पाद थे| मर्यादा पुरुषोत्तम राम के गुण कर्म स्वभाव से हमें प्रेरणा लेनी चाहिए| वैदिक संस्कृति चित्र नहीं चरित्र प्रधान रही है| राम के आदर्शों को जीवन में उतार कर ही हम राम के सच्चे उत्तराधिकारी वंशज कहलाने योग्य होंगे|
आर्य सागर खारी✍✍✍